कर्ण द्वारा मद्र आदि बाहीक देशवासियों की निन्दा

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 44वें अध्याय में संजय ने कर्ण द्वारा मद्र आदि बाहीक देशवासियों की निन्दा करने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]-

कर्ण द्वारा बाहीक, मद्र एवं आरट्ट देशों की निंदा करना

शल्य बोले- कर्ण! तुम दूसरों के प्रति जो आक्षेप करते हो, ये तुम्हारे प्रलाप मात्र हैं। तुम जैसे हजारों कर्ण न रहे तो भी युद्ध स्थल में शत्रुओं पर विजय पायी जा सकती है। संजय कहते हैं- राजन! ऐसी कठोर बात बोलते हुए मद्रराज शल्य से कर्ण ने पुनः दूनी कठोरता लिये अप्रिय वचन कहना आरम्भ किया। कर्ण कहते हैं- मद्र नरेश! तुम एकाग्रचित्त होकर मेरी ये बातें सुनो। राजा धृतराष्ट्र के समीप कही जाती हुई इन सब बातों को मैंने सुना था। एक दिन महाराज धृतराष्ट्र के घर में बहुत से ब्राह्मण आ-आकर नाना प्रकार के विचित्र देशों तथा पूर्ववर्ती भूपालों के वृतान्त सुना रहे थे। वहीं किसी वृद्ध एवं श्रेष्ठ ब्राह्मण ने बाहीक और मद्र देश की निन्दा करते हुए वहाँ की पूर्व घटित बातें कही थीं- जो प्रदेश हिमालय, गंगा, सरस्वती, यमुना और कुरुक्षेत्र की सीमा से बाहर हैं तथा जो सतलज, व्यास, रावी, चिनाब, और झेलम- इन पाँचों एवं सिंधु नदी के बीच में स्थित है, उन्हें बाहीक कहते हैं। उन्हें त्याग देना चाहिये। गोवर्धन नामक वटवृक्ष और सुभद्र नामक चबूतरा- ये दोनों वहाँ के राजभवन के द्वार पर स्थित हैं, जिन्हें मैं बचपन से ही भूल नहीं पाता हूँ। मैं अत्यन्त गुप्त कार्यवश कुछ दिनों तक बाहीक देश में रहा था। इससे वहाँ के निवासियों के सम्पर्क में आकर मैंने उनके आचार-व्यवहार की बहुत सी बातें जान ली थीं। वहाँ शाकल नामक एक नगर और आपगा नाम की एक नदी है, जहाँ जर्तिका नाम वाले बाहीक निवास करते हैं। उनका चरित्र अत्यन्त निन्दित है। वे भुने हुए जौ और लहसुन के साथ गोमांस खाते और गुड़ से बनी हुई मदिरा पीकर मतवाले बने रहते हैं। पूआ, मांस और वाटी खाने वाले बाहीक देश के लोग शील और आचार शून्य हैं।

वहाँ की स्त्रियाँ बाहर दिखाई देने वाली माला और अंगराग धारण करके मतवाली तथा नंगी होकर नगर एवं घरों की चहारदिवारियों के पास गाती और नाचती हैं। वे गदहों के रेंकने और ऊँटों के बलबलाने की सी आवाज से मतवाले पन में ही भाँति-भाँति के गीत गाती हैं और मैथुन-काल में भी परदे के भीतर नहीं रहती हैं। वे सब-के-सब सर्वथा स्वेच्छाचारिणी होती हैं। मद से उनत्त होकर परस्पर सरस विनोद युक्त बातें करती हुई वे एक दूसरे को 'ओ घायल की हुई! ओ किसी की मारी हुई! हे पतिमर्दिते! इत्यादि कहकर पुकारती और नृत्य करती हैं। पर्वों और त्यौहारों के अवसर पर तो उन संस्कारहीन रमणीयों के संयम का बाँध और भी टूट जाता है। उन्हीं बाहीक देशी मदमत्त एवं दुष्ट स्त्रियों का कोई सम्बन्धी वहाँ से आकर कुरुजांगल प्रदेश में निवास करता था। वह अत्यन्त खिन्नचित्त होकर इस प्रकार गुनगुनाया करता था- "निश्चय ही वह लंबी, गोरी और महीन कम्बल की साड़ी पहनने वाली मेरी प्रेयसी कुरुजांगल प्रदेश में निवास करने वाले मुझ बाहीक को निरन्तर याद करती हुई सोती होगी। मैं कब सतलज और उस रमणीय रावी नदी को पार करके अपने देश में पहुँचकर शंख की बनी हुई मोटी-मोटी चूडि़यों को धारण करने वाली वहाँ की सुन्दरी स्त्रियों को देखूँगा। जिनके नेत्रों के प्रान्त भाग मैनसिल के आलेप से उज्ज्वल हैं, दोनों नेत्र और ललाट अंजन से सुशोभित हैं तथा जिनके सारे अंग कम्बल और मुगचर्म से आवृत हैं, वे गोरे रंगवाली प्रियदर्शना (परम सुन्दरी) रमणियाँ मृदंग, ढोल, शंख और मर्दल आदि वाद्यों की ध्वनि के साथ-साथ कब नृत्य करती दिखायी देंगी।[1]

कब हम लोग मदोन्मत्त हो गदहे, ऊँट और खच्चरों की सवारी द्वारा सुखद मार्गाें वाले शमी, पीलु और करीले के जंगलों में सुख से यात्रा करेंगे।" मार्ग में तक्र के साथ पूए और सत्तू के पिण्ड खाकर अत्यन्त प्रबल हो कब चलते हुए बहुत से राहगीरों को उनके कपड़े छीनकर हम अच्छी तरह पीटेंगे। संस्कारशून्य दुरात्मा बाहीक ऐसे ही स्वभाव के होते हैं। उनके पास कौन सचेत मुनष्य दो घड़ी भी निवास करेगा? ब्राह्मण ने निरर्थक आचार-विचार वाले बाहीकों को ऐसा ही बताया है, जिनके पुण्य और पाप दोनों का छठा भाग तुम लिया करते हो। शल्य! उस श्रेष्ठ ब्राह्मण ने ये सब बातें बताकर उद्दण्ड बाहीकों के विषय में पुनः जो कुछ कहा था, वह भी बताता हूँ। उस देश में एक राक्षसी रहती है, जो सदा कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को समृद्धशाली शाकल नगर में रात के समय दुन्दुभि बजाकर इस प्रकार गाती है- मैं वस्त्राभूषणों से विभूषित हो गोमांस खाकर और गुड़ की बनी हुई मदिरा पीकर तृप्त हो अंजलि भर प्याज के साथ बहुत सी भेड़ों को खाती हुई गोरे रंग की लंबी युवती स्त्रियों के साथ मिलकर इस शाकल नगर में पुनः कब इस तरह की बाहीक सम्बन्धी गाथाओं का गान करूँगी। जो सूअर, मुर्गा, गाय, गदहा, ऊँट और भेड़ के मांस नहीं खाते, उनका जन्म व्यर्थ है। जो शाकल निवासी आबालवृद्ध नरनारी मदिरा से उन्मत्त हो चिल्ला-चिल्लाकर ऐसी गाथाएँ गाया करते हैं, उनमें धर्म कैसे रह सकता है? शल्य! इस बात को अच्छी तरह समझ लो। हर्ष का विषय है कि इसके सम्बन्ध में मैं तुम्हें कुछ और बातें बता रहा हूँ, जिन्हें दूसरे ब्राह्मण ने कौरव-सभा में हम लोगों से कहा था। जहाँ शतद्रु (सतलज), विपाशा (व्यास), तीसरी इरावती (रावी), चन्द्रभागा (चिनाव) और वितस्ता (झेलम), ये पाँच नदियाँ छठी सिंधु नदी के साथ बहती हैं; जहाँ पीलु नामक वृक्षों के कई जंगल हैं, वे हिमालय की सीमा से बाहर के प्रदेश आरट्ट नाम से विख्यात है। वहाँ का धर्म-कर्म नष्ट हो गया है। उन देशों में कभी भी न जाय। जिनके धर्म-कर्म नष्ट हो गये हैं, वे संस्कारहीन, जारज बाहीक यज्ञ-कर्म से रहित होते हैं। उनके दिये हुए द्रव्य को देवता, पितर और ब्राह्मण भी ग्रहन नहीं करते हैं, यह बात सुनने में आयी है।

किसी विद्वान ब्राह्मण ने साधु पुरुषों की सभा में यह भी कहा कि बाहीक देश के लोग काठ के कुण्डों में तथा मिट्टी के बर्तन में जहाँ सत्तू और मदिरा लिपटे होते हैं और जिन्हें कुत्ते चाटते रहते हैं, घृणाशून्य होकर भोजन करते हैं। बाहीक देश के निवासी भेड़, ऊँटनी और गदही के दूध पीते और उसी दूध के बने हुए दही-घी आदि खाते हैं। वे जारज पुत्र उत्पन्न करने वाले नीच आरट्ट नामक बाहीक सबका अन्न खाते और सबका दूध पीते हैं। अतः विद्वान पुरुष को उन्हें दूर से ही त्याग देना चाहिये। शल्य! इस बात को याद कर लो। अभी तुमसे और भी बातें बताऊँगा, जिन्हें किसी दूसरे ब्राह्मण ने कौरव-सभा में स्वयं मुझसे कहा था। युगन्धर नगर में दूध पीकर अच्युत स्थल नामक नगर में एक रात रहकर तथा भूतिलय में स्नान करके मनुष्य कैसे स्वर्ग में जायेगा? जहाँ पर्वत से निकल कर पूर्वोक्त ये पाँच नदियाँ बहती हैं, वे आरट्ट नाम से प्रसिद्ध बाहीक प्रदेश हैं। उनमें श्रेष्ठ पुरुष दो दिन भी निवास न करे।[2] विपाशा (व्यास) नदी में दो पिशाच रहते हैं। एक का नाम है बहि और दूसरे का नाम है हीक। इन्हीं दोनों की संतानें बाहीक कहलाती हैं। ब्रह्मा जी ने इनकी सृष्टि नहीं की है। वे नीच योनि में उत्पन्न हुए मनुष्य नाना प्रकार के धर्मों को कैसे जानेंगे? कारस्कर, माहिषक, कुरंड, केरल, कर्कोटक और वीरक- इन देशों के धर्म (आचार-व्यवहार) दूषित हैं; अतः इनका त्याग कर देना चाहिये। विशाल ओखलियों की मेखला (करधनी) धारण करने वाली किसी राक्षसी ने किसी तीर्थयात्री के घर में एक रात रहकर उससे इस प्रकार कहा था। जहाँ ब्रह्मा जी के समकालीन (अत्यन्त प्राचीन) वेद-विरुद्ध आचरण वाले नीच ब्राह्मण निवास करते हैं, वे आरट्ट नामक देश है और वहाँ के जल का नाम बाहीक है। उन अधम ब्राह्मणों को न तो वेदों का ज्ञान है, न वहाँ यज्ञ की वेदियाँ हैं और न उनके यहाँ यज्ञ-याग ही होते हैं। वे संस्कारहीन एवं दासों से समागम करने वाली कुलटा स्त्रियों की संतानें हैं; अतः देवता उनका अन्न ग्रहण नहीं करते हैं। प्रस्थल, मद्र, गान्धार, आरट्ट, खस, वसाति, सिंधु तथा सौवीर- ये देश प्रायः अत्यन्त निन्दित हैं।[3]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 44 श्लोक 1-19
  2. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 44 श्लोक 20-40
  3. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 44 श्लोक 41-47

सम्बंधित लेख

महाभारत कर्ण पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जनमेजय का वैशम्पायन से कर्णवध वृत्तान्त कहने का अनुरोध | धृतराष्ट्र और संजय का वार्तालाप | दुर्योधन का सेना को आश्वासन तथा कर्णवध का संक्षिप्त वृत्तान्त | धृतराष्ट्र का शोक और समस्त स्त्रियों की व्याकुलता | संजय का कौरव पक्ष के मारे गये प्रमुख वीरों का परिचय देना | कौरवों द्वारा मारे गये प्रधान पांडव पक्ष के वीरों का परिचय | कौरव पक्ष के जीवित योद्धाओं का वर्णन और धृतराष्ट्र की मूर्छा | कर्ण के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप | धृतराष्ट्र का संजय से कर्णवध का विस्तारपूर्वक वृत्तान्त पूछना | कर्ण को सेनापति बनाने के लिए अश्वत्थामा का प्रस्ताव | कर्ण का सेनापति पद पर अभिषेक | कर्ण के सेनापतित्व में कौरवों द्वारा मकरव्यूह का निर्माण | पांडव सेना द्वारा अर्धचन्द्राकार व्यूह की रचना | कौरव और पांडव सेनाओं का घोर युद्ध | भीमसेन द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | सात्यकि द्वारा विन्द और अनुविन्द का वध | द्रौपदीपुत्र श्रुतकर्मा द्वारा चित्रसेन का वध | द्रौपदीपुत्र प्रतिविन्ध्य द्वारा चित्र का वध | अश्वत्थामा और भीमसेन का युद्ध तथा दोनों का मूर्छित होना | अर्जुन का संशप्तकों के साथ युद्ध | अर्जुन का अश्वत्थामा के साथ अद्भुत युद्ध | अर्जुन के द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | अर्जुन के द्वारा दण्डधार का वध | अर्जुन के द्वारा दण्ड का वध | अर्जुन के द्वारा संशप्तक सेना का संहार | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धस्थल का दृश्य दिखाते हुए उनकी प्रशंसा करना | पाण्ड्य नरेश का कौरव सेना के साथ युद्धारम्भ | अश्वत्थामा के द्वारा पाण्ड्य नरेश का वध | कौरव-पांडव दलों का भयंकर घमासान युद्ध | पांडव सेना पर भयानक गजसेना का आक्रमण | पांडवों द्वारा बंगराज तथा अंगराज का वध | कौरवों की गजसेना का विनाश और पलायन | सहदेव के द्वारा दु:शासन की पराजय | नकुल और कर्ण का घोर युद्ध | कर्ण के द्वारा नकुल की पराजय | कर्ण के द्वारा पांचाल सेना का संहार | युयुत्सु और उलूक का युद्ध तथा युयुत्सु का पलायन | शतानीक और श्रुतकर्मा का युद्ध | सुतसोम और शकुनि का घोर युद्ध | कृपाचार्य से धृष्टद्युम्न का भय | कृतवर्मा के द्वारा शिखण्डी की पराजय | अर्जुन द्वारा श्रुतंजय, सौश्रुति तथा चन्द्रदेव का वध | अर्जुन द्वारा सत्यसेन का वध तथा संशप्तक सेना का संहार | युधिष्ठिर और दुर्योधन का युद्ध | उभयपक्ष की सेनाओं का अमर्यादित भयंकर संग्राम | युधिष्ठिर के द्वारा दुर्योधन की पराजय | कर्ण और सात्यकि का युद्ध | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार और पांडवों की विजय | कौरवों की रात्रि में मन्त्रणा | धृतराष्ट्र के द्वारा दैव की प्रबलता का प्रतिपादन | संजय द्वारा धृतराष्ट्र पर दोषारोप | कर्ण और दुर्योधन की बातचीत | दुर्योधन की शल्य से कर्ण का सारथि बनने के लिए प्रार्थना | कर्ण का सारथि बनने के विषय में शल्य का घोर विरोध करना | शल्य द्वारा कर्ण का सारथि कर्म स्वीकार करना | दुर्योधन द्वारा शल्य से त्रिपुरों की उत्पत्ति का वर्णन करना | इंद्र आदि देवताओं का शिव की शरण में जाना | इंद्र आदि देवताओं द्वारा शिव की स्तुति करना | देवताओं की शिव से त्रिपुरों के वध हेतु प्रार्थना | दुर्योधन द्वारा शल्य को शिव के विचित्र रथ का विवरण सुनाना | देवताओं का ब्रह्मा को शिव का सारथि बनाना | शिव द्वारा त्रिपुरों का वध करना | परशुराम द्वारा कर्ण को दिव्यास्त्र प्राप्ति का वर्णन | शल्य और दुर्योधन का वार्तालाप | कर्ण का सारथि होने के लिए शल्य की स्वीकृति | कर्ण का युद्ध हेतु प्रस्थान और शल्य से उसकी बातचीत | कौरव सेना में अपशकुन | कर्ण की आत्मप्रशंसा | शल्य द्वारा कर्ण का उपहास और अर्जुन के बल-पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा श्रीकृष्ण-अर्जुन का पता देने वाले को पुरस्कार देने की घोषणा | शल्य का कर्ण के प्रति अत्यन्त आक्षेपपूर्ण वचन कहना | कर्ण का शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्रदेश के निवासियों की निन्दा | कर्ण द्वारा शल्य को मार डालने की धमकी देना | शल्य का कर्ण को हंस और कौए का उपाख्यान सुनाना | शल्य द्वारा कर्ण को श्रीकृष्ण और अर्जुन की शरण में जाने की सलाह | कर्ण का शल्य से परशुराम द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का अभिमानपूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण का शल्य से ब्राह्मण द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का आत्मप्रशंसापूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्र आदि बाहीक देशवासियों की निन्दा | कर्ण का मद्र आदि बाहीक निवासियों के दोष बताना | शल्य का कर्ण को उत्तर और दुर्योधन का दोनों को शान्त करना | कर्ण द्वारा कौरव सेना की व्यूह रचना | युधिष्ठिर के आदेश से अर्जुन का आक्रमण | शल्य द्वारा पांडव सेना के प्रमुख वीरों का वर्णन | शल्य द्वारा अर्जुन की प्रशंसा | कौरव-पांडव सेना का भयंकर युद्ध तथा अर्जुन और कर्ण का पराक्रम | कर्ण द्वारा कई योद्धाओं सहित पांडव सेना का संहार | भीम द्वारा कर्णपुत्र भानुसेन का वध | नकुल और सात्यकि के साथ वृषसेन का युद्ध | कर्ण का राजा युधिष्ठिर पर आक्रमण | कर्ण और युधिष्ठिर का संग्राम तथा कर्ण की मूर्छा | कर्ण द्वारा युधिष्ठिर की पराजय और तिरस्कार | पांडवों के हज़ारों योद्धाओं का वध | रक्त नदी का वर्णन और पांडव महारथियों द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | कर्ण और भीमसेन का युद्ध | कर्ण की मूर्छा और शल्य का उसे युद्धभूमि से हटा ले जाना | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के छ: पुत्रों का वध | भीम और कर्ण का घोर युद्ध | भीम के द्वारा गजसेना, रथसेना और घुड़सवारों का संहार | उभयपक्ष की सेनाओं का घोर युद्ध | कौरव-पांडव सेनाओं का घोर युद्ध और कौरव सेना का व्यथित होना | अर्जुन द्वारा दस हज़ार संशप्तक योद्धाओं और उनकी सेना का संहार | कृपाचार्य द्वारा शिखण्डी की पराजय | कृपाचार्य द्वारा सुकेतु का वध | धृष्टद्युम्न के द्वारा कृतवर्मा की पराजय | अश्वत्थामा का घोर युद्ध और सात्यकि के सारथि का वध | युधिष्ठिर का अश्वत्थामा को छोड़कर दूसरी ओर चले जाना | नकुल-सहदेव के साथ दुर्योधन का युद्ध | धृष्टद्युम्न से दुर्योधन की पराजय | कर्ण द्वारा पांचाल सेना सहित योद्धाओं का संहार | भीम द्वारा कौरव योद्धाओं का सेना सहित विनाश | अर्जुन द्वारा संशप्तकों का वध | अश्वत्थामा का अर्जुन से घोर युद्ध करके पराजित होना | दुर्योधन का सैनिकों को प्रोत्साहन देना और अश्वत्थामा की प्रतिज्ञा | अर्जुन का श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर के पास चलने का आग्रह | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धभूमि का दृश्य दिखाते हुए रथ को आगे बढ़ाना | धृष्टद्युम्न और कर्ण का युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न पर आक्रमण | अर्जुन द्वारा धृष्टद्युम्न की रक्षा और अश्वत्थामा की पराजय | श्रीकृष्ण का अर्जुन से दुर्योधन के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन से कर्ण के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्साहित करना | श्रीकृष्ण का अर्जुन से भीम के दुष्कर पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा शिखण्डी की पराजय | धृष्टद्युम्न और दु:शासन तथा वृषसेन और नकुल का युद्ध | सहदेव द्वारा उलूक की तथा सात्यकि द्वारा शकुनि की पराजय | कृपाचार्य द्वारा युधामन्यु की एवं कृतवर्मा द्वारा उत्तमौजा की पराजय | भीम द्वारा दुर्योधन की पराजय तथा गजसेना का संहार | युधिष्ठिर पर कौरव सैनिकों का आक्रमण | कर्ण द्वारा नकुल-सहदेव सहित युधिष्ठिर की पराजय | युधिष्ठिर का अपनी छावनी में जाकर विश्राम करना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | पांडवों द्वारा कौरव सेना में भगदड़ | कर्ण द्वारा भार्गवास्त्र से पांचालों का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन का भीम को युद्ध का भार सौंपना | श्रीकृष्ण और अर्जुन का युधिष्ठिर के पास जाना | युधिष्ठिर का अर्जुन से भ्रमवश कर्ण के मारे जाने का वृत्तान्त पूछना | अर्जुन का युधिष्ठिर से कर्ण को न मार सकने का कारण बताना | अर्जुन द्वारा कर्णवध हेतु प्रतिज्ञा | युधिष्ठिर का अर्जुन के प्रति अपमानजनक क्रोधपूर्ण वचन | अर्जुन का युधिष्ठिर के वध हेतु उद्यत होना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को बलाकव्याध और कौशिक मुनि की कथा सुनाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को धर्म का तत्त्व बताकर समझाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञाभंग, भ्रातृवध तथा आत्मघात से बचाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को सान्त्वना देकर संतुष्ट करना | अर्जुन से श्रीकृष्ण का उपदेश | अर्जुन और युधिष्ठिर का मिलन | अर्जुन द्वारा कर्णवध की प्रतिज्ञा और युधिष्ठिर का आशीर्वाद | श्रीकृष्ण और अर्जुन की रणयात्रा | अर्जुन को मार्ग में शुभ शकुन संकेतों का दर्शन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रोत्साहन देना | श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन के बल की प्रशंसा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्तेजित करना | अर्जुन के वीरोचित उद्गार | कौरव-पांडव सेना में द्वन्द्वयुद्ध तथा सुषेण का वध | भीम का अपने सारथि विशोक से संवाद | अर्जुन और भीम द्वारा कौरव सेना का संहार | भीम द्वारा शकुनि की पराजय | धृतराष्ट्रपुत्रों का भागकर कर्ण का आश्रय लेना | कर्ण के द्वारा पांडव सेना का संहार और पलायन | अर्जुन द्वारा कौरव सेना का विनाश करके रक्त की नदी बहाना | अर्जुन का श्रीकृष्ण से रथ कर्ण के पास ले चलने के लिए कहना | श्रीकृष्ण और अर्जुन को आते देख शल्य और कर्ण की बातचीत | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | अर्जुन का कौरव सेना को नष्ट करके आगे बढ़ना | अर्जुन और भीम के द्वारा कौरव वीरों का संहार | कर्ण का पराक्रम | सात्यकि के द्वारा कर्णपुत्र प्रसेन का वध | कर्ण का घोर पराक्रम | दु:शासन और भीमसेन का युद्ध | भीम द्वारा दु:शासन का रक्तपान और उसका वध | युधामन्यु द्वारा चित्रसेन का वध तथा भीम का हर्षोद्गार | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों का वध | कर्ण का भय और शल्य का समझाना | नकुल और वृषसेन का युद्ध | कौरव वीरों द्वारा कुलिन्दराज के पुत्रों और हाथियों का संहार | अर्जुन द्वारा वृषसेन का वध | कर्ण से युद्ध के विषय में श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन का कर्ण के सामने उपस्थित होना | कर्ण और अर्जुन का द्वैरथ युद्ध में समागम | कर्ण-अर्जुन युद्ध की जय-पराजय के सम्बंध में प्राणियों का संशय | ब्रह्मा और शिव द्वारा अर्जुन की विजय घोषणा | कर्ण की शल्य से और अर्जुन की श्रीकृष्ण से वार्ता | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार | अश्वत्थामा का दुर्योधन से संधि के लिए प्रस्ताव | दुर्योधन द्वारा अश्वत्थामा के संधि प्रस्ताव को अस्वीकार करना | कर्ण और अर्जुन का भयंकर युद्ध | अर्जुन के बाणों से संतप्त होकर कौरव वीरों का पलायन | श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन की सर्पमुख बाण से रक्षा | कर्ण के रथ का पहिया पृथ्वी में फँसना | अर्जुन से बाण न चलाने के लिए कर्ण का अनुरोध | श्रीकृष्ण का कर्ण को चेतावनी देना | अर्जुन के द्वारा कर्ण का वध | कर्णवध पर कौरवों का शोक तथा भीम आदि पांडवों का हर्ष | कर्णवध से दु:खी दुर्योधन को शल्य द्वारा सांत्वना | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदल सैनिकों का वध | अर्जुन द्वारा रथसेना का विध्वंस | दुर्योधन द्वारा कौरव सेना को रोकने का विफल प्रयास | शल्य के द्वारा रणभूमि का दिग्दर्शन | श्रीकृष्ण और अर्जुन का शिविर की ओर गमन | कौरव सेना का शिबिर की ओर पलायन | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को कर्णवध का समाचार देना | कर्णवध से प्रसन्न युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुन की प्रशंसा | कर्णपर्व के श्रवण की महिमा

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः