कर्ण और अर्जुन का भयंकर युद्ध

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 89वें अध्याय में कर्ण और अर्जुन के भयंकर युद्ध का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

कर्ण और अर्जुन का युद्ध के लिये आगे बढ़ना

संजय कहते हैं- राजन! तदनन्तर आपकी कुमन्त्रणा के फलस्वरूप जब वहाँ शंख और भेरियों की गम्भीर ध्वनि होने लगी, उस समय वहाँ श्वेत घोड़ों वाले दोनों नरश्रेष्ठ वैकर्तन कर्ण और अर्जुन युद्ध के लिये एक दूसरे की ओर बढे़। ये दोनों यशस्वी वीर उस समय दो विषधर सर्पों के समान लंबी साँस खींचकर मानो अपने भूखों से धूमरहित अग्नि ने सदृश वैर भाव प्रकट कर रहे थे। वे घी की आहुति से प्रज्वलित हुई दो अग्नियों की भाँति युद्धभूमि में देदीप्यमान होने लगे। जैसे मद की धारा बहाने वाले हिमाचल प्रदेश के बड़े-बड़े़ दाँतों वाले दो हाथी किसी हथिनी के लिये लड़ रहे हों, उसी प्रकार भयंकर पराक्रमी वीर अर्जुन और कर्ण युद्ध के लिये एक-दूसरे के समान आये।

कर्ण और अर्जुन के बीच घमासान संग्राम

जिनके शिखर, वृक्ष, लता-गुल्म और औषधि सभी विशाल एवं बढे़ हुए हों तथा जो नाना प्रकार के बड़े-बड़े़ झरनों के उद्रमस्थान हों, ऐसे दो पर्वतों के समान वे महाबली कर्ण और अर्जुन आगे बढ़कर अपने महान अस्त्रों द्वारा एक-दूसरे आघात करने लगे। उन दोनों का वह संग्राम वैसा ही महान था, जैसा कि पूर्वकाल में इन्द्र और बलि का युद्ध हुआ था। बाणों के आघात से उन दोनों के शरीर, सारथि और घोडे़ क्षत-विक्षत हो गये थे और वहाँ कटु रक्तरूपी जल का प्रवाह बह रहा था। वह युद्ध दूसरों के लिये अत्यन्त दुःसह था। जैसे प्रचुर पद्य, उत्पल, मत्स्य और कच्छपों से युक्त तथा पक्षिसमुहों से आवृत दो अत्यन्त निकटवर्ती विशाल सरोवर वायु से संचालित हो परस्पर मिल जायँ, उसी प्रकार ध्वजों से सुशोभित उनके वे दोनों रथ एक दूसरे से भिड़ गये थे। वे दोनों वीर इन्द्र के समान पराक्रमी और उन्हीं के सदृश महारथी थे। इन्द्र के वज्रतुल्य बाणों से इन्द्र और वृत्रासुर के समान वे एक दूसरे को चोट पहुँचाने लगे। विचित्र कवच, आभूषण, वस्त्र और आयुध धारण करने वाली, हाथी, घोडे़, रथ और पैदलों सहित उभय पक्ष की चतुरंगिणी सेनाएँ अर्जुन और कर्ण के उस युद्ध में भय के कारण आश्चर्यजनक-रूप से काँपते लगीं तथा आकाशवर्ती प्राणी भी भय से थर्रा उठे। जैसे मतवाला हाथी किसी हाथी पर आक्रमण करता है, उसी प्रकार अर्जुन जब कर्ण के वध की इच्छा से उस पर धावा करने लगे, उस समय दर्शकों ने आनंदित हो सिंहनाद करते हुए अपने हाथ ऊपर उठा दिये और अगुलियों में वस्त्र लेकर उन्हें हिलाना आरम्भ किया।

जब महासमर में अपराह्न के समय पर्वत पर जाने वाले मेघ के समान सूतपुत्र कर्ण ने अर्जुन पर आक्रमण किया, उस समय कौरवों और सोमकों का महान कोलाहल सब ओर प्रकट होने लगा। उसी समय उन दोनों रथों का संघर्ष आरम्भ हुआ। उस महायुद्ध में रक्त और मांस की कीच जम गयी थी। उस समय सोमकों ने आगे बढ़कर वहाँ कुन्तीकुमार से पुकार-पुकारकर कहा-अर्जुन! तुम कर्ण को मार डालो। अब देर करने की आवश्यकता नहीं है। कर्ण के मस्तक और दुर्योधन की राज्य प्राप्ति की आशा दोनों को एक साथ ही काट डालो। इसी प्रकार हमारे पक्ष के बहुत से योद्धा कर्ण को प्रेरित करते हुए बोले-कर्ण! आगे बढ़ो, आगे बढ़ो। अपने पैने बाणों से अर्जुन को मार डालो, जिससे कुन्ती के सभी पुत्र पुनः दीर्घकाल के लिये वन में चले जायँ।[1]

अर्जुन द्वारा आग्नेयास्त्र का प्रयोग करना

तदनन्तर वहाँ कर्ण ने पहले इस विशाल बाणों द्वारा अर्जुन को बींध डाला, तब अर्जुन ने भी हँसकर तीखी धारवाले दस बाणों से कर्ण की काँख में प्रहार किया। सूतपुत्र कर्ण और अर्जुन दोनों उस युद्ध में अत्यन्त हर्ष में भरकर सुन्दर पंख वाले बाणों द्वारा एक दूसरे को क्षत-विक्षत करने लगे। वे परस्पर क्षति पहुँचाते और भयानक आक्रमण करते थे। तत्पश्चात् भयंकर धनुष वाले अर्जुन ने अपनी दोनों भुजाओं तथा गाण्डीव धनुष को पोंछकर नाराच, नालीक, वराह कर्ण, क्षुर, अंजलिक तथा धर्मचन्द्र आदि बाणों का प्रहार आरम्भ किया। राजन! वे अर्जुन के बाण कर्ण के रथ में घुसकर सब ओर बिखर जाते थे। ठीक उसी तरह, जैसे संध्या के समय पक्षियों के झुंड बसेरा लेने के लिये नीचे मुख किये शीघ्र ही किसी वृक्ष पर जा बैठते हैं। नरेश्वर! शत्रुविजयी अर्जुन भौंहें टेढ़ी करके कटाक्ष-पूर्वक देखते हुए कर्ण पर जिन-जिन बाणों का प्रहार करते थे, पाण्डुपुत्र अर्जुन के चलाये हुए उन सभी बाण समूहों को सूतपुत्र कर्ण शीघ्र ही नष्ट कर देता था। तब इन्द्रकुमार अर्जुन ने कर्ण पर शत्रुनाशक आग्नेयास्त्र का प्रयोग किया। उस आग्नेयास्त्र का स्वरूप पृथ्वी, आकाश, दिशा तथा सूर्य के मार्ग को व्याप्त करके वहाँ प्रज्वलित हो उठा। इससे वहाँ समस्त योद्धाओं के वस्त्र जलने लगे। कपड़े जल जाने से वे सब-के-सब वहाँ से भाग चले। जैसे जंगल के बीच बाँस के वन में आग लगने पर जोर-जोर से चटकने की आवाज होती है, उसी प्रकार आग की लपट में झुलसते हुए सैनिकों का अत्यन्त भयंकर आर्तनाद होने लगा।[2]

कर्ण द्वारा वारुणास्त्र का प्रयोग करना

प्रतापी सूतपुत्र कर्ण ने उस आग्नेयास्त्र को उद्दीप्त हुआ देखकर रणक्षेत्र में उसकी शांति के लिये वारुणास्त्र प्रयोग किया और उसके द्वारा उस आग को बुझा दिया। फिर तो बड़े वेग से मेघों की घटा घिर आयी और उसने सम्पूर्ण दिशाओं को अन्धकार से आच्छादित कर दिया। दिशाओं का अंतिम भाग काले पर्वत के समान दिखायी देने लगा। मेघों की घटाओं ने वहाँ का सारा प्रदेश जल से आप्लावित कर दिया था। उन मेघों ने वहाँ पूवोक्त रूप से बढ़ी हुई अति प्रचण्ड आग को बड़े वेग से बुझा दिया। फिर समस्त दिशाओं और आकाश में वे ही छा गये। मेघों से घिरकर सारी दिशाएँ अन्धकाराच्छन्न हो गयीं; अतः कोई भी वस्तु दिखायी नहीं देती थी।

अर्जुन और कर्ण द्वारा अस्त्रों का प्रयोग करना

तदनन्तर कर्ण की ओर से आये हुए सम्पूर्ण मेघसमूहों को वायव्यास्त्र से छिन्न-भिन्न करके शत्रुओं के लिये अजेय अर्जुन ने गाण्डीव धनुष, उसकी प्रत्यंचा तथा बाणों को अभिमंत्रित करके अत्यन्त प्रभावशाली वज्रास्त्र को प्रकट किया, जो देवराज इन्द्र का प्रिय अस्त्र है। उस गाण्डीव धनुष से क्षुरप्र, अंजलिक, अर्धचन्द्र, नालीक, नाराच और वराहकर्ण आदि तीखे अस्त्र हजारों की संख्या में छूटने लगे। वे सभी अस्त्र वज्र के समान वेगशाली थे। वे महाप्रभावशाली, गीध के पंखों से युक्त, तेज धारवाले और अतिशय वेगवान अस्त्र कर्ण के पास पहुँचकर उसके समस्त अंगों में, घोड़ों पर, धनुष में तथा रथ के जुओं, पहियों और ध्वजों में जा लगे। जैसे गरुड़ से डरे हुए सर्प धरती छेदकर उसके भीतर घुस जाते हैं, उसी प्रकार वे तीखें अस्त्र उपयुक्त वस्तुओं को विदीर्ण कर शीघ्र ही उनके भीतर घुँस गये। कर्ण के सारे अंग बाणों से भर गये। सम्पूर्ण शरीर रक्त से नहा उठा। इससे उसके नेत्र उस समय क्रोध से घूमने लगे। उस महामनस्वी वीर ने अपने धनुष को जिसकी प्रत्यंचा सुदृढ़ थी, झुकाकर समुद्र के समान गम्भीर गर्जना करने वाले भार्गवास्त्र को प्रकट किया और अर्जुन के महेन्द्रास्त्र से प्रकट हुए बाण-समुहों के टुकडे़-टुकडे़ करके अपने अस्त्र से उनके अस्त्र को दबाकर युद्धस्थल में रथों, हाथियों और पैदल-सैनिकों का संहार कर डाला।[2] अमर्षशील कर्ण उस महासमर में भार्गवास्त्र के प्रताप से देवराज इन्द्र के समान पराक्रम प्रकट कर रहा था।

कर्ण द्वारा पांचाल योद्धाओं को विर्दीण करना

क्रोध में भरे हुए वेगशाली सूतपुत्र कर्ण ने अच्छी तरह छोड़े गये और शिला पर तेज किये हुए सुवर्णमय पंखवाले बाणों द्वारा युद्धस्थल में हठपूर्वक मुख्य-मुख्य पांचाल योद्धाओं को घायल कर दिया। राजन! समरांगण कर्ण के बाणसमूहों से पीड़ित होते हुए पांचाल और सोमक योद्धा भी क्रोधपूर्वक एकत्र हो अपने पैने बाणों से सूतपुत्र कर्ण को बींधने लगे। किंतु उस रणक्षेत्र में सूतपुत्र कर्ण ने बाणसमूहों द्वारा हर्ष और उत्साह के साथ पांचाल के रथियों, हाथीसवारों और घुड़सवारों को घायल करके बड़ी पीड़ा दी और उन्हें बाणों से मार डाला। कर्ण के बाणों से उनके शरीरों के टुकडे़-टुकडे़ हो गये और वे प्राणशून्य होकर कराहते हुए पृथ्वी पर गिर पड़े। जैसे विशाल वन में भयानक बलशाली और क्रोध में भरे हुए सिंह से विदीर्ण किये गये हाथियों के झुंड धराशायी हो जाते हैं, वैसी ही दशा उन पांचाल योद्धाओं की भी हुई। राजन! पांचालों के समस्त श्रेष्ठ योद्धाओं का बलपूर्वक वध करके उदार वीर कर्ण आकाश में प्रचण्ड किरणों वाले सूर्य के समान प्रकाशित होने लगा। उस समय आपके सैनिक कर्ण की विजय समझकर बड़े प्रसन्न हुए और सिंहनाद करने लगे।[3]

भीम का अर्जुन को कर्ण के वध के लिये उद्यत करना

कौरवेन्द्र! उन सब ने यही समझा कि कर्ण ने श्रीकृष्ण और अर्जुन को बहुत घायल कर दिया है। महारथी कर्ण का वह शत्रुओं के लिये असह्य वैसा पराक्रम दृष्टिपथ में लाकर तथा रणभूमि में कर्ण द्वारा अर्जुन के उस अस्त्रों को नष्ट हुआ देखकर अमर्षशील वायुपुत्र भीमसेन हाथ-से-हाथ मलने लगे। उनके नेत्र क्रोध से प्रज्वलित हो उठे। हृदय में अमर्ष और क्रोध का प्रादुर्भाव हो गया; अतः वे सत्यप्रतिज्ञ अर्जुन से इस प्रकार बोले-विजयी अर्जुन! तुम्हें तो पूर्वकाल में देवता भी नहीं जीत सके थे। कालकेय दानव भी नहीं परास्त कर सके थे। तुम साक्षात भगवान शंकर की भुजाओं से टक्कर ले चुके हो तो भी इस सूतपुत्र ने तुम्हें पहले ही दस बाण मारकर कैसे बींध डाला? तुम्हारे चलाये हुए बाणसमूहों को इसने नष्ट कर दिया, यह तो आज मुझे बड़े आश्चर्य की बात जान पड़ती है। सव्यसाची अर्जुन! कौरव-सभा में द्रौपदी को दिये गये उन क्लेशों को तो याद करो। इस पाप बुद्धि दुरात्मा सूतपुत्र ने जो निर्भय होकर हम लोगों को थोथे तिलों के समान नपुंसक बताया था और बहुत-सी अत्यन्त तीखी एवं रूखी बातें सुनायी थीं, उन सबको यहाँ याद करके तुम पापी कर्ण को शीघ्र ही युद्ध में मार डालो। किरीटधारी पार्थ! तुम क्यों इसकी उपेक्षा करते हो? आज यहाँ यह उपेक्षा करने का समय नहीं है। तुमने जिस धैर्य से खाण्डव वन में अग्नि देव को ग्रास समर्पित करते हुए समस्त प्राणियों पर विजय पायी थी, उसी धैर्य के द्वारा सूतपुत्र को मार डालो। फिर में भी इसे अपनी गदा से कुचल डालूँगा।

कृष्ण का अर्जुन को समझाना

तदनन्तर वसुदेवनन्दन भगवान श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन के रथ सम्बन्धी बाणों को कर्ण के द्वारा नष्ट होते देख उनसे इस प्रकार कहा किरीटधारी अर्जुन! यह क्या बात है? तुमने अब तक जितने बार प्रहार किये हैं, उन सब में कर्ण ने तुम्हारे अस्त्र को अपने अस्त्रों द्वारा नष्ट कर दिया है। वीर! आज तुम पर कैसा मोह छा रहा है? तुम सावधान क्यों नहीं होते? देखो, ये तुम्हारे शत्रु कौरव अत्यन्त हर्ष में भरकर सिंहनाद कर हरे हैं![3] कर्ण को आगे करके सब लोग यही समझ रहे हैं कि तुम्हारा अस्त्र उसके अस्त्रों द्वारा नष्ट होता जा रहा है। तुमने जिस धैर्य से प्रत्येक युग में घोर राक्षसों का, उनके मायामय तामस अस्त्र तथा दम्भोद्धव नाम वाले असुरों का युद्धस्थलों में विनाश किया है, उसी धैर्य से आज तुम कर्ण को भी मार डालो। तुम मेरे दिये हुए इस सुदर्शन चक्र के द्वारा जिसके नेमि भाग में (किनारे) क्षुर लगे हुए हैं, आज बलपूर्वक शत्रु का मस्तक काट डालो। जैसे इन्द्र ने वज्र के द्वारा अपने शत्रु नमुचि का सिर काट दिया था। वीर! तुमने अपने जिस उत्तम धैर्य के द्वारा किरातरूप धारी महात्मा भगवान शंख को संतुष्ट किया था, उसी धैर्य को पुनः अपना कर सगे-सम्बन्धयों सहित सूतपुत्र का वध कर डालो। पार्थ! तत्पश्चात् समुद्र से घिरी हुई नगरों और गाँवों से युक्त तथा शत्रुसमुदाय से शून्य वह समृद्धि शालिनी पृथ्वी राजा युधिष्ठिर को दे दो और अनुपम यश प्राप्त करो।[4]

भीमसेन और श्रीकृष्ण के इस प्रकार प्रेरणा देने और कहने पर अत्यन्त बलशाली महात्मा अर्जुन ने सूतपुत्र के वध का विचार किया। उन्होंने अपने स्वरूप स्मरण करके सब बातों पर दृष्टिपात किया और इस युद्धभूमि में अपने आगमन के प्रयोजन को समझकर श्रीकृष्ण से इस प्रकार कहा- प्रभो! मैं जगत के कल्याण और सूतपुत्र वध के लिये अब एक महान एवं भयंकर अस्त्र प्रकट कर रहा हूँ। इसके लिये आप, ब्रह्मा जी को नमस्कार करके जिसका मन से ही प्रयोग किया जात है, उस असह्य एवं उत्तम ब्रह्मास्त्र को प्रकट किया। परंतु जैसे मेघ जल की धारा गिराता है, उसी प्रकार बाणों की बौछार से कर्ण उस अस्त्र को नष्ट करके बड़ी शोभा पाने लगा। रणभूमि में किरीटधारी अर्जुन के उस अस्त्र को कर्ण द्वारा नष्ट हुआ देख अमर्षशील बलवान भीमसेन पुनः क्रोध से जल उठे और सत्य प्रतिज्ञ अर्जुन से इस प्रकार बोले-सव्यसचिन! सब लोग कहते हैं कि तुम परम उत्तम एवं मन के द्वारा प्रयोग करने योग्य महान ब्रह्मास्त्र के ज्ञाता हो; इसलिये तुम दूसरे किसी श्रेष्ठ अस्त्र का प्रयोग करो। उनके ऐसा कहने पर सव्यसाची अर्जुन ने दूसरे दिव्यास्त्र का प्रयोग किया। इससे महातेजस्वी अर्जुन ने अपने गाण्डीव धनुष से छुटे हुए सर्पो के समान भयंकर और सूर्य-किरणों के तुल्य तेजस्वी बाणों द्वारा सम्पूर्ण दिशाओं को आच्छादित कर दिया, कोना-कोना ढक दिया।

अर्जुन द्वारा कौरव सेना का संहार करना

भरतश्रेष्ठ अर्जुन के छोड़े हुए प्रलयकालीन सूर्य और अग्नि किरणों के समान प्रकाशित होने वाले दस हजार बाणों ने क्षणभर में कर्ण के रथ को आच्छादित कर दिया। उस दिव्यास्त्र से शूल, फरसे, चक्र और सैकड़ों नाराच आदि घोरतर अस्त्र-शस्त्र प्रकट होने लगे, जिनसे सब ओर के योद्धाओं का विनाश होने लगा। उस युद्धस्थल में किसी शत्रुपक्षीय योद्धा का सिर धड़ से कटकर धरती पर गिर पड़ा। उसे देखकर दूसरा भी भय के मारे धराशायी हो गया। उसको गिरा हुआ देख तीसरा योद्धा वहाँ से भाग खड़ा हुआ। किसी दूसरे योद्धा की हाथी की सूँड़ के समान मोटी दाहिनी बाँह तलवार सहित कटकर गिर पड़ी। दूसरे की बायीं भुजा क्षुरों द्वारा कवच के साथ कटकर भूमि पर गिर गयी। इस प्रकार किरीटधारी अर्जुन ने शत्रुपक्ष के सभी मुख्य-मुख्य योद्धाओं का संहार कर डाला। उन्होंने शरीर का अन्त कर देने वाले घोर बाणों द्वारा दुर्योधन की सारी सेना का विध्वंस कर दिया।

अर्जुन और कर्ण द्वारा बाणवर्षा करना

इसी प्रकार वैकर्तन कर्ण ने भी समरांगण में सहस्रों बाण समूहों की वर्षा की।[4] वे बाण मेघों की बरसायी हुई जलधाराओं के समान शब्द करते हुए पाण्डुपुत्र अर्जुन को जा लगे। तत्पश्चात् अप्रतिम प्रभावशाली और भयंकर बलवान कर्ण ने तीन तीन बाणों से श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीमसेन को घायल करके बड़े जोर से भयानक गर्जना की। कर्ण के बाणों से घायल हुए किरीटधारी कुन्तीकुमार अर्जुन भीमसेन तथा भगवान श्रीकृष्ण को भी उसी प्रकार क्षत-विक्षत देखकर सहन न कर सके; अतः उन्होंने अपने तरकस से पुनः अठारह बाण निकाले। एक बाण से कर्ण की ध्वजा को बींधकर अर्जुन ने चार बाणों से शल्य को और तीन बाणों से कर्ण को घायल कर दिया।। तत्पश्चात् उन्होंने दस बाण छोड़कर सुवर्णमय कवच धारण करने वाले सभापति नामक राजकुमार को मार डाला। वह राजकुमार मस्तक, भुजा, घोडे़, सारथि, धनुष और ध्वज रहित हो मरकर रथ के अग्रभाग से नीचे गिर पड़ा, मानों फरसों से काटा गया शालवृक्ष टूटकर धराशायी हो गया हो। इसके बाद अर्जुन ने पुनः तीन, आठ, दो, चार, और दस बाणों द्वारा कर्ण को बारंबार घायल करके अस्त्र-शस्त्रधारी सवारों सहित चार सौ हाथियों को मारकर आठ सौ रथों को नष्ट कर दिया। तदनन्तर सवारों सहित हजारों घोड़ों और सहस्रों पैदल वीरों को मारकर रथ, सारथि और ध्वजसहित कर्ण को भी शीघ्रगामी बाणों द्वारा ढक्कर अदृश्य कर दिया।[5]

अर्जुन की मार खाते हुए कौरव सैनिक चारों ओर से कर्ण को पुकारने लगे- कर्ण! शीघ्र बाण छोड़ों और अर्जुन को घायल कर डालो। कहीं ऐसा न हो कि ये पहले ही समस्त कौरवों का वध कर डालें। इस प्रकार प्रेरणा मिलने पर कर्ण ने सारी शक्ति लगाकर बारंबार बहुत-से बाण छोड़े। रक्त और धूल में सने हुए वे मर्मभेदी बाण पाण्डव और पांचालों का विनाश करने लगे। वे दोनों सम्पूर्ण धनुर्धरों में श्रेष्ठ, महाबली, सारे शत्रुओं का सामना करने में समर्थ और अस्त्रविद्या के विद्वान थे; अतः भयंकर शत्रुसेना को तथा आपस में भी एक दूसरे को महान अस्त्रों द्वारा घायल करने लगे। तत्पश्चात् शिविर में हितैषी वैद्य शिरोमणियों ने मन्त्र और औषधियों द्वारा राजा युधिष्ठिर के शरीर से बाण निकालकर उन्हें रोगरहित (स्वस्थ) कर दिया; इसलिये वे बड़ी उतावली के साथ सुवर्णमय कवच धारण करके वहाँ युद्ध देखने के लिये आये। धर्मराज को युद्धस्थल में आया हुआ देख समस्त प्राणी बड़ी प्रसन्नता के साथ अभिनन्दन करने लगे। ठीक उसी तरह, जैसे राहु के ग्रहण से छूटे हुए निर्मल एवं सम्पूर्ण चन्द्रमा को उदित देख सब लोग बडे़-प्रसन्न होते हैं। परस्पर जूझते हुए उन दोनों शत्रुनाशक एवं प्रधान शूरवीर कर्ण और अर्जुन को देखकर उन्हीं की ओर दृष्टि लगाये आकाश और भूतल में ठहरे हुए सभी दर्शक अपनी-अपनी जगह स्थिर भाव से खड़े रहे।

कर्ण का पराक्रम

उस समय वहाँ अर्जुन और कर्ण उत्तम बाणों द्वारा एक दूसरे को चोट पहुँचा रहे थे। उनके धनुष, प्रत्यंचा और हथेली का संघर्ष बड़ा भयंकर होता जा रहा था और उससे उत्तमोत्तम बाण छूट रहे थे। इसी समय पाण्डुपुत्र अर्जुन के धनुष की डोरी अधिक खींची जाने के कारण सहसा भारी आवाज के साथ टूट गया। उस अवसर पर सूतपुत्र कर्ण ने पाण्डुकुमार अर्जुन को सौ बाण मारे। फिर तेल के धाये और पक्षियों के पंख लगाये गये, केंचुल छोड़कर निकले हुए सर्पो के समान भयंकर साठ बाणों द्वारा वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण को भी क्षत-विक्षत कर दिया। इसके बाद पुनः अर्जुन को आठ बाण मारे।[5] तदनन्तर सूर्यकुमार कर्ण ने दस हजार उत्तम बाणों द्वारा वायु पुत्र भीमसेन के मर्मस्थानों पर गहरा आघात किया। साथ ही, श्रीकृष्ण, अर्जुन और उनके रथ की ध्वजा को, उनके छोटे भाईयों को तथा सोमकों को भी उसने मार गिराने का प्रयत्न किया। जब जैसे मेघों के समूह आकाश में सूर्य को ढक लेते हैं, उसी प्रकार सोमकों ने अपने बाणों द्वारा कर्ण को आच्छादित कर दिया; परंतु सूतपुत्र अस्त्रविद्या का महान पण्डित था, उसने अनेक बाणों द्वारा अपने ऊपर आक्रमण करते हुए सोमकों को जहाँ-के-तहाँ रोक दिया। राजन! उनके चलाये हुए सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रों का नाश करके सूतपुत्र ने उनके बहुत-से रथों, घोड़ों और हाथियों का भी संहार कर डाला और अपने बाणों द्वारा शत्रुपक्ष के प्रधान-प्रधान योद्धाओं को पीड़ा देना प्रारम्भ किया। उन सबके शरीर कर्ण के बाणों से विदीर्ण हो गये और वे आर्तनाद करते हुए प्राणशून्य हो पृथ्वी पर गिर पड़े। जैसे क्रोध में भरे हुए भयंकर बलशाली सिंह ने कुत्तों के महाबली समुदाय को मार गिराया हो, वही दशा सोमकों की हुई। पांचालों के प्रधान-प्रधान सैनिक तथा दूसरे योद्धा पुनः कर्ण और अर्जुन के बीच में आ पहुँचे; परंतु बलवान कर्ण ने अच्छी तरह छोड़े हुए बाणों द्वारा उन सबको हठपूर्वक मार गिराया। फिर तो आपके सैनिक कर्ण की बड़ी भारी विजय मानकर ताली पीटने और सिंहनाद करने लगे। उन सबने यह समझ लिया कि इस युद्ध में श्रीकृष्ण और अर्जुन कर्ण के वश में हो गये।[6]

अर्जुन का पराक्रम

तब कर्ण के बाणों से जिनका अंग-अंग क्षत-विक्षत हो गया था, उन कुन्तीकुमार अर्जुन ने रणभूमि में अत्यन्त कुपित हो शीघ्र ही धनुष की प्रत्यंचा को झुकाकर चढ़ा दिया और कर्ण के चलाये हुए बाणों को छिन्न-भिन्न करके कौरवों को आगे बढ़ने से रोक दिया। तत्पश्चात् किरीटधारी अर्जुन ने धनुष की प्रत्यंचा को हाथ से रगड़कर कर्ण के दस्ताने पर आघात किया और सहसा बाणों का जाल फैलाकर वहाँ अन्धकार कर दिया। फिर कर्ण, शल्य और समस्त कौरवों को अपने बाणों द्वारा बलपूर्वक घायल किया। अर्जुन के महान अस्त्रों द्वारा आकाश में घोर अंधकार फैल जाने से उस समय वहाँ पक्षी भी नहीं उड़ पाते थे। तब अन्तरिक्ष में खडे़ हुए प्राणि समूहों से प्रेरित होकर तत्काल वहाँ दिव्य सुगन्धित वायु चलने लगी। इसी समय कुन्तीकुमार अर्जुन ने हँसते-हँसते दस बाणों से शल्य को गहरी चोट पहुँचायी और उनके कवच को छिन्न-भिन्न कर डाला। फिर अच्छी तरह छोड़े हुए बारह बाणों से कर्ण को घायल करके पुनः उसे सात बाणों से बींध डाला।[6]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 89 श्लोक 1-12
  2. 2.0 2.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 89 श्लोक 13-27
  3. 3.0 3.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 89 श्लोक 28-43
  4. 4.0 4.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 89 श्लोक 44-60
  5. 5.0 5.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 89 श्लोक 61-75
  6. 6.0 6.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 89 श्लोक 76-89

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जनमेजय का वैशम्पायन से कर्णवध वृत्तान्त कहने का अनुरोध | धृतराष्ट्र और संजय का वार्तालाप | दुर्योधन का सेना को आश्वासन तथा कर्णवध का संक्षिप्त वृत्तान्त | धृतराष्ट्र का शोक और समस्त स्त्रियों की व्याकुलता | संजय का कौरव पक्ष के मारे गये प्रमुख वीरों का परिचय देना | कौरवों द्वारा मारे गये प्रधान पांडव पक्ष के वीरों का परिचय | कौरव पक्ष के जीवित योद्धाओं का वर्णन और धृतराष्ट्र की मूर्छा | कर्ण के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप | धृतराष्ट्र का संजय से कर्णवध का विस्तारपूर्वक वृत्तान्त पूछना | कर्ण को सेनापति बनाने के लिए अश्वत्थामा का प्रस्ताव | कर्ण का सेनापति पद पर अभिषेक | कर्ण के सेनापतित्व में कौरवों द्वारा मकरव्यूह का निर्माण | पांडव सेना द्वारा अर्धचन्द्राकार व्यूह की रचना | कौरव और पांडव सेनाओं का घोर युद्ध | भीमसेन द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | सात्यकि द्वारा विन्द और अनुविन्द का वध | द्रौपदीपुत्र श्रुतकर्मा द्वारा चित्रसेन का वध | द्रौपदीपुत्र प्रतिविन्ध्य द्वारा चित्र का वध | अश्वत्थामा और भीमसेन का युद्ध तथा दोनों का मूर्छित होना | अर्जुन का संशप्तकों के साथ युद्ध | अर्जुन का अश्वत्थामा के साथ अद्भुत युद्ध | अर्जुन के द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | अर्जुन के द्वारा दण्डधार का वध | अर्जुन के द्वारा दण्ड का वध | अर्जुन के द्वारा संशप्तक सेना का संहार | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धस्थल का दृश्य दिखाते हुए उनकी प्रशंसा करना | पाण्ड्य नरेश का कौरव सेना के साथ युद्धारम्भ | अश्वत्थामा के द्वारा पाण्ड्य नरेश का वध | कौरव-पांडव दलों का भयंकर घमासान युद्ध | पांडव सेना पर भयानक गजसेना का आक्रमण | पांडवों द्वारा बंगराज तथा अंगराज का वध | कौरवों की गजसेना का विनाश और पलायन | सहदेव के द्वारा दु:शासन की पराजय | नकुल और कर्ण का घोर युद्ध | कर्ण के द्वारा नकुल की पराजय | कर्ण के द्वारा पांचाल सेना का संहार | युयुत्सु और उलूक का युद्ध तथा युयुत्सु का पलायन | शतानीक और श्रुतकर्मा का युद्ध | सुतसोम और शकुनि का घोर युद्ध | कृपाचार्य से धृष्टद्युम्न का भय | कृतवर्मा के द्वारा शिखण्डी की पराजय | अर्जुन द्वारा श्रुतंजय, सौश्रुति तथा चन्द्रदेव का वध | अर्जुन द्वारा सत्यसेन का वध तथा संशप्तक सेना का संहार | युधिष्ठिर और दुर्योधन का युद्ध | उभयपक्ष की सेनाओं का अमर्यादित भयंकर संग्राम | युधिष्ठिर के द्वारा दुर्योधन की पराजय | कर्ण और सात्यकि का युद्ध | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार और पांडवों की विजय | कौरवों की रात्रि में मन्त्रणा | धृतराष्ट्र के द्वारा दैव की प्रबलता का प्रतिपादन | संजय द्वारा धृतराष्ट्र पर दोषारोप | कर्ण और दुर्योधन की बातचीत | दुर्योधन की शल्य से कर्ण का सारथि बनने के लिए प्रार्थना | कर्ण का सारथि बनने के विषय में शल्य का घोर विरोध करना | शल्य द्वारा कर्ण का सारथि कर्म स्वीकार करना | दुर्योधन द्वारा शल्य से त्रिपुरों की उत्पत्ति का वर्णन करना | इंद्र आदि देवताओं का शिव की शरण में जाना | इंद्र आदि देवताओं द्वारा शिव की स्तुति करना | देवताओं की शिव से त्रिपुरों के वध हेतु प्रार्थना | दुर्योधन द्वारा शल्य को शिव के विचित्र रथ का विवरण सुनाना | देवताओं का ब्रह्मा को शिव का सारथि बनाना | शिव द्वारा त्रिपुरों का वध करना | परशुराम द्वारा कर्ण को दिव्यास्त्र प्राप्ति का वर्णन | शल्य और दुर्योधन का वार्तालाप | कर्ण का सारथि होने के लिए शल्य की स्वीकृति | कर्ण का युद्ध हेतु प्रस्थान और शल्य से उसकी बातचीत | कौरव सेना में अपशकुन | कर्ण की आत्मप्रशंसा | शल्य द्वारा कर्ण का उपहास और अर्जुन के बल-पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा श्रीकृष्ण-अर्जुन का पता देने वाले को पुरस्कार देने की घोषणा | शल्य का कर्ण के प्रति अत्यन्त आक्षेपपूर्ण वचन कहना | कर्ण का शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्रदेश के निवासियों की निन्दा | कर्ण द्वारा शल्य को मार डालने की धमकी देना | शल्य का कर्ण को हंस और कौए का उपाख्यान सुनाना | शल्य द्वारा कर्ण को श्रीकृष्ण और अर्जुन की शरण में जाने की सलाह | कर्ण का शल्य से परशुराम द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का अभिमानपूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण का शल्य से ब्राह्मण द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का आत्मप्रशंसापूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्र आदि बाहीक देशवासियों की निन्दा | कर्ण का मद्र आदि बाहीक निवासियों के दोष बताना | शल्य का कर्ण को उत्तर और दुर्योधन का दोनों को शान्त करना | कर्ण द्वारा कौरव सेना की व्यूह रचना | युधिष्ठिर के आदेश से अर्जुन का आक्रमण | शल्य द्वारा पांडव सेना के प्रमुख वीरों का वर्णन | शल्य द्वारा अर्जुन की प्रशंसा | कौरव-पांडव सेना का भयंकर युद्ध तथा अर्जुन और कर्ण का पराक्रम | कर्ण द्वारा कई योद्धाओं सहित पांडव सेना का संहार | भीम द्वारा कर्णपुत्र भानुसेन का वध | नकुल और सात्यकि के साथ वृषसेन का युद्ध | कर्ण का राजा युधिष्ठिर पर आक्रमण | कर्ण और युधिष्ठिर का संग्राम तथा कर्ण की मूर्छा | कर्ण द्वारा युधिष्ठिर की पराजय और तिरस्कार | पांडवों के हज़ारों योद्धाओं का वध | रक्त नदी का वर्णन और पांडव महारथियों द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | कर्ण और भीमसेन का युद्ध | कर्ण की मूर्छा और शल्य का उसे युद्धभूमि से हटा ले जाना | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के छ: पुत्रों का वध | भीम और कर्ण का घोर युद्ध | भीम के द्वारा गजसेना, रथसेना और घुड़सवारों का संहार | उभयपक्ष की सेनाओं का घोर युद्ध | कौरव-पांडव सेनाओं का घोर युद्ध और कौरव सेना का व्यथित होना | अर्जुन द्वारा दस हज़ार संशप्तक योद्धाओं और उनकी सेना का संहार | कृपाचार्य द्वारा शिखण्डी की पराजय | कृपाचार्य द्वारा सुकेतु का वध | धृष्टद्युम्न के द्वारा कृतवर्मा की पराजय | अश्वत्थामा का घोर युद्ध और सात्यकि के सारथि का वध | युधिष्ठिर का अश्वत्थामा को छोड़कर दूसरी ओर चले जाना | नकुल-सहदेव के साथ दुर्योधन का युद्ध | धृष्टद्युम्न से दुर्योधन की पराजय | कर्ण द्वारा पांचाल सेना सहित योद्धाओं का संहार | भीम द्वारा कौरव योद्धाओं का सेना सहित विनाश | अर्जुन द्वारा संशप्तकों का वध | अश्वत्थामा का अर्जुन से घोर युद्ध करके पराजित होना | दुर्योधन का सैनिकों को प्रोत्साहन देना और अश्वत्थामा की प्रतिज्ञा | अर्जुन का श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर के पास चलने का आग्रह | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धभूमि का दृश्य दिखाते हुए रथ को आगे बढ़ाना | धृष्टद्युम्न और कर्ण का युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न पर आक्रमण | अर्जुन द्वारा धृष्टद्युम्न की रक्षा और अश्वत्थामा की पराजय | श्रीकृष्ण का अर्जुन से दुर्योधन के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन से कर्ण के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्साहित करना | श्रीकृष्ण का अर्जुन से भीम के दुष्कर पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा शिखण्डी की पराजय | धृष्टद्युम्न और दु:शासन तथा वृषसेन और नकुल का युद्ध | सहदेव द्वारा उलूक की तथा सात्यकि द्वारा शकुनि की पराजय | कृपाचार्य द्वारा युधामन्यु की एवं कृतवर्मा द्वारा उत्तमौजा की पराजय | भीम द्वारा दुर्योधन की पराजय तथा गजसेना का संहार | युधिष्ठिर पर कौरव सैनिकों का आक्रमण | कर्ण द्वारा नकुल-सहदेव सहित युधिष्ठिर की पराजय | युधिष्ठिर का अपनी छावनी में जाकर विश्राम करना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | पांडवों द्वारा कौरव सेना में भगदड़ | कर्ण द्वारा भार्गवास्त्र से पांचालों का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन का भीम को युद्ध का भार सौंपना | श्रीकृष्ण और अर्जुन का युधिष्ठिर के पास जाना | युधिष्ठिर का अर्जुन से भ्रमवश कर्ण के मारे जाने का वृत्तान्त पूछना | अर्जुन का युधिष्ठिर से कर्ण को न मार सकने का कारण बताना | अर्जुन द्वारा कर्णवध हेतु प्रतिज्ञा | युधिष्ठिर का अर्जुन के प्रति अपमानजनक क्रोधपूर्ण वचन | अर्जुन का युधिष्ठिर के वध हेतु उद्यत होना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को बलाकव्याध और कौशिक मुनि की कथा सुनाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को धर्म का तत्त्व बताकर समझाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञाभंग, भ्रातृवध तथा आत्मघात से बचाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को सान्त्वना देकर संतुष्ट करना | अर्जुन से श्रीकृष्ण का उपदेश | अर्जुन और युधिष्ठिर का मिलन | अर्जुन द्वारा कर्णवध की प्रतिज्ञा और युधिष्ठिर का आशीर्वाद | श्रीकृष्ण और अर्जुन की रणयात्रा | अर्जुन को मार्ग में शुभ शकुन संकेतों का दर्शन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रोत्साहन देना | श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन के बल की प्रशंसा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्तेजित करना | अर्जुन के वीरोचित उद्गार | कौरव-पांडव सेना में द्वन्द्वयुद्ध तथा सुषेण का वध | भीम का अपने सारथि विशोक से संवाद | अर्जुन और भीम द्वारा कौरव सेना का संहार | भीम द्वारा शकुनि की पराजय | धृतराष्ट्रपुत्रों का भागकर कर्ण का आश्रय लेना | कर्ण के द्वारा पांडव सेना का संहार और पलायन | अर्जुन द्वारा कौरव सेना का विनाश करके रक्त की नदी बहाना | अर्जुन का श्रीकृष्ण से रथ कर्ण के पास ले चलने के लिए कहना | श्रीकृष्ण और अर्जुन को आते देख शल्य और कर्ण की बातचीत | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | अर्जुन का कौरव सेना को नष्ट करके आगे बढ़ना | अर्जुन और भीम के द्वारा कौरव वीरों का संहार | कर्ण का पराक्रम | सात्यकि के द्वारा कर्णपुत्र प्रसेन का वध | कर्ण का घोर पराक्रम | दु:शासन और भीमसेन का युद्ध | भीम द्वारा दु:शासन का रक्तपान और उसका वध | युधामन्यु द्वारा चित्रसेन का वध तथा भीम का हर्षोद्गार | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों का वध | कर्ण का भय और शल्य का समझाना | नकुल और वृषसेन का युद्ध | कौरव वीरों द्वारा कुलिन्दराज के पुत्रों और हाथियों का संहार | अर्जुन द्वारा वृषसेन का वध | कर्ण से युद्ध के विषय में श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन का कर्ण के सामने उपस्थित होना | कर्ण और अर्जुन का द्वैरथ युद्ध में समागम | कर्ण-अर्जुन युद्ध की जय-पराजय के सम्बंध में प्राणियों का संशय | ब्रह्मा और शिव द्वारा अर्जुन की विजय घोषणा | कर्ण की शल्य से और अर्जुन की श्रीकृष्ण से वार्ता | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार | अश्वत्थामा का दुर्योधन से संधि के लिए प्रस्ताव | दुर्योधन द्वारा अश्वत्थामा के संधि प्रस्ताव को अस्वीकार करना | कर्ण और अर्जुन का भयंकर युद्ध | अर्जुन के बाणों से संतप्त होकर कौरव वीरों का पलायन | श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन की सर्पमुख बाण से रक्षा | कर्ण के रथ का पहिया पृथ्वी में फँसना | अर्जुन से बाण न चलाने के लिए कर्ण का अनुरोध | श्रीकृष्ण का कर्ण को चेतावनी देना | अर्जुन के द्वारा कर्ण का वध | कर्णवध पर कौरवों का शोक तथा भीम आदि पांडवों का हर्ष | कर्णवध से दु:खी दुर्योधन को शल्य द्वारा सांत्वना | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदल सैनिकों का वध | अर्जुन द्वारा रथसेना का विध्वंस | दुर्योधन द्वारा कौरव सेना को रोकने का विफल प्रयास | शल्य के द्वारा रणभूमि का दिग्दर्शन | श्रीकृष्ण और अर्जुन का शिविर की ओर गमन | कौरव सेना का शिबिर की ओर पलायन | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को कर्णवध का समाचार देना | कर्णवध से प्रसन्न युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुन की प्रशंसा | कर्णपर्व के श्रवण की महिमा

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