कौरव वीरों द्वारा कुलिन्दराज के पुत्रों और हाथियों का संहार

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 85वें अध्याय में कौरव वीरों द्वारा कुलिन्दराज के पुत्रों और हाथियों के संहार का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

दोनों पक्ष के योद्धाओं का युद्ध के लिये रणभूमि में आना

संजय कहते हैं- महाराज! वृषसेन ने नकुल के धनुष और तलवार को काट दिया, वे रथहीन हो गये हैं, शत्रु के बाणों से पीड़ित हैं तथा कर्ण के पुत्र ने अपने अस्त्रों द्वारा उन्हें पराजित कर दिया है, यह जानकर श्रेष्ठ पुरुष भीमसेन के आदेश से हाथों में अस्त्र-शस्त्र लिये शत्रुओं का सामना करने में समर्थ द्रुपद के पांच श्रेष्ठ पुत्र, छठे सात्यकि तथा द्रौपदी के पांच पुत्र- ये ग्यारह वीर आपके पक्ष के हाथी, घोडे़ रथ और पैदल सैनिकों का अपने सर्पतुल्य बाणों द्वारा संहार करते हुए रथों द्वारा वहाँ शीघ्रतापूर्वक आ पहुँचे। उस समय उनके रथ की पताकाएँ वायु के वेग से फहरा रही थी। उनके घोडे़ उछलते हुए आ रहे थे और वे सब के सब जोर-जोर से गर्जना कर रहे थे। तदनन्तर कृपाचार्य, कृतवर्मा, अश्वत्थामा, दुर्योधन, शकुनिपुत्र उलूक, वृक, क्राथ और देवावृध- ये आपके प्रमुख महारथी बड़ी उतावली के साथ धनुष लिये हाथी और मेंघों के समान शब्द करने वाले रथों पर आरूढ़ हो उन पाण्डव वीरों का सामना करने के लिये आ पहुँचे।

कृपाचार्य द्वारा कुलिन्द राजकुमारों का वध करना

नरश्रेष्ठ! कृपाचार्य आदि आपके रथी वीरों ने अपने उत्तम बाणों द्वारा प्रहार करते हुए वहाँ पाण्डव-पक्ष के उन ग्यारह महारथी वीरों को आगे बढ़ने से रोक दिया। तत्पश्चात् कुलिन्द देश के योद्धा नूतन मेंघ के समान काले, पर्वत शिखरों के समान विशालकाय और भयंकर वेगशाली हाथियों द्वारा कौरव-वीरों पर चढ़ आये। वे हिमाचल प्रदेश के मदोन्मत्त हाथी अच्छी तरह सजाये गये थे। उनकी पीठों पर सोने की जालियों से युक्त झूल पड़े हुए थे और उनके ऊपर युद्ध की अभिलाषा रखने वाले, रणकुशल कुलिन्द वीर बैठे हुए थे। उस समय रणभूमि में वे हाथी [[आकाश[[ में बिजली सहित मेंघों के समान शोभा पा रहे थे। कुलिन्दराज के पुत्र ने लोहे के बने हुए दस विशाल बाणों से सारथि और घोड़ों सहित कृपाचार्य को अत्यन्त पीड़ित कर दिया। तदनन्तर शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य के बाणों द्वारा मारा गया जाकर वह हाथी के साथ ही पृथ्वी पर गिर पड़ा। कुलिन्द राजकुमार का छोटा भाई सूर्य की किरणों के समान कान्तिमान एवं लोहे के बने हुए तोमरों द्वारा गान्धार राज के रथ की धज्जियां उड़ाकर जोर-जोर से गर्जना करने लगा। इतने में ही गान्धार राज ने उस गर्जते हुए वीर का सिर काट लिया। उन कुलिन्द वीरों के मारे जाने पर आपके महारथी बड़े प्रसन्न हुए। वे जोर-जोर से शंख बजाने लगे और हाथ में धनुष-बाण लिये शत्रुओं पर टूट पड़े।

कौरव और पांडव योद्धाओं का युद्ध

तदनन्तर कौरवों का पाण्डवों तथा सृंजयों के साथ पुनः अत्यन्त भयंकर युद्ध होने लगा। वह घमासान युद्ध बाण, खड्ग, शक्ति, ऋष्टि, गदा और फरसों की मार से मनुष्यों, घोडों और हाथियों के प्राण ले रहा था। जैसे बिजली की चमक और गर्जना से युक्त मेघ भयंकर वायु वेग से ताड़ित हो सम्पूर्ण दिशाओं से गिर जाते हैं, उसी प्रकार रथों, घोड़ो, हाथियों और पैदलों द्वारा परस्पर मारे जाकर वे युद्धरायण योद्धा धराशायी होने लगे। तदनन्तर शतानीक द्वारा सम्मानित विशाल गजराजों, अश्वों, रथों और बहुत-से पैदल समूहों को कृतवर्मा ने मार डाला। वे कृतवर्मा के बाणों से छिन्न-भिन्न हो क्षणभर में धरती पर गिर पड़े।[1] इसके बाद अश्वत्थामा ने सम्पूर्ण आयुधों, योद्धाओं और ध्वजाओं सहित अन्य तीन विशाल गजराजों को मार गिराया। उसके द्वारा मारे गये वे विशाल गजराज वज्र के मारे हुए महान पर्वतों के समान प्राणशुन्य होकर पृथ्वी पर गिर पड़े।

कुलिन्दराज के छोटे भाई से भी जो छोटा था, उसने श्रेष्ठ बाणों द्वारा आपके पुत्र की छाती में चोट पहुँचायी। तब आपके पुत्र ने अपने तीखें बाणों से उसके शरीर और हाथी दोनों को घायल कर दिया। जैसे वर्षा काल में इन्द्र के वज्र से आहत हुआ गेरू का पर्वत लाल रंग का पानी बहाता है, इसी प्रकार वह गजराज अपने शरीर से सब ओर बहुत-सा रक्त बहाता हुआ कुलिन्दराज कुमार के साथ ही धराशायी हो गया। अब कुलिन्दराज कुमार ने दूसरा हाथी आगे बढाया। उसने क्राथ के सारथि, घोड़ो और रथ को कुचल डाला, परन्तु क्राथ के बाणों से पीड़ित हो वह हाथी वज्रताड़ित पर्वत के समान अपने स्वामी के साथ ही धराशायी हो गया। तदनन्तर जैसे आँधी का उखाड़ा हुआ विशाल वृक्ष पृथ्वी पर गिर जाता है, उसी प्रकार घोडे़, सारथि, धनुष और ध्वज सहित दुर्जय महारथी क्राथ नरेश हाथी पर बैठे हुए एक पर्वतीय वीर के बाणों से मारा जाकर रथ से नीचे जा गिरा। तब वृक ने उस पहाड़ी राजा को बारह बाण मारकर अत्यन्त घायल कर दिया। चोट खाकर पर्वतीय नरेश का वह विशाल गजराज वृक की ओर झपटा और उसने रथ और घोड़ों सहित वृक को अपने चारों पैरों से दबाकर तुरंत ही उसका कचूमर निकाल दिया। अंत में बभ्रुपुत्र के बाणों से अत्यन्त आहत होकर वह गजराज भी संचालक सहित धरती पर लोट गया। फिर वह देवावृध कुमार भी सहदेव के पुत्र से पीड़ित हो धराशायी हो गया।[2]

तत्पश्चात् दूसरे कुलिन्दराज कुमार ने शकुनि को मार डालने के लिये दाँत, शरीर और सूँड़ के द्वारा बड़े-बड़े़ योद्धाओं को मार गिराने वाले हाथी के द्वारा उस पर वेगपूर्वक आक्रमण किया और उसे अत्यन्त घायल कर दिया। तब गान्धार राज शकुनि ने उसका सिर काट लिया। यह देख शतानीक ने आपकी सेना पर आक्रमण किया। जैसे गरुड़ के पंखों की हवा से आहत हुए सर्प पृथ्वी गिर पड़ते हैं, उसी प्रकार शतानीक द्वारा मारे गये आपके विशाल हाथी, घोडे़, रथ और पैदल विवश हो पृथ्वी पर गिरकर चूर-चूर हो गये। तदनन्तर मुस्कराते हुए कलिंग राज के पुत्र ने अपने बहुसंख्यक पैने बाणों द्वारा नकुल के पुत्र शतानीक को क्षत-विक्षत कर दिया। इससे नकुलकुमार को बड़ा क्रोध हुआ और उसने एक क्षुर के द्वारा कलिंग राजकुमार का कमल सदृश मुखवाला मस्तक काट डाला।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 85 श्लोक 1-11
  2. 2.0 2.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 85 श्लोक 12-24

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