कौरव पक्ष के जीवित योद्धाओं का वर्णन और धृतराष्ट्र की मूर्छा

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत सातवें अध्याय में कौरव पक्ष के जीवित योद्धाओं और धृतराष्ट्र की मूर्छा का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]-

धृतराष्ट्र का संजय से प्रश्न पूछना

धृतराष्ट्र ने कहा- संजय! प्रधान पुरुष भीष्म, द्रोण और कर्ण आदि के मारे जाने से मेरी सेना का घमंड चूर-चूर हो गया है। मैं देखता हूँ, अब यह बच नहीं सकेगी। वे दोनों कुरुश्रेष्ठ महाधनुर्धर वीर भीष्म और द्रोणाचार्य मेरे लिये मारे गये; यह सुन लेने पर इस अधम जीवन को रखने का अब कोई प्रयोजन नहीं है। जिसकी दोनों भुजाओं में समान रूप से दस-दस हजार हाथियों का बल था, युद्ध में शोभा पाने वाले उस राधा पुत्र कर्ण के मारे जाने का समाचार सुनकर मैं इस शोक को सहन नहीं कर पाता हूँ। संजय! जैसा के तुम कह रहे हो कि मेरी सेना के प्रमुख वीर मारे जा चुके हैं, उसी प्रकार यह भी बताओ कि कौन-कौर वीर नहीं मारे गये हैं। इस सेना में जो कोई भी श्रेष्ठ वीर जीवित हैं, उनका परिचय दो। आज तुमने जिन लोगों के नाम लिखे हैं, उनकी मृत्यु हो जाने पर तो जो भी अब जीवित हैं वे सभी मरे हुए के ही समान हैं, ऐसा मेरा विश्वास है।

संजय का कौरव पक्ष के जीवित योद्धाओं का वर्णन करना

संजय कहते हैं- राजन! द्विजश्रेष्ठ द्रोणाचार्य ने जिस वीर को चित्र (अद्भुत), शुभ्र (प्रकाशमान), दिव्य तथा धनुर्वेदोक्त चार प्रकार के महान अस्त्र समर्पित किये थे, जो सफल प्रयत्न करने वाला महारथी वीर है, जिसके हाथ बड़ी शीघ्रता से चलते हैं, जिसका धनुष, जिसकी मुट्ठी और जिसके बाण सभी सुदृढ़ हैं, वह वेगशाली तथा पराक्रमी द्रोण पुत्र अश्वत्थामा आपके लिये युद्ध की इच्छा रखकर समर भूमि में डटा हुआ है। सात्वत कुल का श्रेष्ठ महारथी, आनर्त निवासी, भोजवंशी अस्त्रवेत्ता, हृदिक पुत्र कृतवर्मा भी आपके लिये युद्ध करने को दृढ़ निश्चय से डटा हुआ है। जिन्हें युद्ध में विचलित करना अत्यन्त कठिन है, जो आपके सैनिकों के प्रथम सेनापति एवं वेगशाली वीर हैं, जो अपनी बात सच्ची कर दिखाने के लिये अपने सगे भांजे पाण्डवों को छोड़कर तथा अज्ञात शत्रु युधिष्ठिर के सामने युद्ध स्थल में सूत पुत्र कर्ण के तेज और उत्साह को नष्ट करने की प्रतिज्ञा करके आपके पक्ष में चले आये थे, वे बलवान दुर्धर्ष तथा इन्द्र के समान पराक्रमी ऋतायन पुत्र शल्य आपके लिये युद्ध करने को तैयार हैं।

अच्छी नस्ल के सिंधी, पहाड़ी, दरियाई, काबुली और वनायु देश के बहुसंख्यक घोड़ों तथा अपनी सेना के साथ गान्धारराज शकुनि आपके लिये युद्ध करने को डटा हुआ है। राजन्! अनेक प्रकार के विचित्र अस्त्रों द्वारा युद्ध करने वाले, गौतम वंशीय शरद्वान के पुत्र महाबाहु कृपाचार्य भी महान भार सहन करने में समर्थ विचित्र धनुष हाथ में लेकर आपके लिये यु;द्ध करने को तैयार हैं। कुरुकुल के श्रेष्ठ वीर! महारथी केकय राजकुमार भी सुन्दर घोड़ों से जुते हुए, ध्वजा-पताकाओं से सुशोभित रथ पर आरुढ़ हो आपके लिये युद्ध करने की इच्छा से डटा हुआ है। नरेन्द्र! कुरुकुल का प्रमुख वीर आपका पुत्र पुरुमित्र अग्नि और सूर्य के समान कान्तिमान रथ पर आरूढ़ हो बिना बादलों के आकाश में सूर्य के समान प्रकाशित होता हुआ युद्ध के लिये खड़ा है। हाथियों की सेना के बीच जो अपने सुवर्ण भूषित रथ के द्वारा उपस्थित हो सिंह के समान सुशोभित होता हे, वह राजा दुर्योधन भी समरांगण में जूझने के लिये खड़ा है।[1]

पुरुषों में प्रधान वीर और कमल के समान कान्तिमान दुर्योधन सोने का बना हुआ विचित्र कवच धारण करके राजाों के समुदाय में अल्प धूमवाली अग्नि एवं बादलोें के बीच में सूर्य के समान प्रकाशित हो रहा है। हाथ में ढाल-तलवार लिये हुए आपके वीर पुत्र सुषेण और सत्यसेन मन में हर्ष और उत्साह लिये समर में जूझने की इच्छा रखकर चित्रसेन के साथ खड़े हैं। भारत! लज्जाशील भयंकर आयुधों वाला शीघ्रभोजी और देखने में सुन्दर जरासंध का प्रथम पुत्र राजकुमार अदृढ़, चित्रायुध, श्रुतवर्मा, जय, शल, सत्यव्रत और दुःशल- ये सभी श्रेष्ठ पूरुष युद्ध के लिये अपनी सेनाओं के साथ खड़े हैं। प्रत्येक युद्ध में शत्रुओं का संहार करने वाला और अपने को शूरवीर मानने वाला एक राजकुमार, जो जुआरियों का सरदार है तथा रथ, घोड़े, हाथी और पैदलों की चतुरंगिणी सेना साथ लेकर चलता है, आपके लिये युद्ध करने को तैयार खड़ा है। वीर श्रुतायु, धृतायुध, चित्रांगद और वीर चित्रसेन- ये सभी प्रहार कुशल स्वाभिमानी और सत्य प्रतिज्ञ नरश्रेष्ठ आपके लिये युद्ध करने को तैयार खड़े हैं। नरेन्द्र! कर्ण का महामना एवं सत्य प्रतिज्ञ पुत्र समरांगण में युद्ध की इच्छा से डटा हुआ है। इसके सिवा कर्ण के दो पुत्र और हैं, जो उत्तम अस्त्रों के ज्ञाता और शीघ्रता पूर्वक हाथ चलाने वाले हैं, वे भी आपकी ओर से युद्ध के लिये तैयार खड़े हैं। इन दोनों ने ऐसी विशाल सेना को अपने साथ ले रखा है, जिसका अल्प धैर्य वाले वीरों के लिये भेदन करना कठिन है। राजन! इनसे तथा अन्य अनन्त प्रभावशाली श्रेष्ठ एवं प्रणान योद्धाओं से घिरा हुआ कुरुराज दुर्योधन हाथियों के समूह में देवराज इन्द्र के समान विजय के लिये खड़ा है।[2]

धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना

धृतराष्ट्र ने कहा- संजय! अपने पक्ष के जो जीवित योद्धा हैं, एवं उनसे भिन्न जो मारे जा चुके हैं, उनका तुमने यथार्थ रूप से वर्णन कर दिया। इससे जो परिणाम होने वाला है, उसे अर्थापत्ति प्रमाण के द्वारा मैं स्पष्ट रूप से समझ रहा हूँ (मेरे पक्ष की हार सुनिश्चित है)। वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन! यह कहते हुए ही अम्बिका नन्दन धृतराष्ट्र उस समय यह सुनकर कि अपनी सेना के प्रमुख वीर मारे गये, अधिकांश सेना नष्ट हो गयी और बहुत थोड़ी शेष रह गयी है, मूर्च्छित हो गये। उनकी इन्द्रियाँ शोक से व्याकुल हो उठीं। वे अचेत होते-होते बोले- ‘संजय! दो घड़ी ठहर जाओ। तात! यह महान अप्रिय संवाद सुनकर मेरा मन व्याकुल हो गया है, चेतना लुप्त हो रही है और मैं अपने अंगों को धारण करने में असमर्थ हूँ। ऐसा कहकर अम्बिका नन्दन राजा धृतराष्ट्र भ्रान्तचित्त (मूर्च्छित) हो गये।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 7 श्लोक 1-15
  2. 2.0 2.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 7 श्लोक 16-28

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