युधामन्यु द्वारा चित्रसेन का वध तथा भीम का हर्षोद्गार

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 83वें अध्याय में युधामन्यु द्वारा चित्रसेन का वध तथा भीम का हर्षोद्गार करके सिंहनाद करने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

युधामन्यु द्वारा चित्रसेन का वध

संजय कहते हैं- चित्रसेन को भागते देख राजकुमार युधामन्यु ने अपनी सेना के साथ उसका पीछा किया और निर्भय होकर शीघ्र छोडे़ हुए सात पैने बाणों द्वारा उसे घायल कर दिया। तब जिसका शरीर पैरों से कुचल गया हो, अत एव जो क्रोध जनित विष का वमन करना चाहता हो, उस जीभ लपलपाने वाले महान सर्प के समान चित्रसेन ने पुनः लौटकर उस पांचाल राजकुमार को तीन और उसके सारथि को छः बाण मारे। तत्पश्चात शुरवीर युधामन्यु ने धनुष को कान तक खींचकर ठीक से संधान करके छोडे़ हुए सुन्दर पंख और तीखी धारवाले सुनियन्त्रित बाण द्वारा चित्रसेन का मस्तक काट दिया। अपने भाई चित्रसेन के मारे जाने पर कर्ण क्रोध में भर गया और अपना पराक्रम दिखाता हुआ पाण्डव सेना को खदेड़ने लगा। उस समय अमित बलशाली नकुल ने आगे आकर उसका सामना किया।

भीम का क्रोध पूर्वक दु:शासन से संवाद

इधर भीमसेन भी अमर्ष में भरे हुए दुःशासन का वहीं वध करके पुनः उसके खून से अंजलि भरकर भयंकर गर्जना करते और विश्वविख्यात वीरों के सुनते हुए इस प्रकार बोले- नराधम दुःशासन! यह देख, में तेरे गले का खून पी रहा हूँ। अब इस समय पुनः हर्ष में भरकर मुझे बैल-बैल कहकर पुकार तो सही। जो लोग उस दिन कौरव सभा में हमें बैल-बैल कहकर खुशी के मारे नाच उठते थे, उन सब को आज बारंबार बैल-बैल कहते हुए हम भी प्रसन्नतापूर्वक नृत्य कर रहे हैं। मुझे प्रमाणकोटि तीर्थ में विष पिलाकर नदीं में डाल दिया गया, कालकूट नामक विष खिलाया गया, काले सर्पो से डसाया गया, लाक्षागृह में जलाने की चेष्टा की गयी, जूए के द्वारा हमारे राज्य का अपहरण किया गया और हम सब लोगों को वनवास दे दिया गया। द्रौपदी के केश खींचे गये, जो अत्यन्त दारुण कर्म था। संग्राम में हम पर बाणों तथा अन्य घातक अस्त्रों का प्रयोग किया गया। राजा विराट के भवन में हमें जो महान क्लेश उठाना पड़ा, वह तो सबसे विलक्षण है। शकुनि, दुर्योधन और कर्ण की सलाह से हमें जो-जो दुःख भोगने पड़े, उन सबकी जड़ तू ही था। पुत्रों सहित धृतराष्ट्र की दुष्टता से हमें ये दुःख भोगने पड़े हैं। इन दुःखों को तो हम जानते हैं, किंतु हमें कभी सुख मिला हो, इसका स्मरण नहीं है।

भीम का हर्षोल्लास से सिंहनाद करना

महाराज! ऐसी बात कहकर खून से भीगे और रक्त से लाल मूँह वाले, अत्यन्त क्रोधी, वेगशाली और भीमसेन युद्ध में विजय पाकर मुस्कराते हुए पुनः श्रीकृष्ण और अर्जुन से बोले-वीरों! दुःशासन के विषय में मेंने जो प्रतिज्ञा की थी, उसे आज यहाँ रणभूमि में सत्य कर दिखाया। यही दूसरे यज्ञ पुत्र दुर्योधन को काटकर उसकी बलि दूंगा और समस्त कौरवों की आँखों के सामने उस दुरात्मा मस्तक को पैर से कुचलकर शांति प्राप्त करूंगा। ऐसा कहकर खून से भीगे शरीर वाले अत्यन्त बलशाली महामना भीम वृत्रासुर का वध करके गर्जने वाले सहस्र नेत्रधारी इन्द्र के समान उच्चस्वर से गर्जन और सिंहनाद करने लगे।

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 83 श्लोक 33-52

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