अर्जुन द्वारा कौरव सेना का विनाश करके रक्त की नदी बहाना

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 79वें अध्याय में संजय ने अर्जुन द्वारा कौरव सेना का विनाश करके रक्त की नदी बहाने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

अर्जुन द्वारा कौरव सेना का विनाश करके रक्त की नदी बहाना

संजय कहते है- महाराज! उस महासागर मैं शत्रुवीरो का संहार करने वाले अर्जुन ने क्रोध मैं भरे हुए सूतपुत्र को देखकर कौरवों की चतुरंगिणी सेना का विनाश करके वहाँ रक्त की नदी बहा दी। जिसमें जल के स्थान मैं इस पृथ्वी पर रक्त ही बह रहा था; मांस-मज्जा और हड्डियां कीचड़ का काम दे रही थी। मनुष्यों के कटे हुए मस्तक पत्थरों के टुकडों के समान जान पडते थे, हाथी और घोड़ों की लाशें कगार बनी हुई थी, शूरवीरों की हड्डियों के ढेर वहाँ वहाँ हर सब और बिखरे हुए थे, कौए और गीध वहाँ अपनी बोली बोल रहे थे, छत्र ही हंस और छोटी नौका का काम कर देते थे, वीरों के शरीररूपी वृक्ष को वह नदी बहाये लिये जाती थी, उसमें हार ही कमलवन और सफेद पगड़ी की फेन थी, धनुष और बाण वहाँ मछली के समान जान पड़ते थे, मनुष्यों की छोटी-छोटी खोपड़ियां वहाँ बिखरी पड़ी थी, ढाल और कवच ही उसमें भंवर के समान प्रतीत होते थे, रथरूपी छोटी नौका से व्याप्त वह नदी विजयाभिलाशी वीरों के लिये सुगमतापूर्वक पार होने योग्य और कायरों के लिये अत्यन्त दुस्तर थी। उस नदी को बहाकर पुरुषप्रवर अर्जुन ने वसुदेवनन्दन भगवान श्रीकृष्ण से इस प्रकार कहा- अर्जुन बोले- श्रीकृष्ण! रणभूमि मैं वह सूतपुत्र कर्ण की ध्वजा दिखायी देती है। ये भीमसेन आदि महारथी कर्ण से युद्ध करते हैं। जर्नादन! ये पांचाल योद्धा कर्ण से डरकर भाग रहे थे, यह राजा दुर्योधन है, जिसके ऊपर श्वेत छत्र तना हुआ है और कर्ण ने जिनके पांव उखाड़ दिये हैं उन पांचालों को खदेड़ता हुआ यह बड़ी शोभा पा रहा है।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 79 श्लोक 1-17

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