कर्ण द्वारा श्रीकृष्ण-अर्जुन का पता देने वाले को पुरस्कार देने की घोषणा

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 38वें अध्याय में कर्ण द्वारा श्रीकृष्ण-अर्जुन का पता देने वाले को पुरस्कार देने की घोषणा का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

कर्ण का श्रीकृष्ण और अर्जुन का पता बताने वाले को नाना प्रकार की भोग सामग्री देने का वर्णन

संजय कहते हैं- राजन! प्रस्थानकाल में आपकी सेना का हर्ष बढ़ाता हुआ कर्ण समरांगण में पाण्डव-सैनिकों को देखकर प्रत्येक से पूछने और कहने लगा- ‘जो आज मुझे महात्मा श्वेतवाहन अर्जुन को दिखा देगा, उसे मैं उसका अभीष्ट धन, जिसे वह मन से लेना चाहे, दे दूँगा। ‘यदि उतने धन से वह संतुष्ट नहीं होगा तो मैं उसे और धन दूँगा। जो मुझे अर्जुन का पता बता देगा, उसे मैं रत्नों से भरा हुआ छकड़ा दूँगा। ‘यदि अर्जुन को दिखाने वाला पुरुष उस धन को पर्याप्त न माने तो मैं उसे प्रतिदिन दूध देने वाली सौ गौएँ और कांस का दुग्ध-पात्र प्रदान करूँगा। ‘इतना ही नहीं, मैं अर्जुन को दिखा देने वाले व्यक्ति के लिये सौ बड़े-बड़े गाँव दूँगा तथा जो अर्जुन का पता बता देगा उसे खच्चियों से जुता हुआ एक श्वेत रथ भी भेंट करूँगा जिसमें काले केशवाली युवतियाँ बैठी होंगी। ‘यदि अर्जुन का पता बताने वाला पुरुष उस धन को पूरा न समझे तो उसे दूसरा सोने का बना हुआ रथ प्रदान करूँगा, जिसमें हाथी के समान हृष्ट-पुष्ट छः बैल जुते होंगे। साथ ही उसे वस्त्राभूषणों से विभूषित सौ ऐसी स्त्रियाँ दूंगा, जो श्यासा (सोलह वर्ष की अवस्था वाली), सुवर्णमय कण्ठहार से अलंकृत तथा गाने-बजाने की कला में विदुषि होंगी। ‘अर्जुन को दिखाने वाला पुरुष यदि उसे भी पूरा न समझे तो मैं उसे सौ हाथी, सौ गाँव, पके सोने के बने हुए सौ रथ तथा दस हजार अच्छे घोड़े दूँगा। वे घोड़े हृष्ट-पुष्ट, गुणवान, विनीत, सुशिक्षित तथा रथ का भार वहन करने में समर्थ होंगे। ‘जो मुझे अर्जुन का पता बता देगा, उसे मैं चार सौ सवत्सा दुधारू गौएँ दूंगा, जिनके सींगों में सोने मढ़े होंगे।

‘यदि अर्जुन को दिखाने वाला पुरुष उस धन को पूर्ण नहीं समझेगा तो उसे और भी उत्तम धन, श्वेत रंग के पाँचसौ घोड़े दूंगा, जो सोने के साज-बाज से सुसज्जित तथा विशुद्ध मणियों के आभूषणों से विभूषित होंगे। ‘इनके सिवा, अठारह और घोड़े भी दूँगा, जो अच्छी तरह रथ में सधे हुए होंगे। जो मुझे अर्जुन का पता बता देगा, उसे मैं परम उज्ज्वल और अलंकारो से सजाया हुआ एक सुवर्णमय रथ दूँगा, जिसमें अच्छी नस्ल के काबुली घोड़े जुते होंगे। यदि अर्जुन को दिखाने वाला पुरुष उसे भी पूरा न समझे तो उसे मैं और भी श्रेष्ठ धन दूँगा। नाना प्रकार के सुवर्णमय आभूषणों से सुशोभित तथा सोने की मालाओं से अलंकृत छः सौ ऐसे हाथी प्रदान करूँगा, जो भारतवर्ष की पश्चिमी सीमा के जंगलों में उत्पन्न हुए हैं और जिन्हें गजशिक्षकों ने अच्छी तरह सुशिक्षित कर लिया है। ‘यदि अर्जुन को दिखाने वाला पुरुष उसे भी पूरा न समझे तो मैं उसे दूसरा श्रेष्ठ धन प्रदान करूँगा। जिनमें वैश्य निवास करते हों। ऐसे चौदह समृद्धशाली और धन सम्पन्न ग्राम दूँगा, जिनके आस-पास जंगल और जल की सुविधा होगी और जहाँ किसी प्रकार का भय नहीं होगा। वे चौदहों गाँव अधिक सम्पन्न तथा राजोचित भोगों से परिपूर्ण होंगे। ‘जो मुझे अर्जुन का पता बता देगा, उसे मैं सोने के कण्ठहारों से विभूषित मगध देश की सौ नवयुवती दासी दूँगा। ‘यदि अर्जुन को दिखाने वाला पुरुष उसे भी पर्याप्त न समझे तो मैं उसे दूसरा वर प्रदान करूँगा, जिसकी वह स्वयं इच्छा करे।[1] स्त्री, पुत्र, विहारस्थान तथा दूसरा भी जो कुछ धन-वैभव मेरे पास है, उसमें से जिस-जिस वस्तु को वह अपने मन से चाहेगा, वह सब कुछ मैं उसे दे डालूँगा। जो मुझे श्रीकृष्ण और अर्जुन का पता बता देगा, उसे मैं उन दोनों का मारकर उनका सारा धन-वैभव दे दूँगा।

कौरव सेना का हर्षित होना

इन सब बातों को बारंबार कहते हुए कर्ण ने युद्धस्थल में समुद्र से उत्पन्न हुए अपने उत्तम शंख को उच्च स्वर से बजाया। महाराज! सूतपुत्र की कही हुई उस अवसर के अनुरूप उन बातों को सूनकर दुर्योधन अपने सेवकों सहित बड़ा प्रसन्न हुआ। फिर तो सब ओर दुन्दुभियों की गम्भीर ध्वनि होने लगी, मृदंग बजने लगे, वाद्यों की ध्वनि के साथ-साथ वीरों का सिंहनाद तथा हाथियों के चिंग्घाड़ने का शब्द वहाँ गूँज उठा। पुरुषप्रवर नरेश! उस समय सभी सेनाओं में हर्ष और उत्साह से भरे हुए योद्धाओं का गम्भीर गर्जन होने लगा। इस प्रकार हर्ष से उत्साहित हुई सेना में जाते और बढ़-बढ़कर बातें बनाते हुए शत्रुसूदन राधापुत्र महारथी कर्ण से मद्रराज शल्य ने हँसकर इस प्रकार कहा।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 38 श्लोक 1-19
  2. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 38 श्लोक 20-26

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