कौरव-पांडव सेनाओं का घोर युद्ध और कौरव सेना का व्यथित होना

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 52वें अध्याय में संजय ने कौरव-पांडव सेनाओं के घोर युद्ध तथा कौरव सेना के व्यथित होने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

कौरव-पांडव सेनाओं का युद्ध तथा कौरव सेना का व्यथित होना

संजय कहते है- महाराज! एक दूसरे के वध की इच्छा वाले वे क्षत्रिय परस्पर वैरभाव रखकर समरांगण में एक दूसरे को मारने लगे। राजेन्द्र रथसमूह, अश्वसमूह, हाथियों के झुंड और पैदल मनुष्यों के समुदाय सब ओर एक दूसरे से उलझे हुए थे। उस अत्यन्त‍ दारुण संग्राम में हम लोग निरन्तंर चलाये जाने वाले परिघों, गदाओं, कणपों, प्रासों, भिन्दिपालों और भुशुण्डियों की धारा सी गिरती देख रहे थे। सब ओर टिड्डीदलों के समान बाणों की वर्षा हो रही थी। हाथी हाथियों से भिड़कर एक-दूसरे को संताप देने लगे। उस समरांगण में घोड़ों, रथी रथियों एवं पैदल पैदल-समूहों, अश्व समुदायों तथा रथों और हाथियों का भी मर्दन कर रहे थे। नरेश्वर! इस प्रकार रथी हाथी और घोड़ों का तथा शीघ्रगामी हाथी उस युद्धस्थल में हाथी सेना के अन्य तीन अंगों को रौंदने लगे। वहाँ मारे जाते और एक दूसरे को कोसते हुए शूरवीरों के आर्तनाद से वह युद्धस्थल वैसा ही भयंकर जान पड़ता था, मानो वहाँ पशुओं का वध किया जा रहा हो। भारत! खून से ढकी हुई यह पृथ्वी वर्षाकाल में वीरबहूटी नामक लाल रंग के कीड़ों से व्याप्त हुई भूमि के समान शोभा पाती थी। अथवा जैसे कोई श्यामवर्णा युवती श्वेत रंग के वस्त्रों को हल्दी के गाढ़े रंग में रंगकर पहले, वैसी ही वह रणभूमि प्रतीत होती थी। मांस और रक्त से चित्रित सी जान पड़ने वाली वह भूमि सुवर्णमयी सी प्रतीत होती थी।

भारत! वहाँ भूतल पर कटे हुए मस्तकों, भुजाओं, जांघों, बड़े-बड़े कुण्डपलों, अन्यान्य आभूषणों, निष्कों धनुर्धर शूरवीरों के शरीरों के, ढालों और पताकाओं के ढेर के ढेर पड़े थे। नरेश्वर! हाथी हाथियों से भिड़कर अपने दांतों से परस्परर पीड़ा दे रहे थे। दांतों की चोट से घायल हो खून से भीगे शरीर वाले हाथी गेरु के रंग से मिले हुए जल का स्त्रोत बहाने वाले झरनों से युक्त धातुमण्डित पर्वतों के समान शोभा पाते थे। कितने ही हाथी घुड़सवारों के छोड़े हुए तोमरों तथा अनेक विपक्षियों को भी सूंड़ों से पकड़कर रणभूमि में विचरते थे तथा दूसरे उनको टुकड़े-टुकड़े कर डालते थे। राजन! नाराचों से कवच छिन्न-भिन्न होने के कारण गजराजों की वैसी ही शोभा हो रही थी, जैसे हेमन्त ऋतु में बिना बादलों के पर्वत शोभित होते हैं। भरतनन्दन! विचित्र प्रकार से सजे हुए उत्तम हाथी सुवर्णमय पंख वाले बाणों के लगने से उल्काओं द्वारा उद्वीप्त शिखरों वाले पर्वतों के समान शोभा पा रहे थे। उस संग्राम में पर्वतों के समान प्रतीत होने वाले कितने ही हाथी हाथियों से घायल हो पंखधारी शैलसमूहों के समान नष्ट हो गये। दूसरे बहुत से हाथी बाणों से व्यथित और घावों से पीड़ित हो भाग चले और कितने ही उस महासमर में दोनों दांतों और कुम्भस्थलों को धरती पर टेककर धराशायी हो गये। राजन दूसरे अनेक गजराज भयंकर गर्जना करते हुए सिंह के समान दहाड़ रहे थे और दूसरे बहुतेरे हाथी इधर उधर चक्कर काटते और चीखते-चिल्लाते थे। सोने के आभूषणों से विभूषित बहुसंख्यक घोड़े बाणों द्वारा घायल होकर बैठ जाते, मलिन हो जाते और दसों दिशाओं में भागने लगते थे।[1] बाणों और तोमरों द्वारा ताड़ित होकर कितने ही अश्व धरती पर लोट जाते और हाथियों द्वारा खींचे जाने पर छटपटाते हुए नाना प्रकार के भाव व्यक्त करते थे।

आर्य! वहाँ घायल होकर पृथ्वी पर पड़े हुए कितने ही मनुष्य अपने बान्धव-जनों को देखकर कराह उठते थे। कितने ही अपने बाप दादों को देखकर कुछ अस्फुट स्वर में बोलने लगते थे। भरतनन्दन! दूसरे बहुत से मनुष्य अन्यान्य लोगों को दौड़ते देख एक दूसरे से अपने प्रसिद्ध नाम और गौत्र बताने लगते थे। महाराज मनुष्यों की कटी हुई सहस्रों सुवर्णभूषित भुजाएं कभी टेढ़ी होकर किसी शरीर से लिपट जाती, कभी छटपटातीं, गिरतीं, ऊपर को उछलतीं, नीचे आ जातीं और तड़पने लगती थीं। प्रजानाथ! सर्पों के शरीरों के समान प्रतीत होने वाली कितनी ही चन्दनचर्चित भुजाएं रणभूमि में पांच मुंह वाले सर्पों के समान महान वेग प्रकट करतीं तथा रक्तरंजित होने के कारण सुवर्णमयी ध्वंजाओं के समान अधिकाधिक शोभा पाती थीं। उस घोर घमासान युद्ध के चालू होने पर सम्पूर्ण योद्धा एक दूसरे पर चोट करते हुए बिना जाने पहचाने ही युद्ध करते थे। राजन! शस्त्रों की धारावाहिक वृष्टि से व्याप्त! तथा धरती की धूल से आच्छादित हुए उस प्रदेश में अपने और शत्रुपक्ष के सैनिक अन्धकार से आच्छादित होने के कारण पहचान में नहीं आते थे। वह युद्ध ऐसा घोर एवं भयानक हो रहा था कि वहाँ बारंबार खून की बड़ी-बड़ी नदियां बह चलती थीं। योद्धाओं के कटे हुए मस्तक शिलाखण्डों के समान उन नदियों को आच्छादित किये रहते थे। उनके केश ही सेवार और घास के समान प्रतीत होते थे, हड्डियां ही उनमें मछलियों के समान व्याप्त हो रही थीं, धनुष, बाण और गदाएं नौका के समान जान पड़ती थीं।

उनके भीतर मांस और रक्त की ही कीचड़ जमी थी। रक्त के प्रवाह को बढ़ाने वाली उन घोर एवं भयंकर नदियों को वहाँ योद्धाओं ने प्रवाहित किया था। वे भयानक रुप वाली नदियां कायरों को डराने और शूर वीरों का हर्ष बढ़ाने वाली थीं तथा प्राणियों को यमलोक पहुँचाती थीं। जो उनमें प्रवेश करते, उन्हें वे डुबो देती थीं और क्षत्रियों के मन में भय उत्पन्न करती थी। नरव्याघ्र! वहाँ गरजते हुए मांसभक्षी जन्तुओं के शब्द वह युद्धस्थल प्रेतराज की नगरी के समान भयानक जान पड़ता था। वहाँ चारों ओर उठे हुए अगणित कबन्ध और रक्त मांस से तृप्त हुए भूतगण नृत्य़ कर रहे थे। भारत! ये सब के सब रक्त तथा वसा पीकर छके हुए थे। मेदा, वसा, मज्जा और मांस से तृप्त एवं मतवाले कौए, गीध और बक सब ओर उड़ते दिखायी देते थे। राजन! उस समर में योद्धाओं के व्रत का पालन करने में विख्यात शूरवीर जिसका त्याग करना अत्यन्त कठिन है, उस भय को छोड़कर निर्भय के समान पराक्रम प्रकट करते थे। बाण और शक्तियों से व्याप्त तथा मांसभक्षी जन्तुओं से भरे हुए उस रणक्षेत्र में शूरवीर अपने पुरुषार्थ की ख्याति बढ़ाते हुए विचर रहे थे। भारत! प्रभो! रणभूमि में कितने ही योद्धा एक दूसरे को अपने और पिता के नाम तथा गोत्र सुनाते थे। प्रजानाथ! नाम और गोत्र सुनाते हुए बहुतेरे योद्धा शक्ति, तोमर और पट्टिशों द्वारा एक दूसरे को धूल में मिला रहे थे। इस प्रकार वह दारुण एवं भयंकर युद्ध चल ही रहा था कि समुद्र में टूटी हुई नौका के समान कौरव-सेना छिन्न-भिन्न हो गयी और विषाद करने लगी।[2]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 52 श्लोक 1-21
  2. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 52 श्लोक 22-42

सम्बंधित लेख

महाभारत कर्ण पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जनमेजय का वैशम्पायन से कर्णवध वृत्तान्त कहने का अनुरोध | धृतराष्ट्र और संजय का वार्तालाप | दुर्योधन का सेना को आश्वासन तथा कर्णवध का संक्षिप्त वृत्तान्त | धृतराष्ट्र का शोक और समस्त स्त्रियों की व्याकुलता | संजय का कौरव पक्ष के मारे गये प्रमुख वीरों का परिचय देना | कौरवों द्वारा मारे गये प्रधान पांडव पक्ष के वीरों का परिचय | कौरव पक्ष के जीवित योद्धाओं का वर्णन और धृतराष्ट्र की मूर्छा | कर्ण के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप | धृतराष्ट्र का संजय से कर्णवध का विस्तारपूर्वक वृत्तान्त पूछना | कर्ण को सेनापति बनाने के लिए अश्वत्थामा का प्रस्ताव | कर्ण का सेनापति पद पर अभिषेक | कर्ण के सेनापतित्व में कौरवों द्वारा मकरव्यूह का निर्माण | पांडव सेना द्वारा अर्धचन्द्राकार व्यूह की रचना | कौरव और पांडव सेनाओं का घोर युद्ध | भीमसेन द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | सात्यकि द्वारा विन्द और अनुविन्द का वध | द्रौपदीपुत्र श्रुतकर्मा द्वारा चित्रसेन का वध | द्रौपदीपुत्र प्रतिविन्ध्य द्वारा चित्र का वध | अश्वत्थामा और भीमसेन का युद्ध तथा दोनों का मूर्छित होना | अर्जुन का संशप्तकों के साथ युद्ध | अर्जुन का अश्वत्थामा के साथ अद्भुत युद्ध | अर्जुन के द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | अर्जुन के द्वारा दण्डधार का वध | अर्जुन के द्वारा दण्ड का वध | अर्जुन के द्वारा संशप्तक सेना का संहार | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धस्थल का दृश्य दिखाते हुए उनकी प्रशंसा करना | पाण्ड्य नरेश का कौरव सेना के साथ युद्धारम्भ | अश्वत्थामा के द्वारा पाण्ड्य नरेश का वध | कौरव-पांडव दलों का भयंकर घमासान युद्ध | पांडव सेना पर भयानक गजसेना का आक्रमण | पांडवों द्वारा बंगराज तथा अंगराज का वध | कौरवों की गजसेना का विनाश और पलायन | सहदेव के द्वारा दु:शासन की पराजय | नकुल और कर्ण का घोर युद्ध | कर्ण के द्वारा नकुल की पराजय | कर्ण के द्वारा पांचाल सेना का संहार | युयुत्सु और उलूक का युद्ध तथा युयुत्सु का पलायन | शतानीक और श्रुतकर्मा का युद्ध | सुतसोम और शकुनि का घोर युद्ध | कृपाचार्य से धृष्टद्युम्न का भय | कृतवर्मा के द्वारा शिखण्डी की पराजय | अर्जुन द्वारा श्रुतंजय, सौश्रुति तथा चन्द्रदेव का वध | अर्जुन द्वारा सत्यसेन का वध तथा संशप्तक सेना का संहार | युधिष्ठिर और दुर्योधन का युद्ध | उभयपक्ष की सेनाओं का अमर्यादित भयंकर संग्राम | युधिष्ठिर के द्वारा दुर्योधन की पराजय | कर्ण और सात्यकि का युद्ध | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार और पांडवों की विजय | कौरवों की रात्रि में मन्त्रणा | धृतराष्ट्र के द्वारा दैव की प्रबलता का प्रतिपादन | संजय द्वारा धृतराष्ट्र पर दोषारोप | कर्ण और दुर्योधन की बातचीत | दुर्योधन की शल्य से कर्ण का सारथि बनने के लिए प्रार्थना | कर्ण का सारथि बनने के विषय में शल्य का घोर विरोध करना | शल्य द्वारा कर्ण का सारथि कर्म स्वीकार करना | दुर्योधन द्वारा शल्य से त्रिपुरों की उत्पत्ति का वर्णन करना | इंद्र आदि देवताओं का शिव की शरण में जाना | इंद्र आदि देवताओं द्वारा शिव की स्तुति करना | देवताओं की शिव से त्रिपुरों के वध हेतु प्रार्थना | दुर्योधन द्वारा शल्य को शिव के विचित्र रथ का विवरण सुनाना | देवताओं का ब्रह्मा को शिव का सारथि बनाना | शिव द्वारा त्रिपुरों का वध करना | परशुराम द्वारा कर्ण को दिव्यास्त्र प्राप्ति का वर्णन | शल्य और दुर्योधन का वार्तालाप | कर्ण का सारथि होने के लिए शल्य की स्वीकृति | कर्ण का युद्ध हेतु प्रस्थान और शल्य से उसकी बातचीत | कौरव सेना में अपशकुन | कर्ण की आत्मप्रशंसा | शल्य द्वारा कर्ण का उपहास और अर्जुन के बल-पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा श्रीकृष्ण-अर्जुन का पता देने वाले को पुरस्कार देने की घोषणा | शल्य का कर्ण के प्रति अत्यन्त आक्षेपपूर्ण वचन कहना | कर्ण का शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्रदेश के निवासियों की निन्दा | कर्ण द्वारा शल्य को मार डालने की धमकी देना | शल्य का कर्ण को हंस और कौए का उपाख्यान सुनाना | शल्य द्वारा कर्ण को श्रीकृष्ण और अर्जुन की शरण में जाने की सलाह | कर्ण का शल्य से परशुराम द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का अभिमानपूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण का शल्य से ब्राह्मण द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का आत्मप्रशंसापूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्र आदि बाहीक देशवासियों की निन्दा | कर्ण का मद्र आदि बाहीक निवासियों के दोष बताना | शल्य का कर्ण को उत्तर और दुर्योधन का दोनों को शान्त करना | कर्ण द्वारा कौरव सेना की व्यूह रचना | युधिष्ठिर के आदेश से अर्जुन का आक्रमण | शल्य द्वारा पांडव सेना के प्रमुख वीरों का वर्णन | शल्य द्वारा अर्जुन की प्रशंसा | कौरव-पांडव सेना का भयंकर युद्ध तथा अर्जुन और कर्ण का पराक्रम | कर्ण द्वारा कई योद्धाओं सहित पांडव सेना का संहार | भीम द्वारा कर्णपुत्र भानुसेन का वध | नकुल और सात्यकि के साथ वृषसेन का युद्ध | कर्ण का राजा युधिष्ठिर पर आक्रमण | कर्ण और युधिष्ठिर का संग्राम तथा कर्ण की मूर्छा | कर्ण द्वारा युधिष्ठिर की पराजय और तिरस्कार | पांडवों के हज़ारों योद्धाओं का वध | रक्त नदी का वर्णन और पांडव महारथियों द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | कर्ण और भीमसेन का युद्ध | कर्ण की मूर्छा और शल्य का उसे युद्धभूमि से हटा ले जाना | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के छ: पुत्रों का वध | भीम और कर्ण का घोर युद्ध | भीम के द्वारा गजसेना, रथसेना और घुड़सवारों का संहार | उभयपक्ष की सेनाओं का घोर युद्ध | कौरव-पांडव सेनाओं का घोर युद्ध और कौरव सेना का व्यथित होना | अर्जुन द्वारा दस हज़ार संशप्तक योद्धाओं और उनकी सेना का संहार | कृपाचार्य द्वारा शिखण्डी की पराजय | कृपाचार्य द्वारा सुकेतु का वध | धृष्टद्युम्न के द्वारा कृतवर्मा की पराजय | अश्वत्थामा का घोर युद्ध और सात्यकि के सारथि का वध | युधिष्ठिर का अश्वत्थामा को छोड़कर दूसरी ओर चले जाना | नकुल-सहदेव के साथ दुर्योधन का युद्ध | धृष्टद्युम्न से दुर्योधन की पराजय | कर्ण द्वारा पांचाल सेना सहित योद्धाओं का संहार | भीम द्वारा कौरव योद्धाओं का सेना सहित विनाश | अर्जुन द्वारा संशप्तकों का वध | अश्वत्थामा का अर्जुन से घोर युद्ध करके पराजित होना | दुर्योधन का सैनिकों को प्रोत्साहन देना और अश्वत्थामा की प्रतिज्ञा | अर्जुन का श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर के पास चलने का आग्रह | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धभूमि का दृश्य दिखाते हुए रथ को आगे बढ़ाना | धृष्टद्युम्न और कर्ण का युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न पर आक्रमण | अर्जुन द्वारा धृष्टद्युम्न की रक्षा और अश्वत्थामा की पराजय | श्रीकृष्ण का अर्जुन से दुर्योधन के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन से कर्ण के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्साहित करना | श्रीकृष्ण का अर्जुन से भीम के दुष्कर पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा शिखण्डी की पराजय | धृष्टद्युम्न और दु:शासन तथा वृषसेन और नकुल का युद्ध | सहदेव द्वारा उलूक की तथा सात्यकि द्वारा शकुनि की पराजय | कृपाचार्य द्वारा युधामन्यु की एवं कृतवर्मा द्वारा उत्तमौजा की पराजय | भीम द्वारा दुर्योधन की पराजय तथा गजसेना का संहार | युधिष्ठिर पर कौरव सैनिकों का आक्रमण | कर्ण द्वारा नकुल-सहदेव सहित युधिष्ठिर की पराजय | युधिष्ठिर का अपनी छावनी में जाकर विश्राम करना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | पांडवों द्वारा कौरव सेना में भगदड़ | कर्ण द्वारा भार्गवास्त्र से पांचालों का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन का भीम को युद्ध का भार सौंपना | श्रीकृष्ण और अर्जुन का युधिष्ठिर के पास जाना | युधिष्ठिर का अर्जुन से भ्रमवश कर्ण के मारे जाने का वृत्तान्त पूछना | अर्जुन का युधिष्ठिर से कर्ण को न मार सकने का कारण बताना | अर्जुन द्वारा कर्णवध हेतु प्रतिज्ञा | युधिष्ठिर का अर्जुन के प्रति अपमानजनक क्रोधपूर्ण वचन | अर्जुन का युधिष्ठिर के वध हेतु उद्यत होना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को बलाकव्याध और कौशिक मुनि की कथा सुनाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को धर्म का तत्त्व बताकर समझाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञाभंग, भ्रातृवध तथा आत्मघात से बचाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को सान्त्वना देकर संतुष्ट करना | अर्जुन से श्रीकृष्ण का उपदेश | अर्जुन और युधिष्ठिर का मिलन | अर्जुन द्वारा कर्णवध की प्रतिज्ञा और युधिष्ठिर का आशीर्वाद | श्रीकृष्ण और अर्जुन की रणयात्रा | अर्जुन को मार्ग में शुभ शकुन संकेतों का दर्शन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रोत्साहन देना | श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन के बल की प्रशंसा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्तेजित करना | अर्जुन के वीरोचित उद्गार | कौरव-पांडव सेना में द्वन्द्वयुद्ध तथा सुषेण का वध | भीम का अपने सारथि विशोक से संवाद | अर्जुन और भीम द्वारा कौरव सेना का संहार | भीम द्वारा शकुनि की पराजय | धृतराष्ट्रपुत्रों का भागकर कर्ण का आश्रय लेना | कर्ण के द्वारा पांडव सेना का संहार और पलायन | अर्जुन द्वारा कौरव सेना का विनाश करके रक्त की नदी बहाना | अर्जुन का श्रीकृष्ण से रथ कर्ण के पास ले चलने के लिए कहना | श्रीकृष्ण और अर्जुन को आते देख शल्य और कर्ण की बातचीत | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | अर्जुन का कौरव सेना को नष्ट करके आगे बढ़ना | अर्जुन और भीम के द्वारा कौरव वीरों का संहार | कर्ण का पराक्रम | सात्यकि के द्वारा कर्णपुत्र प्रसेन का वध | कर्ण का घोर पराक्रम | दु:शासन और भीमसेन का युद्ध | भीम द्वारा दु:शासन का रक्तपान और उसका वध | युधामन्यु द्वारा चित्रसेन का वध तथा भीम का हर्षोद्गार | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों का वध | कर्ण का भय और शल्य का समझाना | नकुल और वृषसेन का युद्ध | कौरव वीरों द्वारा कुलिन्दराज के पुत्रों और हाथियों का संहार | अर्जुन द्वारा वृषसेन का वध | कर्ण से युद्ध के विषय में श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन का कर्ण के सामने उपस्थित होना | कर्ण और अर्जुन का द्वैरथ युद्ध में समागम | कर्ण-अर्जुन युद्ध की जय-पराजय के सम्बंध में प्राणियों का संशय | ब्रह्मा और शिव द्वारा अर्जुन की विजय घोषणा | कर्ण की शल्य से और अर्जुन की श्रीकृष्ण से वार्ता | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार | अश्वत्थामा का दुर्योधन से संधि के लिए प्रस्ताव | दुर्योधन द्वारा अश्वत्थामा के संधि प्रस्ताव को अस्वीकार करना | कर्ण और अर्जुन का भयंकर युद्ध | अर्जुन के बाणों से संतप्त होकर कौरव वीरों का पलायन | श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन की सर्पमुख बाण से रक्षा | कर्ण के रथ का पहिया पृथ्वी में फँसना | अर्जुन से बाण न चलाने के लिए कर्ण का अनुरोध | श्रीकृष्ण का कर्ण को चेतावनी देना | अर्जुन के द्वारा कर्ण का वध | कर्णवध पर कौरवों का शोक तथा भीम आदि पांडवों का हर्ष | कर्णवध से दु:खी दुर्योधन को शल्य द्वारा सांत्वना | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदल सैनिकों का वध | अर्जुन द्वारा रथसेना का विध्वंस | दुर्योधन द्वारा कौरव सेना को रोकने का विफल प्रयास | शल्य के द्वारा रणभूमि का दिग्दर्शन | श्रीकृष्ण और अर्जुन का शिविर की ओर गमन | कौरव सेना का शिबिर की ओर पलायन | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को कर्णवध का समाचार देना | कर्णवध से प्रसन्न युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुन की प्रशंसा | कर्णपर्व के श्रवण की महिमा

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः