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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 295-299
40. यक्ष-युधिष्ठिर-प्रश्नोत्तरी
प्रश्न- एक शब्द में धर्म का निचोड़ क्या है? एक शब्द में यश क्या है? एक शब्द में स्वर्ग प्राप्त करने वाली वस्तु क्या है? एक शब्द में सुख क्या हैं? उत्तर- कुशलता धर्म का निचोड़ है। दान यश का मूल है। सत्य स्वर्ग का मूल है। शील सुख का मूल है।[1] प्रश्न- मनुष्य की आत्मा क्या है? दैवकृत मित्र कौन है? मनुष्य के उपजीवन का साधन क्या है? और मानव का सार-तत्त्व क्या है? उत्तर- पुत्र मनुष्य की आत्मा है। पत्नी दैवकृत मित्र है। मेघ मनुष्य की जीविका है और दान मानव जीवन का सार है। प्रश्न- सफलता के साधनों में उत्तम क्या है? धनों में उत्तम क्या है? लाभों में उत्तम क्या है? सुखों में उत्तम क्या है? उत्तर- कर्म का कौशल सफलता के साधनों में उत्तम है। धनों में श्रुत या विद्या उत्तम है। लाभों में आरोग्य श्रेष्ठ है। सुखों में सन्तोष उत्तम है। प्रश्न- लोक में सबसे बड़ा धर्म कौन है? सदा फल देने वाला धर्ममार्ग कौन है? किसको रोककर शोक नहीं करना पड़ता? किनकी सन्धि कभी पुरानी नहीं होती? उत्तर- दया लोक में परम धर्म है। यही धर्म-मार्ग का अक्षय फल है। मन को रोककर पीछे पछताना नहीं पड़ता। सज्जनों की मैत्री जीर्ण नहीं होती।[2] प्रश्न- किसे त्यागकर मनुष्य प्रिय बनता है? किसे न त्यागने से शोक करना पड़ता है? किसे त्यागकर अर्थ प्राप्ति होती है? किसे त्यागकर मनुष्य सुखी होता है? उत्तर- मान को त्यागकर प्रिय, क्रोध को त्यागकर पश्चातापरहित, काम को त्यागकार अर्थवान और लोभ को त्यागकर सुख होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ दाक्ष्य या कुशलता से तात्पर्य कर्म करने के कौशल से है। उसी से धर्म के सब मार्ग खुलते हैं।
- ↑ ‘त्रयी धर्मः सदाः फल यह कथन विशेष अभिप्राय रखता है। उसी समय लोक में जो धर्म-मार्ग प्रचलित थे उनके दो मुख्य भाग थे- एक वेद मार्ग और दूसरा श्रमण धर्म। वेद मार्ग गृहस्थमूलक होने से सदा फूलने-फलने वाला समझा जाता था। श्रमण धर्म वंश-वृद्धि का अन्त कर देने के कारण हेय था।
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