कौरवों द्वारा मारे गये प्रधान पांडव पक्ष के वीरों का परिचय

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत छठवें अध्याय में वैशम्पायन ने कौरवों द्वारा मारे गये प्रधान पांडव पक्ष के वीरों के परिचय का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

कौरवों द्वारा मारे गये पाडव पक्ष के योद्धाओं का परिचय

धृतराष्ट्र ने कहा- तात संजय! तुमने युद्ध में पाण्डवों द्वारा मारे गये मेरे पक्ष के वीरों के नाम बताये गये हैं। अब मेरे योद्धाओं द्वारा मारे गये पाण्डव योद्धाओं का परिचय दो। संजय ने कहा- राजन अत्यन्त वीर, महान बलवान और पराक्रमी जो कुन्तीभोज देश के योद्धा थे, उन्हे गंगानन्दन भीष्म ने मार गिराया। पाण्डवों में अनुराग रखने वाले जो नारायण और बलभद्र नाम वाले सैंकड़ों शूरवीर थे, उन्हें भी वीरवर भीष्म ने युद्ध में धराशायी कर दिया। सत्यजित संग्राम में किरीटधारी अर्जुन के समान बल और पराक्रम से सम्पन्न था, जिसे युद्ध स्थल में सत्यप्रतिज्ञ द्रोणाचार्य ने मार डाला। युद्ध की कला में सम्पूर्ण पाञ्चाल धनुर्धर द्रोणाचार्य से टक्कर लेकर यमलोक में जा पहुँचे हैं। मित्र के लिये पराक्रम करने वाले बूढ़े राजा विराट और द्रुपद को अपने पुत्रों सहित द्रोणाचार्य के द्वारा रणभूमि में मारे गये हैं। जो बाल्यावस्था में ही दुर्धर्ष वीर था और सव्यसाची अर्जुन, भगवान श्रीकृष्ण अथवा बलदेव जी के समान समझा जाता था तथा जो महान रथ युद्ध में विशेष कुशल था, वह अभिमन्यु शत्रुओं का संहार करके छः बड़े-बड़े महारथियों द्वारा, जिनका अर्जुन पर वश नहीं चलता था, चारों ओर से घेरकर मार डाला गया।

महाराज! क्षत्रिय-धर्म में तत्पर रहने वाला वीर सुभद्राकुमार अभिमन्यु रथहीन कर दिया गया, उस अवस्था में दुःशासन के पुत्र ने उसे रणभूमि में मारा था। शत्रुकन्ता श्रीमान अम्बष्ठपुत्र अपनी विशाल सेना से घिरकर मित्रों के लिये पराक्रम दिखा रहा था। वह शत्रु सेना का महान संहार करके रणभूमि में दुर्योधन के वीर पुत्र लक्ष्मण से टक्कर ले यमलोक में जा पहुँचा। अस्त्रविद्या में विशेषज्ञ रणदुर्मद महाधनुर्धर बृहन्त को दुःशासन ने बलपूर्वक यमलोक पहुँचाया था। युद्ध में उन्मत्त होकर जूझने वाले राजा मणिमान और दण्डधार मित्रों के लिये पराक्रम दिखाते थे। उन दोनों को द्रोणाचार्य ने युद्ध में मार गिराया है। सेना सहित भोजराज महारथी अंशुमान को भरद्वाजनन्दन द्रोण ने पराक्रम करके यमलोक पहुँचाया है।

भारत समुद्र तटवर्ती राज्य के अधिपति चित्रसेन अपने पुत्र के साथ युद्ध में आकर समुद्रसेन के द्वारा बलपूर्वक यमलोक भेज दिये गये। समुद्र तटवर्ती नील और पराक्रमी व्याघ्रदत्त इन दोनों को क्रमशः अश्वत्थामा और विकर्ण ने यमलोक पहुँचा दिया। विचित्र युद्ध करने वाले चित्रायुध समर में विचित्र रीति से पराक्रम करते हुए कौरव सेना का महान संहार करके अन्त में विकर्ण के हाथ से मारे गये। केकयदेशीय योद्धाओं से घिरे हुए भीम के समान पराक्रमी केकय राजकुमार को उन्हीं के भाई दूसरे केकय राजकुमार ने बलपूर्वक मार गिराया। महाराज! प्रतापी पर्वतीय राजा जनमेजय गदायुद्ध में कुशल थे। उन्हें आपके पुत्र दुर्मुख ने धराशायी कर दिया। राजन! दो चमकते हुए ग्रहों के समान नरश्रेष्ठ रोचमान, जो एक ही नाम के दो भाई थे, द्रोणाचार्य के द्वारा बाणों से एक साथ ही स्वर्गलोक पहुँचा दिये गये। प्रजानाथ! और भी बहुत से पराक्रमी नरेश आपकी सेना का सामना करते हुए दुष्कर पराक्रम करके यमलोक में जा पहुँचे हैं।[1]

पुरुजित और कुन्तिभोज दोनों सव्यसाची अर्जुन के मामा थे, द्रोणाचार्य के सायकों ने उन्हें भी उन लोकों में पहुँचा दिया, जो संग्राम में मारे जाने वाले वीरों को प्राप्त होते हैं। काशिराज अभिभू बहुतेरे काशी निवासी योद्धाओं से घिरे हुए थे। वसुदान के पुत्र ने युद्ध स्थल में उनसे उनके शरीर का परित्याग करवा दिया। अमितौजा, युधामन्यु तथा पराक्रमी उत्तमौजा ये सैंकड़ों शूरवीरों का संहार करके हमारे सैनिकों द्वारा मारे गये। भारत! पाञ्चाल योद्धा मित्रवर्मा और क्षत्रधर्मा महाधनुर्धर थे। उन्हें भी द्रोणाचार्य ने यमलोक पहुँचा दिया। भरतवंशी नरेश! आपके पौत्र लक्ष्मण ने युद्ध में योद्धाओं के स्वामी क्षत्रदेव को, जो शिखण्डी का पुत्र था, मार डाला। सुचित्र और चित्रवर्मा से दो महावीर परस्पर पिता पुत्र थे। रणभूमि में विचरते हुए इन दोनों को द्रोणाचार्य ने मार डाला। महाराज! जैसे पूर्णिमा के दिन समुद्र उमड़ पड़ता है, उसी प्रकार वृद्धक्षेम का पुत्र भी युद्ध में उद्यत हो उठा था, परंतु उसके सारे अस्त्र शस्त्र नष्ट हो गये थे, इसलिये वह प्राण शून्य हो सदा के लिये परम शान्त हो गया। राजाधिराज! सेनाबिन्दु का श्रेष्ठपुत्र रणभूमि में शत्रुओं पर प्रहार कर रहा था।

उस समय कौरवेन्द्र बाह्लीक ने उसे मार गिराया। महाराज! चेदिराज का श्रेष्ठ रथी धृष्टकेतु भी युद्ध में दुष्कर कर्म करके यमलोक का पथिक हो गया। पाण्डवों के लिये पराक्रम प्रकट करने वाले वीर सत्यधृति ने रणभूमि में शत्रुओं का संहार करके यमलोक की राह ली। कुरुश्रेष्ठ! सेनाबिन्दु भी युद्ध में शत्रुओं का संहार करके यमलोक की राह ली। कुरुश्रेष्ठ! सेनाबिन्दु भी युद्ध में शत्रुओं का संहार करके काल के गाल में चला गया। शिशुपाल का पुत्र राजा सुकेतु भी युद्ध में शत्रु सैनिकों का वध करके स्वयं भी द्रोणाचार्य के हाथों मारा गया। इसी प्रकार वीर सत्यधृति, पराक्रमी मदिराश्व और बल विक्रमशाली सूर्यदत्त भी द्रोणाचार्य के बाणों से मारे गये हैं। महाराज! पराक्रम पूर्वक युद्ध करने वाले श्रेणिमान ने युद्ध में दुष्कर कर्म करके यमलोक का आश्रय लिया है।

राजन! इसी प्रकार शत्रुवीरों का संहार करने वाला और उत्तम अस्त्रों का ज्ञाता पराक्रमी मागध वीर भी भीष्म जी के हाथ से मारा जाकर रणभूमि में सो रहा है। राजा विराट के पुत्र शंख और महारथी उत्तर ये दोनों युद्ध में महान कर्म करके यमलोक में जा पहुँचे हैं। वसुदान भी युद्ध स्थल में बड़ा भारी संहार मचा रहा था। परंतु भरद्वाज नन्दन द्रोण ने पराक्रम करके उसे यमलोक पहुँचा दिया। अपने बाहुबल से सुशोभित होने वाले अश्वत्थामा ने बलवान एवं पराक्रमी पाण्ड्यराज को मारकर यमलोक पहुँचा दिया। ये तथा और भी बहुत से पाण्डव महारथी, जिनके बारे में आप मुझसे पूछ रहे थे, द्रोणाचार्य के द्वारा बलपूर्वक मार डाले गाये।[2]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 6 श्लोक 1-21
  2. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 6 श्लोक 22-39

सम्बंधित लेख

महाभारत कर्ण पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जनमेजय का वैशम्पायन से कर्णवध वृत्तान्त कहने का अनुरोध | धृतराष्ट्र और संजय का वार्तालाप | दुर्योधन का सेना को आश्वासन तथा कर्णवध का संक्षिप्त वृत्तान्त | धृतराष्ट्र का शोक और समस्त स्त्रियों की व्याकुलता | संजय का कौरव पक्ष के मारे गये प्रमुख वीरों का परिचय देना | कौरवों द्वारा मारे गये प्रधान पांडव पक्ष के वीरों का परिचय | कौरव पक्ष के जीवित योद्धाओं का वर्णन और धृतराष्ट्र की मूर्छा | कर्ण के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप | धृतराष्ट्र का संजय से कर्णवध का विस्तारपूर्वक वृत्तान्त पूछना | कर्ण को सेनापति बनाने के लिए अश्वत्थामा का प्रस्ताव | कर्ण का सेनापति पद पर अभिषेक | कर्ण के सेनापतित्व में कौरवों द्वारा मकरव्यूह का निर्माण | पांडव सेना द्वारा अर्धचन्द्राकार व्यूह की रचना | कौरव और पांडव सेनाओं का घोर युद्ध | भीमसेन द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | सात्यकि द्वारा विन्द और अनुविन्द का वध | द्रौपदीपुत्र श्रुतकर्मा द्वारा चित्रसेन का वध | द्रौपदीपुत्र प्रतिविन्ध्य द्वारा चित्र का वध | अश्वत्थामा और भीमसेन का युद्ध तथा दोनों का मूर्छित होना | अर्जुन का संशप्तकों के साथ युद्ध | अर्जुन का अश्वत्थामा के साथ अद्भुत युद्ध | अर्जुन के द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | अर्जुन के द्वारा दण्डधार का वध | अर्जुन के द्वारा दण्ड का वध | अर्जुन के द्वारा संशप्तक सेना का संहार | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धस्थल का दृश्य दिखाते हुए उनकी प्रशंसा करना | पाण्ड्य नरेश का कौरव सेना के साथ युद्धारम्भ | अश्वत्थामा के द्वारा पाण्ड्य नरेश का वध | कौरव-पांडव दलों का भयंकर घमासान युद्ध | पांडव सेना पर भयानक गजसेना का आक्रमण | पांडवों द्वारा बंगराज तथा अंगराज का वध | कौरवों की गजसेना का विनाश और पलायन | सहदेव के द्वारा दु:शासन की पराजय | नकुल और कर्ण का घोर युद्ध | कर्ण के द्वारा नकुल की पराजय | कर्ण के द्वारा पांचाल सेना का संहार | युयुत्सु और उलूक का युद्ध तथा युयुत्सु का पलायन | शतानीक और श्रुतकर्मा का युद्ध | सुतसोम और शकुनि का घोर युद्ध | कृपाचार्य से धृष्टद्युम्न का भय | कृतवर्मा के द्वारा शिखण्डी की पराजय | अर्जुन द्वारा श्रुतंजय, सौश्रुति तथा चन्द्रदेव का वध | अर्जुन द्वारा सत्यसेन का वध तथा संशप्तक सेना का संहार | युधिष्ठिर और दुर्योधन का युद्ध | उभयपक्ष की सेनाओं का अमर्यादित भयंकर संग्राम | युधिष्ठिर के द्वारा दुर्योधन की पराजय | कर्ण और सात्यकि का युद्ध | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार और पांडवों की विजय | कौरवों की रात्रि में मन्त्रणा | धृतराष्ट्र के द्वारा दैव की प्रबलता का प्रतिपादन | संजय द्वारा धृतराष्ट्र पर दोषारोप | कर्ण और दुर्योधन की बातचीत | दुर्योधन की शल्य से कर्ण का सारथि बनने के लिए प्रार्थना | कर्ण का सारथि बनने के विषय में शल्य का घोर विरोध करना | शल्य द्वारा कर्ण का सारथि कर्म स्वीकार करना | दुर्योधन द्वारा शल्य से त्रिपुरों की उत्पत्ति का वर्णन करना | इंद्र आदि देवताओं का शिव की शरण में जाना | इंद्र आदि देवताओं द्वारा शिव की स्तुति करना | देवताओं की शिव से त्रिपुरों के वध हेतु प्रार्थना | दुर्योधन द्वारा शल्य को शिव के विचित्र रथ का विवरण सुनाना | देवताओं का ब्रह्मा को शिव का सारथि बनाना | शिव द्वारा त्रिपुरों का वध करना | परशुराम द्वारा कर्ण को दिव्यास्त्र प्राप्ति का वर्णन | शल्य और दुर्योधन का वार्तालाप | कर्ण का सारथि होने के लिए शल्य की स्वीकृति | कर्ण का युद्ध हेतु प्रस्थान और शल्य से उसकी बातचीत | कौरव सेना में अपशकुन | कर्ण की आत्मप्रशंसा | शल्य द्वारा कर्ण का उपहास और अर्जुन के बल-पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा श्रीकृष्ण-अर्जुन का पता देने वाले को पुरस्कार देने की घोषणा | शल्य का कर्ण के प्रति अत्यन्त आक्षेपपूर्ण वचन कहना | कर्ण का शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्रदेश के निवासियों की निन्दा | कर्ण द्वारा शल्य को मार डालने की धमकी देना | शल्य का कर्ण को हंस और कौए का उपाख्यान सुनाना | शल्य द्वारा कर्ण को श्रीकृष्ण और अर्जुन की शरण में जाने की सलाह | कर्ण का शल्य से परशुराम द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का अभिमानपूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण का शल्य से ब्राह्मण द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का आत्मप्रशंसापूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्र आदि बाहीक देशवासियों की निन्दा | कर्ण का मद्र आदि बाहीक निवासियों के दोष बताना | शल्य का कर्ण को उत्तर और दुर्योधन का दोनों को शान्त करना | कर्ण द्वारा कौरव सेना की व्यूह रचना | युधिष्ठिर के आदेश से अर्जुन का आक्रमण | शल्य द्वारा पांडव सेना के प्रमुख वीरों का वर्णन | शल्य द्वारा अर्जुन की प्रशंसा | कौरव-पांडव सेना का भयंकर युद्ध तथा अर्जुन और कर्ण का पराक्रम | कर्ण द्वारा कई योद्धाओं सहित पांडव सेना का संहार | भीम द्वारा कर्णपुत्र भानुसेन का वध | नकुल और सात्यकि के साथ वृषसेन का युद्ध | कर्ण का राजा युधिष्ठिर पर आक्रमण | कर्ण और युधिष्ठिर का संग्राम तथा कर्ण की मूर्छा | कर्ण द्वारा युधिष्ठिर की पराजय और तिरस्कार | पांडवों के हज़ारों योद्धाओं का वध | रक्त नदी का वर्णन और पांडव महारथियों द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | कर्ण और भीमसेन का युद्ध | कर्ण की मूर्छा और शल्य का उसे युद्धभूमि से हटा ले जाना | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के छ: पुत्रों का वध | भीम और कर्ण का घोर युद्ध | भीम के द्वारा गजसेना, रथसेना और घुड़सवारों का संहार | उभयपक्ष की सेनाओं का घोर युद्ध | कौरव-पांडव सेनाओं का घोर युद्ध और कौरव सेना का व्यथित होना | अर्जुन द्वारा दस हज़ार संशप्तक योद्धाओं और उनकी सेना का संहार | कृपाचार्य द्वारा शिखण्डी की पराजय | कृपाचार्य द्वारा सुकेतु का वध | धृष्टद्युम्न के द्वारा कृतवर्मा की पराजय | अश्वत्थामा का घोर युद्ध और सात्यकि के सारथि का वध | युधिष्ठिर का अश्वत्थामा को छोड़कर दूसरी ओर चले जाना | नकुल-सहदेव के साथ दुर्योधन का युद्ध | धृष्टद्युम्न से दुर्योधन की पराजय | कर्ण द्वारा पांचाल सेना सहित योद्धाओं का संहार | भीम द्वारा कौरव योद्धाओं का सेना सहित विनाश | अर्जुन द्वारा संशप्तकों का वध | अश्वत्थामा का अर्जुन से घोर युद्ध करके पराजित होना | दुर्योधन का सैनिकों को प्रोत्साहन देना और अश्वत्थामा की प्रतिज्ञा | अर्जुन का श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर के पास चलने का आग्रह | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धभूमि का दृश्य दिखाते हुए रथ को आगे बढ़ाना | धृष्टद्युम्न और कर्ण का युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न पर आक्रमण | अर्जुन द्वारा धृष्टद्युम्न की रक्षा और अश्वत्थामा की पराजय | श्रीकृष्ण का अर्जुन से दुर्योधन के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन से कर्ण के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्साहित करना | श्रीकृष्ण का अर्जुन से भीम के दुष्कर पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा शिखण्डी की पराजय | धृष्टद्युम्न और दु:शासन तथा वृषसेन और नकुल का युद्ध | सहदेव द्वारा उलूक की तथा सात्यकि द्वारा शकुनि की पराजय | कृपाचार्य द्वारा युधामन्यु की एवं कृतवर्मा द्वारा उत्तमौजा की पराजय | भीम द्वारा दुर्योधन की पराजय तथा गजसेना का संहार | युधिष्ठिर पर कौरव सैनिकों का आक्रमण | कर्ण द्वारा नकुल-सहदेव सहित युधिष्ठिर की पराजय | युधिष्ठिर का अपनी छावनी में जाकर विश्राम करना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | पांडवों द्वारा कौरव सेना में भगदड़ | कर्ण द्वारा भार्गवास्त्र से पांचालों का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन का भीम को युद्ध का भार सौंपना | श्रीकृष्ण और अर्जुन का युधिष्ठिर के पास जाना | युधिष्ठिर का अर्जुन से भ्रमवश कर्ण के मारे जाने का वृत्तान्त पूछना | अर्जुन का युधिष्ठिर से कर्ण को न मार सकने का कारण बताना | अर्जुन द्वारा कर्णवध हेतु प्रतिज्ञा | युधिष्ठिर का अर्जुन के प्रति अपमानजनक क्रोधपूर्ण वचन | अर्जुन का युधिष्ठिर के वध हेतु उद्यत होना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को बलाकव्याध और कौशिक मुनि की कथा सुनाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को धर्म का तत्त्व बताकर समझाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञाभंग, भ्रातृवध तथा आत्मघात से बचाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को सान्त्वना देकर संतुष्ट करना | अर्जुन से श्रीकृष्ण का उपदेश | अर्जुन और युधिष्ठिर का मिलन | अर्जुन द्वारा कर्णवध की प्रतिज्ञा और युधिष्ठिर का आशीर्वाद | श्रीकृष्ण और अर्जुन की रणयात्रा | अर्जुन को मार्ग में शुभ शकुन संकेतों का दर्शन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रोत्साहन देना | श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन के बल की प्रशंसा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्तेजित करना | अर्जुन के वीरोचित उद्गार | कौरव-पांडव सेना में द्वन्द्वयुद्ध तथा सुषेण का वध | भीम का अपने सारथि विशोक से संवाद | अर्जुन और भीम द्वारा कौरव सेना का संहार | भीम द्वारा शकुनि की पराजय | धृतराष्ट्रपुत्रों का भागकर कर्ण का आश्रय लेना | कर्ण के द्वारा पांडव सेना का संहार और पलायन | अर्जुन द्वारा कौरव सेना का विनाश करके रक्त की नदी बहाना | अर्जुन का श्रीकृष्ण से रथ कर्ण के पास ले चलने के लिए कहना | श्रीकृष्ण और अर्जुन को आते देख शल्य और कर्ण की बातचीत | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | अर्जुन का कौरव सेना को नष्ट करके आगे बढ़ना | अर्जुन और भीम के द्वारा कौरव वीरों का संहार | कर्ण का पराक्रम | सात्यकि के द्वारा कर्णपुत्र प्रसेन का वध | कर्ण का घोर पराक्रम | दु:शासन और भीमसेन का युद्ध | भीम द्वारा दु:शासन का रक्तपान और उसका वध | युधामन्यु द्वारा चित्रसेन का वध तथा भीम का हर्षोद्गार | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों का वध | कर्ण का भय और शल्य का समझाना | नकुल और वृषसेन का युद्ध | कौरव वीरों द्वारा कुलिन्दराज के पुत्रों और हाथियों का संहार | अर्जुन द्वारा वृषसेन का वध | कर्ण से युद्ध के विषय में श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन का कर्ण के सामने उपस्थित होना | कर्ण और अर्जुन का द्वैरथ युद्ध में समागम | कर्ण-अर्जुन युद्ध की जय-पराजय के सम्बंध में प्राणियों का संशय | ब्रह्मा और शिव द्वारा अर्जुन की विजय घोषणा | कर्ण की शल्य से और अर्जुन की श्रीकृष्ण से वार्ता | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार | अश्वत्थामा का दुर्योधन से संधि के लिए प्रस्ताव | दुर्योधन द्वारा अश्वत्थामा के संधि प्रस्ताव को अस्वीकार करना | कर्ण और अर्जुन का भयंकर युद्ध | अर्जुन के बाणों से संतप्त होकर कौरव वीरों का पलायन | श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन की सर्पमुख बाण से रक्षा | कर्ण के रथ का पहिया पृथ्वी में फँसना | अर्जुन से बाण न चलाने के लिए कर्ण का अनुरोध | श्रीकृष्ण का कर्ण को चेतावनी देना | अर्जुन के द्वारा कर्ण का वध | कर्णवध पर कौरवों का शोक तथा भीम आदि पांडवों का हर्ष | कर्णवध से दु:खी दुर्योधन को शल्य द्वारा सांत्वना | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदल सैनिकों का वध | अर्जुन द्वारा रथसेना का विध्वंस | दुर्योधन द्वारा कौरव सेना को रोकने का विफल प्रयास | शल्य के द्वारा रणभूमि का दिग्दर्शन | श्रीकृष्ण और अर्जुन का शिविर की ओर गमन | कौरव सेना का शिबिर की ओर पलायन | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को कर्णवध का समाचार देना | कर्णवध से प्रसन्न युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुन की प्रशंसा | कर्णपर्व के श्रवण की महिमा

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः