कर्ण और भीमसेन का युद्ध

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 50वें अध्याय में कर्ण और भीमसेन के युद्ध का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

शकुनि आदि कौरव वीरों का भीम पर आक्रमण करना

संजय कहते हैं- महाराज! पाण्डवों को आपकी सेना पर आक्रमण करते देख दुर्योधन ने सब ओर से सब प्रकार के प्रयत्नों द्वारा उन योद्धाओं को रोकने तथा अपनी सेना को भी स्थिर करने का प्रयत्न किया। भरतश्रेष्ठ! नरेश्वर! आपके पुत्र के बहुत चीखने-चिल्लाने पर भी भागती हुई सेना पीछे न लौटी। तदनन्तर व्यूह के पक्ष और प्रपक्ष भाग में खड़े हुए सैनिक, सुबलपुत्र शकुनि तथा सशस्त्र कौरव वीर उस समय रणक्षेत्र में भीमसेन पर टूट पड़े। उधर कर्ण ने भी राजा दुर्योधन और उसके सैनिकों को भागते देख मद्रराज शल्य ने कहा-‘भीमसेन के रथ के समीप चलो’। कर्ण के ऐसा कहने पर मद्रराज शल्य ने हंस के समान श्वेेत वर्णवाले श्रेष्ठ घोड़ों को उधर ही हांक दिया, जहाँ भीमसेन खड़े थे।

भीमसेन का संवाद

महाराज! संग्राम में शोभा पाने वाले शल्य से संचालित हो वे घोड़े भीमसेन के रथ के समीप जाकर पाण्डव सेना में मिल गये। भरतश्रेष्ठ! कर्ण को आते देख क्रोध में भरे हुए भीमसेन ने उसके विनाश का विचार किया। उन्होंने वीर सात्यकि तथा द्रुपद कुमार धृष्टद्युम्न ने कहा ‘तुम लोग धर्मात्मा राजा युधिष्ठिर की रक्षा करो। वे अभी-अभी मेरे देखते-देखते किसी प्रकार महान प्राण संकट से मुक्त हुए हैं। ‘दुरात्मा राधापुत्र कर्ण ने दुर्योधन की प्रसन्नता के लिये मेरे सामने ही धर्मराज की समस्त युद्ध सामग्री को छिन्न-भिन्न कर डाला है। ‘द्रुपद कुमार! इससे मुझे बड़ा दु:ख हुआ है; अत: अब मैं उसका बदला लूंगा। आज रणभूमि में अत्यन्त घोर संग्राम करके या तो मैं ही कर्ण को मार डालूंगा या वही मेरा वध करेगा; यह मैं तुमसे सच्ची बात कहता हूँ। ‘इस समय राजा को धरोहर के रुप में मैं तुम्हेंत सौंप रहा हूँ। तुम सब लोग निश्चित होकर इनकी रक्षा के लिये पूर्ण प्रयत्न करना’। ऐसा कहकर महाबाहु भीमसेन अपने महान सिंहनाद से सम्पूर्ण दिशाओं को प्रतिध्वनित करते हुए सूत पुत्र कर्ण की ओर बढ़े।

शल्य और कर्ण का संवाद

युद्ध का अभिनन्दरन करने वाले भीमसेन को बड़ी उतावली के साथ आते देख मद्रदेश के स्वामी शक्तिशाली शल्य ने सूत पुत्र कर्ण से कहा। शल्य बोले- कर्ण! क्रोध में भरे हुए पाण्डुन न्ददन महाबाहु भीमसेन को देखो, जो दीर्घकाल से संचित किये हुए क्रोध को आज तुम्हारे ऊपर छोड़ने का दृढ़ निश्चय किये हुए हैं। कर्ण! अभिमन्यु तथा घटोत्कच राक्षस के मारे जाने पर भी पहले कभी मैंने इनका ऐसा रुप नहीं देखा था। ये इस समय कुपित हो समस्त त्रिलोकी को रोक देने में समर्थ हैं; क्योंकि प्रलयकाल के अग्नि के समान तेजस्वी रुप धारण कर रहे हैं।

संजय कहते हैं- नरेश्वर! मद्रराज शल्य राधापुत्र कर्ण से ऐसी बातें कह ही रहे थे कि क्रोध से प्रज्वयलित हुए भीमसेन उसके सामने आ पहुँचे। युद्ध का अभिनन्दन करने वाले भीमसेन को सामने आया देख हंसते हुए से राधापुत्र कर्ण ने शल्य से इस प्रकार कहा- ‘मद्रराज! प्रभो! आज तुमने भीमसेन के विषय में मेरे सामने जो बात कही है, वह सर्वथा सत्य है- इसमें संशय नहीं है। ‘ये भीमसेन शूरवीर, क्रोधी, अपने शरीर और प्राणों का मोह न करने वाले तथा अधिक बलशाली हैं।[1]विराट नगर में अज्ञातवास करते समय इन्होंने द्रौपदी का प्रिय करने की इच्छा‍ से छिपे-छिपे जाकर केवल बाहुबल से कीचक को उसके साथियों सहित मार डाला था। ‘वे ही आज क्रोध से आतुर हो कवच बांधकर युद्ध के मुहाने पर उपस्थित हैं; परंतु क्या ये दण्ड धारण किये यमराज के साथ भी युद्ध के लिये रणभूमि में उतर सकते हैं। ‘मेरे हृदय में दीर्घकाल से यह अभिलाषा बनी हुई है कि समरांगण में अर्जुन का वध करुं अथवा वे ही मुझे मार डालें। कदाचित भीमसेन के साथ समागम होने से मेरी वह इच्छा आज ही पूरी हो जाय। ‘यदि भीमसेन मारे गये अथवा रथहीन कर दिये गये तो अर्जुन अवश्य मुझ पर आक्रमण करेंगे, जो मेरे लिये अधिक अच्छा होगा। तुम जो यहाँ उचित समझते हो, वह शीघ्र निश्चय करके बताओ।[2]

अमित शक्तिशाली राधापुत्र कर्ण का यह वचन सुनकर राजा शल्य ने सूत पुत्र से उस अवसर के लिये उपयुक्त वचन कहा- ‘महाबाहो! तुम महाबली भीमसेन पर चढ़ाई करो। भीमसेन को परास्त कर देने पर निश्चय ही अर्जुन को अपने सामने पा जाओगे ‘कर्ण! तुम्हाारे हृदय में चिरकाल से जो अभीष्ट मनोरथ संचित है, वह निश्चय ही सफल होगा, यह मैं तुमसे सत्य कहता हूँ। उनके ऐसा कहने पर कर्ण ने शल्य से फिर कहा 'मद्रराज! मैं युद्ध में अर्जुन को मारु या अर्जुन ही मुझे मार डालें। इस उद्देश्य से युद्ध में मन लगाकर जहाँ भीमसेन हैं, उधर ही चलो'।

कर्ण और भीमसेन का युद्ध

संजय कहते हैं- प्रजानाथ! तदनन्तर शल्य रथ के द्वारा तुरंत ही वहाँ जा पहुँचे, जहाँ महाधनुर्धर भीमसेन आपकी सेना को खदेड़ रहे थे। राजेन्द्र! कर्ण और भीमसेन का संघर्ष उपस्थित होने पर फिर तूर्य और भेरियों की गम्भीर ध्वनि होने लगी। बलवान भीमसेन ने अत्यन्त कुपित होकर चमचमाते हुए तीखे नाराचों आपकी दुर्जय सेना को सम्पूर्ण दिशाओं में खदेड़ दिया। प्रजानाथ! महाराज! कर्ण और भीमसेन के उस युद्ध में बड़ी भयंकर, भीषण और मार-काट हुई। राजेन्द्र! पाण्डु‍ पुत्र भीमसेन ने दो ही घड़ी में कर्ण पर आक्रमण कर दिया। उन्हें अपनी ओर आते देख अत्यन्त क्रोध में भरे हुए धर्मात्मा वैकर्तन कर्ण ने एक नाराच द्वारा उनकी छाती में प्रहार किया। फिर अमेय आत्मबल से सम्पन्न उस वीर ने उन्हे अपने बाणों की वर्षा से ढक दिया। सूतपुत्र के द्वारा घायल होने पर उन्होंने भी उसे बाणों से आच्छादित कर दिया और झुकी हुई गांठ वाले नौ तीखे बाणों से कर्ण को बींध डाला। तब कर्ण ने कई बाण मारकर भीमसेन के धनुष के बीच से ही दो टुकड़े कर दिये। धनुष कट जाने पर उनकी छाती में समस्त आवरणों का भेदन करने वाले अत्यन्त तीखे नाराच से गहरी चोट पहुँचायी।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 50 श्लोक 1-21
  2. 2.0 2.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 50 श्लोक 22-44

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