कर्ण के रथ का पहिया पृथ्वी में फँसना

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 90वें अध्याय में कर्ण के रथ के पहिये का पृथ्वी में फँसने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

अर्जुन द्वारा कर्ण को विदीर्ण करना

संजय कहते हैं- राजन! किरीटधारी अर्जुन के द्वारा अश्वसेन सर्प के मारे जाने पर स्वयं भगवान पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण ने उस नीचे धंसते हुए रथ को पुनः अपनी दोनों भुजाओं से शीघ्र ही ऊपर उठा दिया। उस मुहुर्त में नरवीर कर्ण ने धनंजय की ओर तिरछी दृष्टि से देखते हुए मयूरपंख से युक्त, शिला पर तेज किये हुए, दस बाणों से उन्हें घायल कर दिया। तब अर्जुन ने अच्छी तरह छोड़े हुए बारह बराहकर्ण नामक पैने बाणों द्वारा कर्ण को घायल करके पुनः विषधर सर्प के तुल्य एक वेगशाली नाराच को कान तक खींचकर उसकी ओर छोड़ दिया। भली-भाँति छूटे हुए उस उत्तम नाराच ने कर्ण के विचित्र कवच को चीर-फाड़कर उसके प्राण निकालते हुए से रक्तपान किया, फिर वह धरती में समा गया। उस समय उसके पंख खून से लथपथ हो रहे थे। तब उस बाण के प्रहार से क्रोध में भरे हुए शीघ्रकारी कर्ण ने लाठी की चोट खाये हुए महान सर्प के समान तिलमिलाकर उसी प्रकार उत्तम बाणों का प्रहार आरम्भ किया, जैसे महाविषैला सर्प अपने उत्तम विष का वमन करता है। उसने बारह बाणों से श्रीकृष्ण को और निन्यानबे बाणों से अर्जुन को अच्छी तरह घायल किया। तत्पश्चात् एक भयंकर बाण से पाण्डुपुत्र अर्जुन को पुनः क्षत-विक्षत करके कर्ण सिंह के समान दहाड़ने और हँसने लगा। उसके उस हर्ष को पाण्डुपुत्र अर्जुन सहन न कर सके। वे उसके मर्मस्थलों को जानते थे और इन्द्र के समान पराक्रमी थे। अतः जैसे इन्द्र ने रणभूमि में बलासुर को बलपूर्वक आहत किया था, उसी प्रकार अर्जुन ने सौ से भी अधिक बाणों द्वारा कर्ण के मर्मस्थानों को विदीर्ण कर दिया। तदनन्तर अर्जुन ने यमदण्ड के समान भयंकर नब्बे बाण कर्ण पर छोडे़। उन पंखवाले बाणों से उसका सारा शरीर बिंध गया तथा वह वज्र से विदीर्ण किये हुए पर्वत के समान व्यथित हो उठा। उत्तम मणियों, हीरों और सुवर्ण से अलंकृत कर्ण के मस्तक का आभूषण मुकुट और उसके दोनों उत्तम कुण्डल भी अर्जुन के बाणों से छिन्न-भिन्न होकर पृथ्वी पर गिर पड़े।[1]

अर्जुन के बाणों से विदीर्ण कर्ण की शोभा

अच्छे-अच्छे शिल्पियों ने कर्ण के जिस उत्तम बहुमूल्य और तेजस्वी कवच को दीर्घकाल में बनाकर तैयार किया था, उसके उसी कवच के पाण्डुपुत्र अर्जुन ने अपने बाणों से क्षण भर में बहुत-से टुकडे़ कर डाले। कवच कट जाने पर कर्ण को कुपित हुए अर्जुन ने चार उत्तम तीखे बाणों से पुनः क्षत-विक्षत कर दिया। शत्रु के द्वारा अत्यन्त घायल किये जाने पर कर्ण वात-पित्त और कफ सम्बन्धी ज्वर (त्रिदोष या सन्निपात) से आतुर हुए मनुष्य की भाँति अधिक पीड़ा का अनुभव करने लगा। अर्जुन ने उतावले होकर क्रिया, प्रयत्न और बलपूर्वक छोडे़ गये तथा विशाल धनुर्मण्डल से छूटे हुए बहुसंख्यक पैने और उत्तम बाणों द्वारा कर्ण के मर्मस्थानों में गहरी चोट पहुँचाकर उसे विदीर्ण कर दिया। अर्जुन के भयंकर वेगशाली और तेजधार वाले नाना प्रकार के बाणों द्वारा गहरी चोट खाकर कर्ण अपने अंगों से रक्त की धारा बहाता हुआ उस पर्वत के समान सुशोभित हुआ, जो गेरू आदि धातुओं से रँगा होने के कारण अपने झरनों से लाल पानी बहाया करता है। तत्पश्चात् अर्जुन ने सोने के पंख वाले लोहनिर्मित, सुदृढ़ तथा यमदण्ड और अग्निदण्ड के तुल्य भयंकर बाणों द्वारा कर्ण की छाती को उसी प्रकार विदीर्ण कर डाला, जैसे कुमार कार्तिकेय ने क्रौच पर्वत को चीर डाला था। प्रभो! अत्यन्त आहत हो जाने के कारण सूतपुत्र कर्ण तरकस और इन्द्रधनुष के समान अपना धनुष छोड़कर रथ पर ही लड़खड़ाता हुआ मूर्च्छित हो गया। उस समय उसकी मुट्ठी ढीली हो गयी थी।[2]

कृष्ण का अर्जुन को कर्ण के वध के लिये उद्यत करना

राजन! अर्जुन सत्पुरुषों के व्रत में स्थित रहने वाले श्रेष्ठ मनुष्य हैं; अतः उन्होंने उस संकट के समय कर्ण को मारने की इच्छा नहीं की। तब इन्द्र के छोटे भाई भगवान श्रीकृष्ण ने बड़े वेग से कहा-पाण्डुनन्दन! तुम लापरवाही क्यों दिखाते हो? विद्वान पुरुष कभी दुर्बल-से-दुर्बल शत्रुओं को भी नष्ट करने के लिये किसी अवसर की प्रतीक्षा नही करते। विशेषतः संकट में पड़े हुए शत्रुओं को मारकर बुद्धिमान पुरुष धर्म और यश का भागी होता है। इसलिये सदा तुमसे शत्रुता रखने वाले इस अद्वितीय वीर कर्ण का सहसा कुचल डालने के लिये तुम शीघ्रता करो। सूतपुत्र कर्ण शक्तिशाली होकर आक्रमण करे, इसके पहले ही तुम इसे उसी प्रकार मार डालो, जैसे इन्द्र ने नमुचि का वध किया था।

अच्छा, ऐसा ही होगा यों कहकर श्रीकृष्ण का समादर करते हुए सम्पूर्ण कुरुकुल के श्रेष्ठ पुरुष अर्जुन उत्तम बाणों द्वारा शीघ्रतापूर्वक कर्ण को उसी प्रकार बींधने लगे, जैसे पूर्व-काल में शम्बर शत्रु इन्द्र ने राजा बलि पर प्रहार किया था। भरतनन्दन! किरीटधारी अर्जुन ने घोड़ों और रथसहित कर्ण के शरीर को वत्सदन्त नामक बाणों से भर दिया। फिर सारी शक्ति लगाकर सुवर्णमय पंख वाले बाणों से उन्होंने सम्पूर्ण दिशाओं को आच्छादित कर दिया। चौडे़ और मोटे वक्षःस्थल वाले अधिरथ पुत्र कर्ण का शरीर वत्सदन्त नामक बाणों से व्याप्त होकर खिले हुए अशोक, पालाश, सेमल और चन्दन वन से युक्त पर्वत के समान सुशोभित होने लगा। प्रजानाथ! कर्ण के शरीर में बहुत-से बाण धँस गये थे। उनके द्वारा समरांगण में उसकी वैसी ही शोभा हो रही थी, जैसे वृक्षों से व्याप्त शिखर और कन्दरा वाले गिरिराज के ऊपर लाल कनेर के फूल खिलने से उसकी शोभा होती है।[2]

विदीर्ण कर्ण का पुन: अर्जुन के साथ युद्ध

तदनन्तर कर्ण (सावधान होकर) शत्रुओं पर बहुत-से बाण समूहों की वर्षा करने लगा। उस समय जैसे अस्ताचल की ओर जाते हुए सूर्य मण्डल और उसकी किरणें लाल हो जाती हैं, उसी प्रकार खून से लाल हुआ वह शरसमूहरूपी किरणों से सुशोभित हो रहा था। कर्ण की भुजाओं से छूटकर बड़े-बड़े़ सर्पो के समान प्रकाशित होने वाले बाणों को अर्जुन के हाथों से छूटे हुए तीखे बाणों ने सम्पूर्ण दिशाओं में फैलकर नष्ट कर दिया। तदनन्तर कर्ण धैर्य धारण करके कुपित सर्पों के समान भयंकर बाण छोड़ने लगा। उसने क्रोध में भरे हुए भुजंगमों के सदृश दस बाणों से अर्जुन को और छः से श्रीकृष्ण को भी घायल कर दिया। तब परम बुद्धिमान् किरीटधारी अर्जुन ने उस महासमर में कर्ण पर भयानक शब्द करने वाले, सर्पविष और अग्नि के समान तेजस्वी लोहनिर्मित तथा महारौद्रास्त्र अभिमंत्रित विशाल बाण छोड़ने का विचार किया।[3]

रथ के पहिया का पृथ्वी में फँसने से कर्ण का भयभीत होना

नरेश्वर! उस समय काल का अदृश्य रहकर ब्राह्मण के क्रोध से कर्ण के वध की सूचना देता हुआ उसकी मृत्यु का समय उपस्थित होने पर इस प्रकार बोला- अब भूमि तुम्हारे पहिये को निगलना ही चाहती है। नरवीर! अब कर्ण के वध का समय आ पहुँचा था। महात्मा परशुराम ने कर्ण को जो भार्गवास्त्र प्रदान किया था, वह उस समय उसके मन से निकल गया- उसे उसकी याद न रह सकी। साथ ही, पृथ्वी उसके रथ के बायें पहिये को निगलने लगी। नरेन्द्र! श्रेष्ठ ब्राह्मण शाप से उस समय उसका रथ डगमगाने लगा और उसका पहिया पृथ्वी में धँस गया। यह देख सूतपुत्र कर्ण समरांगण में व्याकुल हो उठा। जैसे सुन्दर पुष्पों से युक्त विशाल चैत्यवृक्ष वेदीसहित पृथ्वी धँस जाय, वही दशा उस रथ की भी हुई। ब्राह्मण के शाप से जब रथ डगमग करने लगा, परशुराम जी से प्राप्त हुआ अस्त्र भूल गया और घोर सर्पमुख बाण अर्जुन के द्वारा काट डाला गया, तब उस अवस्था में उन संकटों को सहन न कर सकने के कारण कर्ण खिन्न हो उठा और दोनों हाथ हिला-हिलाकर धर्म की निंदा करने लगा। धर्मज्ञ पुरुषों ने सदा ही यह बात कही है कि धर्म परायण पुरुष की धर्म सदा रक्षा करता है। हम अपनी शक्ति और ज्ञान के अनुसार सदा धर्मपालन के लिये प्रयत्न करते रहते हैं, किंतु वह भी हमें मारता ही है, भक्तों की रक्षा नहीं करता; अतः मैं समझता हूँ, धर्म सदा किसी की रक्षा नहीं करता है। ऐसा कहता हुआ कर्ण अर्जुन के बाणों की मार से विचलित हो उठा, उसके घोडे़ और सारथि लड़खड़ाकर गिरने लगे और मर्म पर आघात होने से वह कार्य करने में शिथिल हो गया, तब बारंबार धर्म की निंदा करने लगा।

तदनन्तर उसने तीन भयानक बाणों द्वारा युद्धस्थल में श्रीकृष्ण के हाथ में चोट पहुँचायी और अर्जुन को भी सात बाणों से बींध डाला। तत्पश्चात् अर्जुन ने इन्द्र के वज्र तथा अग्नि के समान प्रचण्ड वेगशाली सत्रह घोर बाण कर्ण पर छोडे़। वे भयानक वेगशाली बाण कर्ण को घायल करके पृथ्वी पर गिर पड़े। इससे कर्ण काँप उठा। फिर भी यथा शक्ति युद्ध की चेष्टा दिखाता रहा। उसने बलपूर्वक धैर्य धारण करके ब्रह्मास्त्र प्रकट किया। यह देख अर्जुन ने भी ऐन्दास्त्र को अभिमंत्रित किया।[3]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 90 श्लोक 50-63
  2. 2.0 2.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 90 श्लोक 64-76
  3. 3.0 3.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 90 श्लोक 77-92

सम्बंधित लेख

महाभारत कर्ण पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जनमेजय का वैशम्पायन से कर्णवध वृत्तान्त कहने का अनुरोध | धृतराष्ट्र और संजय का वार्तालाप | दुर्योधन का सेना को आश्वासन तथा कर्णवध का संक्षिप्त वृत्तान्त | धृतराष्ट्र का शोक और समस्त स्त्रियों की व्याकुलता | संजय का कौरव पक्ष के मारे गये प्रमुख वीरों का परिचय देना | कौरवों द्वारा मारे गये प्रधान पांडव पक्ष के वीरों का परिचय | कौरव पक्ष के जीवित योद्धाओं का वर्णन और धृतराष्ट्र की मूर्छा | कर्ण के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप | धृतराष्ट्र का संजय से कर्णवध का विस्तारपूर्वक वृत्तान्त पूछना | कर्ण को सेनापति बनाने के लिए अश्वत्थामा का प्रस्ताव | कर्ण का सेनापति पद पर अभिषेक | कर्ण के सेनापतित्व में कौरवों द्वारा मकरव्यूह का निर्माण | पांडव सेना द्वारा अर्धचन्द्राकार व्यूह की रचना | कौरव और पांडव सेनाओं का घोर युद्ध | भीमसेन द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | सात्यकि द्वारा विन्द और अनुविन्द का वध | द्रौपदीपुत्र श्रुतकर्मा द्वारा चित्रसेन का वध | द्रौपदीपुत्र प्रतिविन्ध्य द्वारा चित्र का वध | अश्वत्थामा और भीमसेन का युद्ध तथा दोनों का मूर्छित होना | अर्जुन का संशप्तकों के साथ युद्ध | अर्जुन का अश्वत्थामा के साथ अद्भुत युद्ध | अर्जुन के द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | अर्जुन के द्वारा दण्डधार का वध | अर्जुन के द्वारा दण्ड का वध | अर्जुन के द्वारा संशप्तक सेना का संहार | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धस्थल का दृश्य दिखाते हुए उनकी प्रशंसा करना | पाण्ड्य नरेश का कौरव सेना के साथ युद्धारम्भ | अश्वत्थामा के द्वारा पाण्ड्य नरेश का वध | कौरव-पांडव दलों का भयंकर घमासान युद्ध | पांडव सेना पर भयानक गजसेना का आक्रमण | पांडवों द्वारा बंगराज तथा अंगराज का वध | कौरवों की गजसेना का विनाश और पलायन | सहदेव के द्वारा दु:शासन की पराजय | नकुल और कर्ण का घोर युद्ध | कर्ण के द्वारा नकुल की पराजय | कर्ण के द्वारा पांचाल सेना का संहार | युयुत्सु और उलूक का युद्ध तथा युयुत्सु का पलायन | शतानीक और श्रुतकर्मा का युद्ध | सुतसोम और शकुनि का घोर युद्ध | कृपाचार्य से धृष्टद्युम्न का भय | कृतवर्मा के द्वारा शिखण्डी की पराजय | अर्जुन द्वारा श्रुतंजय, सौश्रुति तथा चन्द्रदेव का वध | अर्जुन द्वारा सत्यसेन का वध तथा संशप्तक सेना का संहार | युधिष्ठिर और दुर्योधन का युद्ध | उभयपक्ष की सेनाओं का अमर्यादित भयंकर संग्राम | युधिष्ठिर के द्वारा दुर्योधन की पराजय | कर्ण और सात्यकि का युद्ध | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार और पांडवों की विजय | कौरवों की रात्रि में मन्त्रणा | धृतराष्ट्र के द्वारा दैव की प्रबलता का प्रतिपादन | संजय द्वारा धृतराष्ट्र पर दोषारोप | कर्ण और दुर्योधन की बातचीत | दुर्योधन की शल्य से कर्ण का सारथि बनने के लिए प्रार्थना | कर्ण का सारथि बनने के विषय में शल्य का घोर विरोध करना | शल्य द्वारा कर्ण का सारथि कर्म स्वीकार करना | दुर्योधन द्वारा शल्य से त्रिपुरों की उत्पत्ति का वर्णन करना | इंद्र आदि देवताओं का शिव की शरण में जाना | इंद्र आदि देवताओं द्वारा शिव की स्तुति करना | देवताओं की शिव से त्रिपुरों के वध हेतु प्रार्थना | दुर्योधन द्वारा शल्य को शिव के विचित्र रथ का विवरण सुनाना | देवताओं का ब्रह्मा को शिव का सारथि बनाना | शिव द्वारा त्रिपुरों का वध करना | परशुराम द्वारा कर्ण को दिव्यास्त्र प्राप्ति का वर्णन | शल्य और दुर्योधन का वार्तालाप | कर्ण का सारथि होने के लिए शल्य की स्वीकृति | कर्ण का युद्ध हेतु प्रस्थान और शल्य से उसकी बातचीत | कौरव सेना में अपशकुन | कर्ण की आत्मप्रशंसा | शल्य द्वारा कर्ण का उपहास और अर्जुन के बल-पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा श्रीकृष्ण-अर्जुन का पता देने वाले को पुरस्कार देने की घोषणा | शल्य का कर्ण के प्रति अत्यन्त आक्षेपपूर्ण वचन कहना | कर्ण का शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्रदेश के निवासियों की निन्दा | कर्ण द्वारा शल्य को मार डालने की धमकी देना | शल्य का कर्ण को हंस और कौए का उपाख्यान सुनाना | शल्य द्वारा कर्ण को श्रीकृष्ण और अर्जुन की शरण में जाने की सलाह | कर्ण का शल्य से परशुराम द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का अभिमानपूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण का शल्य से ब्राह्मण द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का आत्मप्रशंसापूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्र आदि बाहीक देशवासियों की निन्दा | कर्ण का मद्र आदि बाहीक निवासियों के दोष बताना | शल्य का कर्ण को उत्तर और दुर्योधन का दोनों को शान्त करना | कर्ण द्वारा कौरव सेना की व्यूह रचना | युधिष्ठिर के आदेश से अर्जुन का आक्रमण | शल्य द्वारा पांडव सेना के प्रमुख वीरों का वर्णन | शल्य द्वारा अर्जुन की प्रशंसा | कौरव-पांडव सेना का भयंकर युद्ध तथा अर्जुन और कर्ण का पराक्रम | कर्ण द्वारा कई योद्धाओं सहित पांडव सेना का संहार | भीम द्वारा कर्णपुत्र भानुसेन का वध | नकुल और सात्यकि के साथ वृषसेन का युद्ध | कर्ण का राजा युधिष्ठिर पर आक्रमण | कर्ण और युधिष्ठिर का संग्राम तथा कर्ण की मूर्छा | कर्ण द्वारा युधिष्ठिर की पराजय और तिरस्कार | पांडवों के हज़ारों योद्धाओं का वध | रक्त नदी का वर्णन और पांडव महारथियों द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | कर्ण और भीमसेन का युद्ध | कर्ण की मूर्छा और शल्य का उसे युद्धभूमि से हटा ले जाना | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के छ: पुत्रों का वध | भीम और कर्ण का घोर युद्ध | भीम के द्वारा गजसेना, रथसेना और घुड़सवारों का संहार | उभयपक्ष की सेनाओं का घोर युद्ध | कौरव-पांडव सेनाओं का घोर युद्ध और कौरव सेना का व्यथित होना | अर्जुन द्वारा दस हज़ार संशप्तक योद्धाओं और उनकी सेना का संहार | कृपाचार्य द्वारा शिखण्डी की पराजय | कृपाचार्य द्वारा सुकेतु का वध | धृष्टद्युम्न के द्वारा कृतवर्मा की पराजय | अश्वत्थामा का घोर युद्ध और सात्यकि के सारथि का वध | युधिष्ठिर का अश्वत्थामा को छोड़कर दूसरी ओर चले जाना | नकुल-सहदेव के साथ दुर्योधन का युद्ध | धृष्टद्युम्न से दुर्योधन की पराजय | कर्ण द्वारा पांचाल सेना सहित योद्धाओं का संहार | भीम द्वारा कौरव योद्धाओं का सेना सहित विनाश | अर्जुन द्वारा संशप्तकों का वध | अश्वत्थामा का अर्जुन से घोर युद्ध करके पराजित होना | दुर्योधन का सैनिकों को प्रोत्साहन देना और अश्वत्थामा की प्रतिज्ञा | अर्जुन का श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर के पास चलने का आग्रह | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धभूमि का दृश्य दिखाते हुए रथ को आगे बढ़ाना | धृष्टद्युम्न और कर्ण का युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न पर आक्रमण | अर्जुन द्वारा धृष्टद्युम्न की रक्षा और अश्वत्थामा की पराजय | श्रीकृष्ण का अर्जुन से दुर्योधन के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन से कर्ण के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्साहित करना | श्रीकृष्ण का अर्जुन से भीम के दुष्कर पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा शिखण्डी की पराजय | धृष्टद्युम्न और दु:शासन तथा वृषसेन और नकुल का युद्ध | सहदेव द्वारा उलूक की तथा सात्यकि द्वारा शकुनि की पराजय | कृपाचार्य द्वारा युधामन्यु की एवं कृतवर्मा द्वारा उत्तमौजा की पराजय | भीम द्वारा दुर्योधन की पराजय तथा गजसेना का संहार | युधिष्ठिर पर कौरव सैनिकों का आक्रमण | कर्ण द्वारा नकुल-सहदेव सहित युधिष्ठिर की पराजय | युधिष्ठिर का अपनी छावनी में जाकर विश्राम करना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | पांडवों द्वारा कौरव सेना में भगदड़ | कर्ण द्वारा भार्गवास्त्र से पांचालों का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन का भीम को युद्ध का भार सौंपना | श्रीकृष्ण और अर्जुन का युधिष्ठिर के पास जाना | युधिष्ठिर का अर्जुन से भ्रमवश कर्ण के मारे जाने का वृत्तान्त पूछना | अर्जुन का युधिष्ठिर से कर्ण को न मार सकने का कारण बताना | अर्जुन द्वारा कर्णवध हेतु प्रतिज्ञा | युधिष्ठिर का अर्जुन के प्रति अपमानजनक क्रोधपूर्ण वचन | अर्जुन का युधिष्ठिर के वध हेतु उद्यत होना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को बलाकव्याध और कौशिक मुनि की कथा सुनाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को धर्म का तत्त्व बताकर समझाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञाभंग, भ्रातृवध तथा आत्मघात से बचाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को सान्त्वना देकर संतुष्ट करना | अर्जुन से श्रीकृष्ण का उपदेश | अर्जुन और युधिष्ठिर का मिलन | अर्जुन द्वारा कर्णवध की प्रतिज्ञा और युधिष्ठिर का आशीर्वाद | श्रीकृष्ण और अर्जुन की रणयात्रा | अर्जुन को मार्ग में शुभ शकुन संकेतों का दर्शन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रोत्साहन देना | श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन के बल की प्रशंसा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्तेजित करना | अर्जुन के वीरोचित उद्गार | कौरव-पांडव सेना में द्वन्द्वयुद्ध तथा सुषेण का वध | भीम का अपने सारथि विशोक से संवाद | अर्जुन और भीम द्वारा कौरव सेना का संहार | भीम द्वारा शकुनि की पराजय | धृतराष्ट्रपुत्रों का भागकर कर्ण का आश्रय लेना | कर्ण के द्वारा पांडव सेना का संहार और पलायन | अर्जुन द्वारा कौरव सेना का विनाश करके रक्त की नदी बहाना | अर्जुन का श्रीकृष्ण से रथ कर्ण के पास ले चलने के लिए कहना | श्रीकृष्ण और अर्जुन को आते देख शल्य और कर्ण की बातचीत | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | अर्जुन का कौरव सेना को नष्ट करके आगे बढ़ना | अर्जुन और भीम के द्वारा कौरव वीरों का संहार | कर्ण का पराक्रम | सात्यकि के द्वारा कर्णपुत्र प्रसेन का वध | कर्ण का घोर पराक्रम | दु:शासन और भीमसेन का युद्ध | भीम द्वारा दु:शासन का रक्तपान और उसका वध | युधामन्यु द्वारा चित्रसेन का वध तथा भीम का हर्षोद्गार | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों का वध | कर्ण का भय और शल्य का समझाना | नकुल और वृषसेन का युद्ध | कौरव वीरों द्वारा कुलिन्दराज के पुत्रों और हाथियों का संहार | अर्जुन द्वारा वृषसेन का वध | कर्ण से युद्ध के विषय में श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन का कर्ण के सामने उपस्थित होना | कर्ण और अर्जुन का द्वैरथ युद्ध में समागम | कर्ण-अर्जुन युद्ध की जय-पराजय के सम्बंध में प्राणियों का संशय | ब्रह्मा और शिव द्वारा अर्जुन की विजय घोषणा | कर्ण की शल्य से और अर्जुन की श्रीकृष्ण से वार्ता | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार | अश्वत्थामा का दुर्योधन से संधि के लिए प्रस्ताव | दुर्योधन द्वारा अश्वत्थामा के संधि प्रस्ताव को अस्वीकार करना | कर्ण और अर्जुन का भयंकर युद्ध | अर्जुन के बाणों से संतप्त होकर कौरव वीरों का पलायन | श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन की सर्पमुख बाण से रक्षा | कर्ण के रथ का पहिया पृथ्वी में फँसना | अर्जुन से बाण न चलाने के लिए कर्ण का अनुरोध | श्रीकृष्ण का कर्ण को चेतावनी देना | अर्जुन के द्वारा कर्ण का वध | कर्णवध पर कौरवों का शोक तथा भीम आदि पांडवों का हर्ष | कर्णवध से दु:खी दुर्योधन को शल्य द्वारा सांत्वना | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदल सैनिकों का वध | अर्जुन द्वारा रथसेना का विध्वंस | दुर्योधन द्वारा कौरव सेना को रोकने का विफल प्रयास | शल्य के द्वारा रणभूमि का दिग्दर्शन | श्रीकृष्ण और अर्जुन का शिविर की ओर गमन | कौरव सेना का शिबिर की ओर पलायन | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को कर्णवध का समाचार देना | कर्णवध से प्रसन्न युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुन की प्रशंसा | कर्णपर्व के श्रवण की महिमा

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः