विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
उद्योग पर्व
अध्याय : 9-18
द्रुपद के पुरोहित ने यह सब तैयारी देखी। धृतराष्ट्र, भीष्म, विदुर ने उसकी आवभगत की। तब उसने सब सेनापतियों के समक्ष धृतराष्ट्र से निवेदन किया, “आप सब लोग सनातन धर्म को जानते हैं, फिर भी मैं बात आरम्भ करने के लिए कुछ कहूंगा। धृतराष्ट्र और पाण्डु एक ही पिता के पुत्र हैं। उनका पैतृक अधिकार है। धृतराष्ट्र को उनका पैतृक धन मिल गया तो पाण्डुपुत्रों को क्यों नहीं? आप जानते हैं, पाण्डवों ने प्राणान्त कष्ट सह कर भी प्रयत्न किया। उनकी आयु शेष थी, इसीलिए वे मरे नहीं। उन्होंने पुनः अपना राज्य बढ़ा लिया। वह भी कौरवों ने ले लिया। पाण्डवों ने तेरह वर्ष क्लेश से वन में काटे। उन बातों को भुलाकर वे शान्ति से आधा भाग चाहते हैं। यह सब जानकर मित्रपक्ष के लोग कृपया धृतराष्ट्र को समझायें। पाण्डव विग्रह नहीं चाहते। लोक के अविनाश से अपना भाग चाहते हैं। यथा धर्म आप प्रदान करें और इस समय चूकें नहीं और यदि दुर्योधन युद्ध ही चाहे तो भी पाण्डव तगड़े ही पड़ेंगे।” प्रज्ञाशील भीष्म ने समझ लिया कि यह कुशल दूत नहीं, बुद्धिहीन पण्डित है। उन्होंने कहा, “पाण्डव कुशल से हैं और सन्धि चाहते हैं, यह जानकर प्रसन्नता हुई। पर मैं समझता हूं, आपने ब्राह्मण होने के नाते बहुत तीखी बात कही।” भीष्म की बात बीच में ही काटकर कर्ण ने कहा, “कौन है जो यह सब गई बीती नहीं जानता? उसके बार-बार दोहराने से क्या लाभ? युधिष्ठिर जो शर्त करके वन में गये थे, उसके अनुसार मालूम होता है कि वे राज नहीं चाहते। विराट और पांचाल की सेना से धमकाना चाहते हैं। सो हे पंडित जी, चाहे धर्म से दुर्योधन सारी भूमि दे दे, भय से पैर भर भी न देगा। पाण्डव धर्म से राज्य चाहें तो प्रतिज्ञा के अनुसार तेरह वर्ष वन में रहें, तब निर्भय होकर दुर्योधन की शरण में आवें। मूर्खों की बुद्धि न करें।” भीष्म ने कर्ण के कथन को भी अच्छा नहीं समझा, “हे कर्ण, इस ब्राह्मण ने जैसा कहा है, यदि वैसा न किया गया तो हम सब युद्ध में धूल चाटेंगे।” धृतराष्ट्र ने कर्ण को कुछ डपटा और बात को ठंडा करने के लिए कहा, “भीष्म ने सबके हित की बात कही है। मैं भी सोचकर संजय को पाण्डवों के पास भेजूंगा। आप लौट जायं।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज