अश्वत्थामा का अर्जुन से घोर युद्ध करके पराजित होना

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 56वें अध्याय में संजय ने अश्वत्थामा का अर्जुन से घोर युद्ध तथा अश्वत्थामा का पराजित होने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

अश्वत्थामा और अर्जुन का घोर युद्ध तथा अश्वत्थामा की पराजय

संजय कहते हैं- प्रजानाथ! अर्जुन के एक-एक बाण से मारे गये रक्तरंजित काबुली घोड़ों, यवनों और शकों के खून से वह सारा युद्धस्‍थल लाल हो गया था। रथों के घोड़े और सारथि, घोड़ों के सवार, हाथियों के आरोही, महावत और स्‍वयं हाथी भी मारे गये। महाराज! इन सबने परस्‍पर प्रहार करके घोर जनसंहार मचा दिया था। उस युद्ध में जब सव्‍यसाची अर्जुन ने शत्रुओं के पक्ष और प्रपक्ष दोनों को मार गिराया, तब द्रोणपुत्र अश्वत्‍थामा अपने सुवर्णभूषित विशाल धनुष को हिलाता और अपनी किरणों को धारण करने वाले सूर्यदेव के समान भयंकर बाण हाथ में लेता हुआ तुरंत विजयी वीरों में श्रेष्ठ अर्जुन के सामने आ पहुँचा। उस समय क्रोध और अमर्ष से उसका मुंह खुला हुआ था, नेत्र रक्तवर्ण हो रहे थे तथा वह बलवान अश्वत्‍थामा अन्‍तकाल में किंकर नामक दण्‍ड धारण करने वाले कुपित यमराज के समान जान पड़ता था। महाराज! तत्‍पश्चात् वह समूह-के-समूह भयंकर बाणों की वर्षा करने लगा। उसके छोड़े हुए बाणों से व्‍यथित हो पाण्डव सेना भागने लगी। माननीय प्रजानाथ! वह रथ पर बैठे हुए श्रीकृष्‍ण की ओर देखकर ही पुन: उनके ऊपर भयानक बाणों की वृष्टि करने लगे। महाराज अश्वत्‍थामा के हाथों से छूटकर सब ओर गिरने वाले उन बाणों से रथ पर बैठे हुए श्रीकृष्‍ण और अर्जुन दोनों ही ढक गये। तत्‍पश्चात् प्रतापी अश्वत्‍थामा ने सैकड़ों तीखे बाणों द्वारा श्रीकृष्‍ण और अर्जुन दोनों को युद्धस्‍थल में निश्चेष्‍ट कर दिया। चराचर जगत की रक्षा करने वाले उन दोनों वीरों को बाणों से आच्‍छादित हुआ देख स्‍थावर-जगम समस्‍त प्राणी हाहाकार कर उठे। सिद्धों और चारणों के समुदाय सब ओर से वहाँ आ पहुँचे और यह चिन्‍तन करने लगे कि ‘आज सम्‍पूर्ण जगत् का कल्‍याण हो’।

राजन! समरांगण में श्रीकृष्‍ण और अर्जुन को बाणों द्वारा आच्‍छादित करने वाले अश्वत्‍थामा का जैसा पराक्रम उस दिन देखा गया, वैसा मैंने पहले कभी नहीं देखा था। महाराज! मैंने रणभूमि में अश्वत्‍थामा के धनुष की शत्रुओं को भयभीत कर देने वाली टंकार बारंबार सुनी, मानो किसी सिंह के दहाड़ने की आवाज हो रही हो। जैसे मेघों की घटा के बीच में बिजली चमकती है, उसी प्रकार युद्ध में दायें-बायें बाण वर्षापूर्वक विचरते हुए अश्वत्‍थामा के धनुष की प्रत्‍यंचा भी प्रकाशित हो रही थी। युद्ध में फुर्ती करने और दृढ़तापूर्वक हाथ चलाने वाले महायशस्‍वी पाण्‍डुनन्‍दन अर्जुन द्रोणकुमार की ओर देखकर भारी मोह में पड़ गये और अपने पराक्रम को प्रतिहत हुआ मानने लगे। राजन! उस समरांगण में अश्वत्‍थामा के शरीर की ओर देखना भी अत्‍यन्‍त कठिन हो रहा था। राजेन्‍द्र! इस प्रकार अश्वत्‍थामा और अर्जुन में महान युद्ध आरम्‍भ होने पर जब महाबली द्रोणपुत्र बढ़ने लगा और कुन्‍तीकुमार अर्जुन का पराक्रम मन्‍द पड़ने लगा, तब भगवान श्रीकृष्‍ण को बड़ा क्रोध हुआ। राजन! वे रोष से लंबी सांस खींचते और अपने नेत्रों द्वारा दग्‍ध सा करते हुए युद्धस्‍थल में अश्वत्‍थामा और अर्जुन की ओर बारंबार देखने लगे। तत्‍पश्चात् क्रोध में भरे हुए श्रीकृष्‍ण उस समय अर्जुन से प्रेमपूर्वक बोले- ‘पार्थ! युद्धस्‍थल में तुम्‍हारा यह अपेक्षायुक्त अद्भुत बर्ताव देख रहा हूँ। भारत! आज द्रोणपुत्र अश्वत्‍थामा तुम से सर्वथा बढ़ता जा रहा है। अर्जुन! तुम्‍हारी शारीरिक शक्ति पहले के समान ही ठीक है न अथवा तुम्‍हारी भुजाओं में पूर्ववत बल तो है न तुम्‍हारे हाथ में गाण्डीव धनुष तो है न और तुम रथ पर ही खड़े हो न। क्‍या तुम्‍हारी दोनों भुजाएं सकुशल हैं तुम्‍हारी मुट्टी तो ढीली नहीं हो गयी है अर्जुन! मैं देखता हूँ कि युद्ध स्‍थल में अश्वत्‍थामा तुम से बढ़ा जा रहा है। भरतश्रेष्ठ! कुन्‍तीनन्‍दन! यह मेरे गुरु का पुत्र है, ऐसा मानकर तुम इसके प्रति उपेक्षा भाव न करो। यह समय उपेक्षा करने का नहीं है’

भगवान श्रीकृष्‍ण के ऐसा कहने पर अर्जुन के चौदह भल्ल हाथ में लेकर शीघ्रता करने के अवसर पर फुर्ती दिखायी और अश्वत्‍थामा के धनुष को काट डाला। साथ ही उसके ध्‍वज, छत्र, पताका, खड्ग, शक्ति और गदा के भी टुकड़े-टुकड़े कर दिये। तदनन्‍तर अश्वत्‍थामा के गले की हंसली पर ‘वत्सदन्त’ नामक बाणों द्वारा गहरी चोट पहुँचायी। महाराज! उस आघात से भारी मूर्छा में पड़कर अश्वत्‍थामा ध्‍वजदण्‍ड के सहारे लुढ़क गया। शत्रु से अत्‍यन्‍त पीड़ित एवं अचेत हुए अश्वत्‍थामा को उसका सारथि अर्जुन से उसकी रक्षा करता हुआ रणभूमि से दूर हटा ले गया। भारत! इसी समय शत्रुओं को संताप देने वाले अर्जुन ने आपकी सेना के सैकड़ों और हजारों योद्धाओं को आपके वीर पुत्र के देखते-देखते मार डाला। राजन! इस प्रकार आपकी कुमन्त्रणा के फलस्‍वरुप शत्रुओं के साथ आपके योद्धाओं का यह विनाशकारी, भयंकर एवं क्रूरतापूर्ण संग्राम हुआ। उस समय रणभूमि में कुन्‍तीकुमार अर्जुन ने संशप्तकों का, भीमसेन ने कौरवों का और कर्ण ने पांचाल सैनिकों का क्षणभर में संहार कर डाला। राजन! जब बड़े-बड़े वीरों का विनाश करने वाला वह भीषण संग्राम हो रहा था, उस समय चारों ओर असंख्‍य कबन्‍ध खड़े दिखायी देते थे। भरतश्रेष्ठ! संग्राम में युधिष्ठिर पर बहुत अधिक प्रहार किये गये थे, जिससे उन्‍हें गहरी वेदना हो रही थी। वे रणभूमि से एक कोस दूर हटकर खड़े थे।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 56 श्लोक 111-147

सम्बंधित लेख

महाभारत कर्ण पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जनमेजय का वैशम्पायन से कर्णवध वृत्तान्त कहने का अनुरोध | धृतराष्ट्र और संजय का वार्तालाप | दुर्योधन का सेना को आश्वासन तथा कर्णवध का संक्षिप्त वृत्तान्त | धृतराष्ट्र का शोक और समस्त स्त्रियों की व्याकुलता | संजय का कौरव पक्ष के मारे गये प्रमुख वीरों का परिचय देना | कौरवों द्वारा मारे गये प्रधान पांडव पक्ष के वीरों का परिचय | कौरव पक्ष के जीवित योद्धाओं का वर्णन और धृतराष्ट्र की मूर्छा | कर्ण के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप | धृतराष्ट्र का संजय से कर्णवध का विस्तारपूर्वक वृत्तान्त पूछना | कर्ण को सेनापति बनाने के लिए अश्वत्थामा का प्रस्ताव | कर्ण का सेनापति पद पर अभिषेक | कर्ण के सेनापतित्व में कौरवों द्वारा मकरव्यूह का निर्माण | पांडव सेना द्वारा अर्धचन्द्राकार व्यूह की रचना | कौरव और पांडव सेनाओं का घोर युद्ध | भीमसेन द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | सात्यकि द्वारा विन्द और अनुविन्द का वध | द्रौपदीपुत्र श्रुतकर्मा द्वारा चित्रसेन का वध | द्रौपदीपुत्र प्रतिविन्ध्य द्वारा चित्र का वध | अश्वत्थामा और भीमसेन का युद्ध तथा दोनों का मूर्छित होना | अर्जुन का संशप्तकों के साथ युद्ध | अर्जुन का अश्वत्थामा के साथ अद्भुत युद्ध | अर्जुन के द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | अर्जुन के द्वारा दण्डधार का वध | अर्जुन के द्वारा दण्ड का वध | अर्जुन के द्वारा संशप्तक सेना का संहार | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धस्थल का दृश्य दिखाते हुए उनकी प्रशंसा करना | पाण्ड्य नरेश का कौरव सेना के साथ युद्धारम्भ | अश्वत्थामा के द्वारा पाण्ड्य नरेश का वध | कौरव-पांडव दलों का भयंकर घमासान युद्ध | पांडव सेना पर भयानक गजसेना का आक्रमण | पांडवों द्वारा बंगराज तथा अंगराज का वध | कौरवों की गजसेना का विनाश और पलायन | सहदेव के द्वारा दु:शासन की पराजय | नकुल और कर्ण का घोर युद्ध | कर्ण के द्वारा नकुल की पराजय | कर्ण के द्वारा पांचाल सेना का संहार | युयुत्सु और उलूक का युद्ध तथा युयुत्सु का पलायन | शतानीक और श्रुतकर्मा का युद्ध | सुतसोम और शकुनि का घोर युद्ध | कृपाचार्य से धृष्टद्युम्न का भय | कृतवर्मा के द्वारा शिखण्डी की पराजय | अर्जुन द्वारा श्रुतंजय, सौश्रुति तथा चन्द्रदेव का वध | अर्जुन द्वारा सत्यसेन का वध तथा संशप्तक सेना का संहार | युधिष्ठिर और दुर्योधन का युद्ध | उभयपक्ष की सेनाओं का अमर्यादित भयंकर संग्राम | युधिष्ठिर के द्वारा दुर्योधन की पराजय | कर्ण और सात्यकि का युद्ध | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार और पांडवों की विजय | कौरवों की रात्रि में मन्त्रणा | धृतराष्ट्र के द्वारा दैव की प्रबलता का प्रतिपादन | संजय द्वारा धृतराष्ट्र पर दोषारोप | कर्ण और दुर्योधन की बातचीत | दुर्योधन की शल्य से कर्ण का सारथि बनने के लिए प्रार्थना | कर्ण का सारथि बनने के विषय में शल्य का घोर विरोध करना | शल्य द्वारा कर्ण का सारथि कर्म स्वीकार करना | दुर्योधन द्वारा शल्य से त्रिपुरों की उत्पत्ति का वर्णन करना | इंद्र आदि देवताओं का शिव की शरण में जाना | इंद्र आदि देवताओं द्वारा शिव की स्तुति करना | देवताओं की शिव से त्रिपुरों के वध हेतु प्रार्थना | दुर्योधन द्वारा शल्य को शिव के विचित्र रथ का विवरण सुनाना | देवताओं का ब्रह्मा को शिव का सारथि बनाना | शिव द्वारा त्रिपुरों का वध करना | परशुराम द्वारा कर्ण को दिव्यास्त्र प्राप्ति का वर्णन | शल्य और दुर्योधन का वार्तालाप | कर्ण का सारथि होने के लिए शल्य की स्वीकृति | कर्ण का युद्ध हेतु प्रस्थान और शल्य से उसकी बातचीत | कौरव सेना में अपशकुन | कर्ण की आत्मप्रशंसा | शल्य द्वारा कर्ण का उपहास और अर्जुन के बल-पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा श्रीकृष्ण-अर्जुन का पता देने वाले को पुरस्कार देने की घोषणा | शल्य का कर्ण के प्रति अत्यन्त आक्षेपपूर्ण वचन कहना | कर्ण का शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्रदेश के निवासियों की निन्दा | कर्ण द्वारा शल्य को मार डालने की धमकी देना | शल्य का कर्ण को हंस और कौए का उपाख्यान सुनाना | शल्य द्वारा कर्ण को श्रीकृष्ण और अर्जुन की शरण में जाने की सलाह | कर्ण का शल्य से परशुराम द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का अभिमानपूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण का शल्य से ब्राह्मण द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का आत्मप्रशंसापूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्र आदि बाहीक देशवासियों की निन्दा | कर्ण का मद्र आदि बाहीक निवासियों के दोष बताना | शल्य का कर्ण को उत्तर और दुर्योधन का दोनों को शान्त करना | कर्ण द्वारा कौरव सेना की व्यूह रचना | युधिष्ठिर के आदेश से अर्जुन का आक्रमण | शल्य द्वारा पांडव सेना के प्रमुख वीरों का वर्णन | शल्य द्वारा अर्जुन की प्रशंसा | कौरव-पांडव सेना का भयंकर युद्ध तथा अर्जुन और कर्ण का पराक्रम | कर्ण द्वारा कई योद्धाओं सहित पांडव सेना का संहार | भीम द्वारा कर्णपुत्र भानुसेन का वध | नकुल और सात्यकि के साथ वृषसेन का युद्ध | कर्ण का राजा युधिष्ठिर पर आक्रमण | कर्ण और युधिष्ठिर का संग्राम तथा कर्ण की मूर्छा | कर्ण द्वारा युधिष्ठिर की पराजय और तिरस्कार | पांडवों के हज़ारों योद्धाओं का वध | रक्त नदी का वर्णन और पांडव महारथियों द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | कर्ण और भीमसेन का युद्ध | कर्ण की मूर्छा और शल्य का उसे युद्धभूमि से हटा ले जाना | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के छ: पुत्रों का वध | भीम और कर्ण का घोर युद्ध | भीम के द्वारा गजसेना, रथसेना और घुड़सवारों का संहार | उभयपक्ष की सेनाओं का घोर युद्ध | कौरव-पांडव सेनाओं का घोर युद्ध और कौरव सेना का व्यथित होना | अर्जुन द्वारा दस हज़ार संशप्तक योद्धाओं और उनकी सेना का संहार | कृपाचार्य द्वारा शिखण्डी की पराजय | कृपाचार्य द्वारा सुकेतु का वध | धृष्टद्युम्न के द्वारा कृतवर्मा की पराजय | अश्वत्थामा का घोर युद्ध और सात्यकि के सारथि का वध | युधिष्ठिर का अश्वत्थामा को छोड़कर दूसरी ओर चले जाना | नकुल-सहदेव के साथ दुर्योधन का युद्ध | धृष्टद्युम्न से दुर्योधन की पराजय | कर्ण द्वारा पांचाल सेना सहित योद्धाओं का संहार | भीम द्वारा कौरव योद्धाओं का सेना सहित विनाश | अर्जुन द्वारा संशप्तकों का वध | अश्वत्थामा का अर्जुन से घोर युद्ध करके पराजित होना | दुर्योधन का सैनिकों को प्रोत्साहन देना और अश्वत्थामा की प्रतिज्ञा | अर्जुन का श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर के पास चलने का आग्रह | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धभूमि का दृश्य दिखाते हुए रथ को आगे बढ़ाना | धृष्टद्युम्न और कर्ण का युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न पर आक्रमण | अर्जुन द्वारा धृष्टद्युम्न की रक्षा और अश्वत्थामा की पराजय | श्रीकृष्ण का अर्जुन से दुर्योधन के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन से कर्ण के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्साहित करना | श्रीकृष्ण का अर्जुन से भीम के दुष्कर पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा शिखण्डी की पराजय | धृष्टद्युम्न और दु:शासन तथा वृषसेन और नकुल का युद्ध | सहदेव द्वारा उलूक की तथा सात्यकि द्वारा शकुनि की पराजय | कृपाचार्य द्वारा युधामन्यु की एवं कृतवर्मा द्वारा उत्तमौजा की पराजय | भीम द्वारा दुर्योधन की पराजय तथा गजसेना का संहार | युधिष्ठिर पर कौरव सैनिकों का आक्रमण | कर्ण द्वारा नकुल-सहदेव सहित युधिष्ठिर की पराजय | युधिष्ठिर का अपनी छावनी में जाकर विश्राम करना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | पांडवों द्वारा कौरव सेना में भगदड़ | कर्ण द्वारा भार्गवास्त्र से पांचालों का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन का भीम को युद्ध का भार सौंपना | श्रीकृष्ण और अर्जुन का युधिष्ठिर के पास जाना | युधिष्ठिर का अर्जुन से भ्रमवश कर्ण के मारे जाने का वृत्तान्त पूछना | अर्जुन का युधिष्ठिर से कर्ण को न मार सकने का कारण बताना | अर्जुन द्वारा कर्णवध हेतु प्रतिज्ञा | युधिष्ठिर का अर्जुन के प्रति अपमानजनक क्रोधपूर्ण वचन | अर्जुन का युधिष्ठिर के वध हेतु उद्यत होना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को बलाकव्याध और कौशिक मुनि की कथा सुनाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को धर्म का तत्त्व बताकर समझाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञाभंग, भ्रातृवध तथा आत्मघात से बचाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को सान्त्वना देकर संतुष्ट करना | अर्जुन से श्रीकृष्ण का उपदेश | अर्जुन और युधिष्ठिर का मिलन | अर्जुन द्वारा कर्णवध की प्रतिज्ञा और युधिष्ठिर का आशीर्वाद | श्रीकृष्ण और अर्जुन की रणयात्रा | अर्जुन को मार्ग में शुभ शकुन संकेतों का दर्शन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रोत्साहन देना | श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन के बल की प्रशंसा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्तेजित करना | अर्जुन के वीरोचित उद्गार | कौरव-पांडव सेना में द्वन्द्वयुद्ध तथा सुषेण का वध | भीम का अपने सारथि विशोक से संवाद | अर्जुन और भीम द्वारा कौरव सेना का संहार | भीम द्वारा शकुनि की पराजय | धृतराष्ट्रपुत्रों का भागकर कर्ण का आश्रय लेना | कर्ण के द्वारा पांडव सेना का संहार और पलायन | अर्जुन द्वारा कौरव सेना का विनाश करके रक्त की नदी बहाना | अर्जुन का श्रीकृष्ण से रथ कर्ण के पास ले चलने के लिए कहना | श्रीकृष्ण और अर्जुन को आते देख शल्य और कर्ण की बातचीत | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | अर्जुन का कौरव सेना को नष्ट करके आगे बढ़ना | अर्जुन और भीम के द्वारा कौरव वीरों का संहार | कर्ण का पराक्रम | सात्यकि के द्वारा कर्णपुत्र प्रसेन का वध | कर्ण का घोर पराक्रम | दु:शासन और भीमसेन का युद्ध | भीम द्वारा दु:शासन का रक्तपान और उसका वध | युधामन्यु द्वारा चित्रसेन का वध तथा भीम का हर्षोद्गार | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों का वध | कर्ण का भय और शल्य का समझाना | नकुल और वृषसेन का युद्ध | कौरव वीरों द्वारा कुलिन्दराज के पुत्रों और हाथियों का संहार | अर्जुन द्वारा वृषसेन का वध | कर्ण से युद्ध के विषय में श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन का कर्ण के सामने उपस्थित होना | कर्ण और अर्जुन का द्वैरथ युद्ध में समागम | कर्ण-अर्जुन युद्ध की जय-पराजय के सम्बंध में प्राणियों का संशय | ब्रह्मा और शिव द्वारा अर्जुन की विजय घोषणा | कर्ण की शल्य से और अर्जुन की श्रीकृष्ण से वार्ता | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार | अश्वत्थामा का दुर्योधन से संधि के लिए प्रस्ताव | दुर्योधन द्वारा अश्वत्थामा के संधि प्रस्ताव को अस्वीकार करना | कर्ण और अर्जुन का भयंकर युद्ध | अर्जुन के बाणों से संतप्त होकर कौरव वीरों का पलायन | श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन की सर्पमुख बाण से रक्षा | कर्ण के रथ का पहिया पृथ्वी में फँसना | अर्जुन से बाण न चलाने के लिए कर्ण का अनुरोध | श्रीकृष्ण का कर्ण को चेतावनी देना | अर्जुन के द्वारा कर्ण का वध | कर्णवध पर कौरवों का शोक तथा भीम आदि पांडवों का हर्ष | कर्णवध से दु:खी दुर्योधन को शल्य द्वारा सांत्वना | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदल सैनिकों का वध | अर्जुन द्वारा रथसेना का विध्वंस | दुर्योधन द्वारा कौरव सेना को रोकने का विफल प्रयास | शल्य के द्वारा रणभूमि का दिग्दर्शन | श्रीकृष्ण और अर्जुन का शिविर की ओर गमन | कौरव सेना का शिबिर की ओर पलायन | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को कर्णवध का समाचार देना | कर्णवध से प्रसन्न युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुन की प्रशंसा | कर्णपर्व के श्रवण की महिमा

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः