कर्ण द्वारा नकुल-सहदेव सहित युधिष्ठिर की पराजय

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 63वें अध्याय में कर्ण द्वारा नकुल-सहदेव सहित युधिष्ठिर की पराजय का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

कर्ण द्वारा नकुल-सहदेव सहित युधिष्ठिर की पराजय

संजय कहते हैं- राजन! कर्ण भी अपने बाण समूह से सामने खड़े हुए महाधनुर्धर केकय महारथियों का विनाश करने लगा। राधापुत्र कर्ण को रोकने के लिये प्रयत्न करने वाले पांच सौ रथियों को उसने यमलोक पहुँचा दिया। कर्ण के बाणों से अत्‍यन्‍त पीड़ित हुए पाण्‍डव योद्धा युद्ध स्‍थल में राधापुत्र कर्ण को असह्य देखकर भीमसेन के पास चले आये। तदनन्‍तर कर्ण ने अपने बाणों के समूह से पाण्‍डवों की रथ सेना को अनेक भागों में विदीर्ण करके एकमात्र रथ के द्वारा ही युधिष्ठिर पर धावा किया। उस समय वीर युधिष्ठिर बाणों से क्षत-विक्षत होकर अचेत से हो रहे थे और नकुल-सहदेव के बीच में होकर धीरे-धीरे छावनी की ओर जा रहे थे। उस अवस्‍था में राजा युधिष्ठिर के पास पहुँचकर सूतपुत्र कर्ण ने दुर्योधन के हित की इच्‍छा से परम उत्तम तीन तीखे बाणों द्वारा उन्‍हें पुन: घायल कर दिया। इसी प्रकार राजा युधिष्ठिर ने भी राधापुत्र कर्ण की छाती में गहरी चोट पहुँचायी। फिर तीन बाणों से सारथि को और चार से चारों घोड़ों को घायल कर दिया।

शत्रुओं को संताप देने वाले माद्रीकुमार नकुल और सहदेव राजा युधिष्ठिर के चक्र रक्षक थे। वे दोनों भी यह सोचकर कर्ण की ओर दौड़े कि यह राजा युधिष्ठिर वध न कर डाले। नकुल और सहदेव दोनों भाई उत्तम प्रयत्‍न का सहारा लेकर राधापुत्र कर्ण पर पृथक-पृथक बाणों की वर्षा करने लगे। इसी प्रकार प्रतापी सूतपुत्र ने भी तेज धारवाले दो भल्‍लों द्वारा शत्रुओं का दमन करने वाले उन दोनों महामनस्‍वी वीरों को घायल कर दिया। जिनकी पूंछ और गर्दन के बल काले तथा शरीर का रंग श्‍वेत था और जो मन के समान तीव्र वेग से चलने वाले थे, युधिष्ठिर के उन उत्तम घोड़ों को संग्राम भूमि में राधा पुत्र कर्ण ने मार डाला। त्‍त्‍पश्चात् महाधनुर्धर सूतपुत्र ने हंसते हुए से एक दूसरे भल्‍ल के द्वारा कुन्‍तीकुमार के शिरस्त्राण को नीचे गिरा दिया। इसी प्रकार प्रतापी कर्ण ने बुद्धिमान माद्रीकुमार नकुल के भी घोड़ों को मारकर ईषादण्ड और धनुष को भी काट दिया। घोड़ों एवं रथों के नष्‍ट हो जाने पर अत्‍यन्‍त घायल हुए वे दोनों भाई पाण्‍डव उस समय सहदेव के रथ पर जा चढ़े।

शल्य द्वारा कर्ण को समझाना

शत्रुवीरों का संहार करने वाले मामा मद्रराज शल्‍य ने उन दोनों भाइयों को रथहीन हुआ देख कृपापूर्वक राधापुत्र कर्ण से कहा ‘कर्ण! आज तुम्‍हें कुन्‍तीकुमार अर्जुन के साथ युद्ध करना है। फिर अत्‍यन्‍त रोष में भरकर धर्मराज के साथ किस लिये जूझ रहे हो। ‘इनके अस्त्र शस्त्र और कवच नष्‍ट हो गये हैं। तीर और तरकस भी कट गये हैं। सारथि और घोड़े भी थके हुए हैं तथा शत्रुओं ने इन्‍हें अस्त्रों द्वारा आच्‍छादित कर दिया है। राधानन्‍दन! अर्जुन के सामने पहुँचकर तुम उपहास के पात्र बन जाओगे’। युद्धस्‍थल में मद्रराज शल्‍य के ऐसा कहने पर कर्ण पूर्वत रोष में भरकर युधिष्ठिर को बाणों द्वारा पीड़ित करता रहा। माद्रीकुमार पाण्‍डुपुत्र नकुल- सहदेव को तीखे बाणों से घायल करके कर्ण ने हंसकर समरांगण में बाणों के प्रहार से युधिष्ठिर को युद्ध से विमुख कर दिया।[1] तब शल्‍य ने हंसकर युधिष्ठिर के वध का दृढ़ निश्चय किये अत्‍यन्‍त क्रोध में भरकर रथ पर बैठे हुए कर्ण से पुन: इस प्रकार कहा ‘राधापुत्र! दुर्योधन ने जिनसे जूझने के लिये तुम्‍हारा सदा सम्‍मान किया है, उन कुन्‍तीकुमार अर्जुन को मारो। युधिष्ठिर का वध करने से तुम्‍हें क्‍या मिलेगा। ‘इनके मारे जाने पर अर्जुन निश्चय ही हमारे सारे महारथियों को जीत लेंगे। परंतु अर्जुन के मारे जाने पर धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन की विजय अवश्‍यम्‍भावी है। ‘महाबाहो! अर्जुन का यह सूर्य के समान प्रकाशमान ध्‍वज दिखायी देता है। तुम इन्‍हीं को मारो, युधिष्ठिर का वध करने से तुम्‍हारा क्‍या लाभ है। ‘श्रीकृष्‍ण और अर्जुन शंख बजा रहे हैं, जिनका यह महान शब्‍द सुनायी पड़ता है। वर्षाकाल के मेघ की गर्जना के समान उनके धनुष का यह गम्‍भीर घोष कानों में पड़ रहा है। ‘कर्ण! ये अर्जुन अपने बाणों की वर्षा से बड़े-बड़े रथियों का संहार करते हुए हमारी सारी सेना को काल का ग्रास बना रहे हैं। युद्धस्‍थल में इनकी ओर तो देखो। ‘शूरवीर अर्जुन के पृष्‍ठभाग की रक्षा युधामन्यु और उत्तमौजा कर रहे हैं। शौर्यसम्‍पन्न सात्‍यकि उनके उत्तर (बायें) चक्र की रक्षा करते हैं और धृष्टद्युम्न दाहिने चक्र की।[2]

शल्य द्वारा कर्ण को भीम से दुर्योधन की रक्षा के लिये उद्यत करना

भीमसेन राजा दुर्योधन के साथ युद्ध करते हैं। राधा नन्‍दन! हम सब लोगों के देखते-देखते आज भीमसेन जिस प्रकार उसे मार न डालें, वैसा प्रयत्‍न करो। जैसे भी सम्‍भव हो, हमारे राजा को भीमसेन से छूटकारा ही चाहिये। ‘देखो, युद्ध में शोभा पाने वाले दुर्योधन को भीमसेन ने ग्रस लिया है। यदि तुम्‍हें पाकर वह संकट से छूट जाय तो यह महान आश्चर्य की घटना होगी। ‘तुम चलकर जीवन के भारी संशय में पड़े हुए राजा दुर्योधन को बचाओ। आज माद्रीकुमार नकुल-सहदेव तथा राजा युधिष्ठिर का वध करके क्‍या होगा। पृथ्‍वीनाथ! शल्‍य की यह बात सुनकर तथा महासमर में दुर्योधन को भीमसेन से ग्रस्‍त हुआ देखकर शल्‍य के वचनों से प्रेरित हो राजा को अधिक चाहने वाला पराक्रमी कर्ण अजात शत्रु युधिष्ठिर और माद्रीकुमार पाण्‍डुपुत्र नकुल-सहदेव को छोड़कर आपके पुत्र की रक्षा करने के लिये दौड़ा।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 63 श्लोक 1-19
  2. 2.0 2.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 63 श्लोक 20-38

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