विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
1. आदि पर्व
अध्याय : 1
2. कथा-सार तथा पर्व-सूची
काश्मीर से प्राप्त शारदा लिपि में लिखी हुई महाभारत की प्रतियां पाठ की दृष्टि से सबसे अधिक प्रामाणिक हैं। उनके पाठ प्राचीन एवं मूल के अधिकतम निकट हैं और अन्य संस्करणों की अपेक्षा श्लोक-संख्या भी उनमें कम है। दक्षिण भारत के संस्करण में सबसे अधिक मिलावट है, जो सभा पर्व, विराट पर्व, अनुशासन पर्व, आश्वमेधिक पर्व और आश्रमवासिक पर्व में पाई जाती है। कुल मिलाकर उसमें 13,450 श्लोक पहले और दूसरे पर्व ग्रन्थ के स्वरूप निर्धारण की दृष्टि से अति महत्त्व रखते हैं। पहले पर्व में उग्रश्रवा सूत के पधारने की भूमिका देने के बाद पाण्डवों की संक्षिप्त कथा उसी ढंग पर दी है, जैसे मूल रामायण में राम की कथा। पाण्डवों की संक्षिप्त कथा
मृगयाशील पाण्डु स्वजनों के साथ अरण्य में निवास करते थे। वहीं कुन्ती और माद्री ने मन्त्रों की सहायता से धर्म, वायु, इंद्र और अश्विनों से पांच पुत्र उत्पन्न किये। कुछ दिन तक वे बालक तपस्वियों द्वारा आश्रम में सवंर्द्धित होते रहे। फिर ऋषि लोग सुन्दर जटाधारी ब्रह्मचारियों के वेश में रहने वाले उन बालकों को हस्तिनापुर में लाकर कौरवों को यह कहकर सौंप गए कि ये पाण्डव हैं, तुम्हारे पुत्र, भाई, शिष्य और मित्र हैं। उनसे मिलकर समस्त कौरव और पुरवासी बहुत हर्षित हुए। इस प्रकार अखिल वेद और विविध शास्त्रों का अध्ययन करते हुए पाण्डव वहाँ पूजित होकर रहने लगे। सब प्रजागण युधिष्ठिर के सत्य व्यवहार, भीमसेन की धृति, अर्जुन के विक्रम और नकुल सहदेव की विनय एवं कुन्ती की गुरु-शुश्रुषा से अत्यन्त सन्तुष्ट हुए। तब राजाओं के समूह में उपस्थित होकर अर्जुन ने पति का स्वयंवर करने वाली कृष्णा को सुदुष्कर लक्ष्य-भेद करके प्राप्त किया। उसके फलस्वरूप वे सब धनुर्धारियों में पूज्य समझे जाने लगे। अर्जुन ने सब राजाओं को और बड़े-बड़े गणराज्यों को जीतकर युधिष्ठिर के राजसूय-यज्ञ का मार्ग प्रशस्त किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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