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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
खण्ड : 2
भूमिका
द्रोण पर्व में ही अध्याय 59 में युधिष्ठिर का आह्निक या नित्य की दिनचर्या सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत ही रोचक है और यह आवश्यक है कि संस्कृत के पाठ्य ग्रन्थों में इसका अधिक प्रचार हो। इस प्रसंग के भी कई पारिभाषिक शब्दों पर हमने भारतीय कला की सहायता से नया प्रकाश डाला है। राजा के महल में तीन कक्षाएं या चौक होते थे। राजा कब कहाँ बैठकर कौन-सा कर्म करता था, इस पर कुछ प्रकाश हमने डाला है, पर विशेष के लिए ‘हर्षचरित्रः एक सांस्कृतिक अध्ययन’ एवं ‘कादम्बरीः एक सांस्कृतिक अध्ययन’, इन दो ग्रन्थों को देखना आवश्यक है। द्रोण पर्व की युद्ध कथाओं की मरुभूमि को पार करके जब पाठक उसके अन्तिम छोर पर पहुँचता है, तो किसी बुद्धिमान लेखक ने वहाँ थके मन की शान्ति के लिए शतरुद्रिय स्तोत्र के रूप में एक सरसाती हुई जलधारा प्रवाहित की है। यह शतरुद्रिय स्तोत्र भगवान शिव के नामों का अमृत जल है। इसका स्वरूप विराट और भव्य है। इसके 69 श्लोंकों में पहले यजुर्वेद के शतरुद्रिय की शैली पर नमस्कारात्मक बीस श्लोक हैं, फिर भगवान शंकर के दिव्य कर्मों के वर्णनात्मक 35 श्लोक हैं। पुनः उनके बहुधा भावों के सूचक 3 श्लोक हैं और अन्त में शिव के भिन्न नामों की निरुक्तियों के 11 श्लोक हैं। इस प्रकार के शतरुद्रिय या सहस्रनाम स्तोत्रों की साहित्यिक रचना बहुत ही परिश्रम-साध्य साहित्यिक कार्य था। कोई प्रतिभाशाली लेखक ही दीर्घकालीन अध्ययन के बाद इस प्रकार के स्तोत्र की संघटना कर पाता था। इसमें मूल कल्पना यह थी कि ईश्वर-तत्त्व एक होते हुए भी गुण, कर्म, नाम और रूपों के कारण अनेक है और मानव के ज्ञान की परिधि में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो ईश्वर की विभूति, ऐश्वर्य या योग से बाहर हो। अतएव बृहत नाम-स्तोत्र रचने वाले लेखक भारी प्रयास पूर्वक वैदिक और लौकिक साहित्य का मन्थन करके पहले नामों का चुनाव करते थे और अन्त में उन्हें छन्दोबद्ध किया जाता था। कई नाम स्तोत्रों को मिलाकर देखने से ज्ञात होता है कि इन सूचियों में बुहत से नाम अलग और बहुत से एक-समान हैं। इसका हेतु स्पष्ट है। जब भगवान के एकत्व की ओर दृष्टि जाती है, तो देव भेद होने पर भी एक-से नाम ऊपर उतिरा आते हैं और जब बहुधा भाव पर दृष्टि रहती है, तो भिन्न-भिन्न नाम कहे जाते हैं। वैसे तो अन्य धर्मों में भी स्तोत्रों का महत्त्व है, किन्तु भारत के धार्मिक साहित्य में स्तोत्रों का बहुत ही विशिष्ट स्थान है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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