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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
खण्ड : 2
भूमिका
किन्तु महाभारत के इन पर्वों में भी ऐसे पर्याप्त स्थल मिले, जिनका सांस्कृतिक दृष्टि से और धार्मिक इतिहास की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। वे स्थल इस प्रकार हैं:
उद्योग पर्व के अन्तर्गत प्रजागर पर्व बहुत ही विलक्षण है। साधारणतः लोक में इसे विदुर नीति कहते हैं, किन्तु यह कोई सामान्य नीति नहीं। यह तो प्राचीन भारतीय प्रज्ञादर्शन का अत्यन्त महनीय ग्रन्थ है। इस प्रकार की सामग्री संस्कृत साहित्य, पाली, अर्धमागधी आदि में अन्यत्र कहीं नहीं है। सौभाग्य से यह प्रकरण महाभारत में ही सुरक्षित रह गया है। प्राचीन भारत के दार्शनिक मतवादों में, जिन्हें पाणिनि ने मति कहा है और बौद्ध लोगों ने दिट्ठि (सं. दुष्टि) कहा है, (दृष्टि का अभिप्राय एक-एक आचार्य के दार्शनिक दृष्टिकोण से था), उनका जब व्यवस्थित संग्रह हुआ तब वे ही दर्शन हुए। पाणिनि ने इन मतों का तीन भागों में वर्गीकरण किया हैः एक आस्तिक, जो वैदिक परम्परा के अनुयायी थे, दूसरे, नास्तिक, जो वैदिक परम्परा से बाहर प्रायः भौतिक जगत के तत्त्वों की व्याख्या करते थे और तीसरे, दैष्टिक या भाग्यवादी जो नियतिवादी कहे जाते थे। विदुर नीति में नियति वाद का भी उल्लेख आया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उद्योग पर्व अध्याय 33-40; पृ. 378-396
- ↑ उद्योग पर्व, अध्याय 42-45; पृ. 396-407
- ↑ भीष्म पर्व, अध्याय 1-12; पृ. 443-468
- ↑ भीष्म पर्व, अध्याय 23-40; पृ. 469-547
- ↑ द्रोण पर्व, अध्याय 22; पृ. 555-556
- ↑ द्रोण पर्व, अध्याय 58; पृ. 558-560
- ↑ द्रोण पर्व, अध्याय 173; पृ. 563
- ↑ कर्ण पर्व, अध्याय 27-29, पृ. 564-576
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