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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
1. आदि पर्व
अध्याय : 89-90
पुराणों के साथ तुलनात्मक अनुसंधान से इस वंशावली का रूप कुछ इस प्रकार ठहरता हैः मनु-इला-पुरुरवा-आयु-नहुष-ययाति-पुरु-जनमेजय प्रथम- प्रचिन्वन्त- प्रवीर- मनस्यु- अभयद-सुधन्वन-धुन्ध-बहुगव-संयाति- अहंयाति- रुद्राश्व- ऋचेयु- मतिनार- तंसु। पुरु से मतिनार तक के नामों के विषय में पुराण प्रायः सर्वसम्मत हैं। मतिनार अति प्रतापी राजा थे। उनके बाद तंसु के समय में इस वंश का सौभाग्य विलुप्त हो गया। लगभग इसी समय अयोध्या में सूर्यवंश के युवनाश्व और मान्धाता प्रतापी और विजिगीषु राजा हुए। संभवतः पौरवों का राज्य इक्ष्वाकुओं के वर्धमान चक्र में लीन हो गया। तंसु से दुःषन्त तक की राजावली अनिश्चित और लुप्त है। केवल इतना ज्ञात होता है कि इलिना नाम की एक तेजस्विनी स्त्री हुई। उसके पौत्र दुःषन्त थे। महाभारत में इलिना को तंसु का पुत्र ईलिन मान लिया गया है, जो पुराणों के अनुसार भ्रान्त है। दुःषन्त ने पौरवों की विचलित राज्य लक्ष्मी को पुनः प्रतिष्ठापित किया। दुःषन्त से हस्तिन (जिनका दूसरा नाम बृहत था) तक की राजावली महाभारत और पुराणों में बहुत कुछ मिलती है, जो इस प्रकार हैः दुःषन्त-भरत-(भारद्वाज)-वितथ-भुवमन्यु या भुवन्यु- बृहत्क्षेत्र- सुहोत्र- हस्तिन- अजमीढ़। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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