अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा की पराजय

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 64वें अध्याय में अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा की पराजय का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

अश्वत्‍थामा का अर्जुन और कृष्ण पर आक्रमण करना

संजय कहते हैं- राजन! द्रोणपुत्र अश्वत्‍थामा विशाल रथ सेना से घिरा सहसा वहाँ आ पहुँचा, जहाँ अर्जुन खड़े थे। भगवान श्रीकृष्‍ण जिनके सहायक थे, उन शूरवीर कुन्तिकुमार अर्जुन ने सहसा अपनी ओर आते हुए अश्वत्‍थामा को तत्‍काल उसी तरह रोक दिया, जैसे तटभूमि समुद्र को आगे बढ़ने से रोकती है। महाराज! तब क्रोध में भरे हुए प्रतापी द्रोणपुत्र ने अर्जुन और श्रीकृष्‍ण को अपने बाणों से ढक दिया। उस समय उन दोनों को बाणों द्वारा आच्‍छादित हुआ देख समस्‍त कौरव महारथी महान आश्चर्य में पड़कर उधर ही देखने लगे। भारत! तब अर्जुन ने हंसते हुए से दिव्‍यास्त्र प्रकट किया; परंतु ब्राह्मण अश्वत्‍थामा ने युद्धस्‍थल में उनके उस दिव्‍यास्त्र का निवारण कर दिया। रणभूमि में पाण्‍डुकुमार अर्जुन अश्वत्‍थामा के अस्त्रों को नष्‍ट करने के‍ लिये जो-जो अस्त्र चलाते थे, महाधनुर्धर द्रोणपुत्र अश्वत्‍थामा उनके उस-उस अस्त्र को काट गिराता था। राजन! इस प्रकार महाभयंकर अस्त्र युद्ध आरम्‍भ होने पर हम लोगों ने रणक्षेत्र में द्रोणपुत्र अश्वत्‍थामा को मुंह बाये हुए यमराज के समान देखा था। उसने सीधे जाने वाले बाणों के द्वारा सम्‍पूर्ण दिशाओं और कोणों को आच्‍छादित करके श्रीकृष्‍ण की दाहिनी भुजा में तीन बाण मारे।

अर्जुन का पराक्रम

तब अर्जुन ने उस महामनस्‍वी वीर के समस्‍त घोड़ों को मारकर समरभूमि में खून की नदी-सी बहा दी। वह रक्तमयी भयंकर सरिता परलोक वाहिनी थी और सब लोगों को अपने प्रवाह में बहाये लिये जाती थी। वहाँ खड़े हुए सब लोगों ने देखा कि अश्वत्‍थामा के सारे रथी अर्जुन के धनुष से छूटे हुए बाणों द्वारा युद्ध भूमि में मारे गये। स्‍वयं अश्वत्‍थामा ने भी उनकी वह अवस्‍था देखी। उस समय उसने भी महाभयंकर परलोक वाहिनी नदी बहा दी। अश्वत्‍थामा और अर्जुन के उस भयंकर एवं घमासान युद्ध में सब योद्धा मर्यादारहित होकर युद्ध करते हुए आगे पीछे सब ओर भागने लगे। रथों के घोड़े और सारथि मार दिये गये। घोड़ों के सवार नष्ट हो गये। गजारोही मार डाले गये और हाथी बचे रहे एवं कहीं हाथी ही मार डाले गये तथा महावत बचे रहे। राजन! इस प्रकार समरांगण में अर्जुन ने घोर जनसंहार मचा दिया। उनके धनुष से छूटे हुए बाणों द्वारा मारे जाकर बहुत से रथी धराशायी हो गये। घोड़ों के बन्‍धन खुल गये और वे चारों ओर दौड़ लगाने लगे।

अर्जुन और अश्वत्‍थामा का भीषण युद्ध

युद्ध में शोभा पाने वाले अर्जुन का वह पराक्रम देखकर पराक्रमी द्रोणकुमार अश्वत्‍थामा तुरंत उनके पास आ गया और अपने सुवर्णभूषित विशाल धनुष को हिलाते हुए उसने विजयी वीरों में श्रेष्‍ठ अर्जुन को पैने बाणों द्वारा सब ओर से ढक दिया। महाराज! तदनन्‍तर द्रोणकुमार ने धनुष खींचकर छोड़े हुए पंखयुक्त बाण से कुन्‍तीकुमार अर्जुन की छाती पर पुन: बड़े जोर से निर्दयतापूर्वक प्रहार किया। भारत! रणभूमि में द्रोणपुत्र के द्वारा अत्‍यन्‍त घायल किये गये उदार बुद्धि गाण्‍डीवधारी अर्जुन ने समरांगण में बलपूर्वक बाणों की वर्षा करके अश्वत्‍थामा को ढक दिया और उसके धनुष को भी काट डाला। धनुष कट जाने पर द्रोणपुत्र ने युद्धस्‍थल में एक ऐसा परिघ हाथ में लिया, जिसका स्‍पर्श वज्र के समान कठोर था। उसने उस परिघ को तत्‍काल ही किरीटधारी अर्जुन पर दे मारा।[1] राजन! उस सुवर्णभूषित परिघ को सहसा अपने ऊपर आते देख पाण्‍डुपुत्र अर्जुन ने हंसते हुए से उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये। नरेश्वर! जैसे वज्र का मारा हुआ पर्वत टूट-फूटकर सब ओर बिखर जाता है, उसी प्रकार अर्जुन के बाणों से कटा हुआ वह परिघ उस समय पृथ्‍वी पर गिर पड़ा।

महाराज! तब महारथी द्रोणपुत्र ने कुपित होकर अर्जुन पर ऐंद्रास्त्र द्वारा वेगपूर्वक बाणों की वर्षा आरम्‍भ कर दी। राजन! अर्जुन ने अश्वत्‍थामा द्वारा किये हुए इन्‍द्रजाल का विस्‍तार देखकर बड़े वेग से गाण्डीव धनुष हाथ में लिया और महेन्‍द्र द्वारा निर्मित उत्तम अस्त्र का आश्रय लेकर उस इन्‍द्र जाल का संहार कर दिया। इस प्रकार इन्‍द्रास्‍त्र द्वारा छोड़े गये उस बाण-जाल को विदीर्ण करके अर्जुन ने निकटवर्ती होकर क्षणभर में अश्वत्‍थामा के रथ को ढक दिया। उस समय अश्वत्‍थामा अर्जुन के बाणों से अभिभूत हो गया था। तदनन्‍तर अश्वत्‍थामा ने अपने बाणों द्वारा अर्जुन की उस बाण-वर्षा का निवारण करके अपना नाम प्रकाशित करते हुए सहसा सौ बाणों से श्रीकृष्‍ण को घायल कर दिया और अर्जुन पर भी तीन सौ बाणों का प्रहार किया। इसके बाद अर्जुन ने सौ बाणों से गुरुपुत्र के मर्मस्‍थानों को विदीर्ण कर दिया तथा आपके पुत्रों के देखते-देखते उसके घोड़ों, सारथि, धनुष और प्रत्‍यंचा पर बाणों की झड़ी लगा दी।[2]

अर्जुन द्वारा अश्वत्‍थामा की पराजय

शत्रुवीरों का संहार करने वाले पाण्‍डुपुत्र अर्जुन ने अश्वत्‍थामा के मर्मस्‍थानों में चोट पहुँचाकर एक भल्ल से उसके सारथि को रथ की बैठक से नीचे गिरा दिया। तब उसने स्‍वयं ही घोड़ों की बागडोर हाथ में लेकर श्रीकृष्‍ण और अर्जुन को बाणों से ढक दिया। वहाँ हमने द्रोण पुत्र का शीघ्र प्रकट होने वाला वह अभ्‍दुत पराक्रम देखा कि वह घोड़ों को भी काबू में रखता था और अर्जुन के साथ युद्ध भी करता था। राजन! समरांगण में भी सभी योद्धाओं ने उसके इस कार्य की पुरि-पुरि प्रशंसा की। तदनन्‍तर विजयी अर्जुन ने हंसकर युद्धस्‍थल में द्रोणपुत्र के घोड़ों की वागडोरों को क्षुरप्रों द्वारा शीघ्रता पूर्वक काट दिया। भारत! इसके बाद बाणों के वेग से अत्‍यन्‍त पीड़ित हुए उसके घोड़े वहाँ से भाग चले। उस समय वहाँ आपकी सेना में भयंकर कोलाहल मच गया।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 64 श्लोक 1-20
  2. 2.0 2.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 64 श्लोक 21-41

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