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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
उद्योग पर्व
अध्याय : 47-57
47. यानसन्धि पर्व
ऊपर कहा जा चुका है कि धृतराष्ट्र ने संजय को पाण्डवों के पास इस उद्देश्य से भेजा था कि युद्ध करने के विषय में उनके विचारों और चेष्टाओं की थाह लें।[1] इसके बाद के प्रजागर पर्व[2] और सनत्सुजात पर्व[3] ये दो लम्बे प्रकरण धृतराष्ट्र के समय बिताने के लिए रखे गए हैं। अब फिर कथासूत्र पहले के साथ जुड़ जाता है। संजय का लौटकर हाल कहना
नारायणो नरश्चैव सत्त्वमेकं द्विधा कृतम्।।[5] नर-नारायण की महिमा के विषय में यह दृष्टिकोण भागवतों की एकान्तिन शाखा का था, जिसका उल्लेख भागवत में भी आया है।[6] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अ. 20-32
- ↑ अ. 33-40
- ↑ 41-46
- ↑ अ. 47
- ↑ 48।20
- ↑ ज्ञानं तदेतदमलं दुरवापमाह नारायणो नरसखः किल नारदाय।
एकान्तिना भगवतस्तदकिन्चनाना पादारविन्दजसाऽप्लुतदेहिनां स्यात्।
(भागवत 7।6।27)
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