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सहदेव के इस प्रकार ललकारने पर सभा में खलबली मच गई। सुनीथ ने लाल-लाल आंखें दिखाकर क्रोध से कहा, “मैं सेनापति हूं, सारे वृष्णि और पाण्डवों को अभी युद्ध में निपट लूंगा।” इस प्रकार सबको उभाड़कर शिशुपाल यज्ञ विध्वंस करने के लिए राजाओं से सलाह करने लगा। तब राजाओं को विचलित देखकर युधिष्ठिर ने भीष्म से कहा, “हे पितामह, राजाओं के इस समुद्र में क्रोध का ज्वार-भाटा उठ खड़ा हुआ है। अब मैं क्या करूं, जिससे यज्ञ में विघ्न न हो और प्रजाओं का हित हो?” यह सुनकर भीष्म ने कहा, “हे राजन, डरो मत। क्या कुत्ता कभी सिंह को पछाड़ सकता है? जो कल्याण का मार्ग था वह मैंने पहले ही चुन लिया।
वृष्णि-सिंह कृष्ण के सामने ये राजा भौंक रहे हैं। जब तक कृष्णरूपी शेर सोया है, वे नहीं समझते। यह अल्पबुद्धि शिशुपाल उन्हें यम के घर भेजना चाहता है।” भीष्म की यह बात सुनकर शिशुपाल ने भी रूखे और कड़वे वचन कहेः
“अरे बूढ़े कुलांगार, ऐसी घुड़कियों से तू राजाओं को डराना चाहता है। तुझे लज्जा नहीं आती? हां, तेरे जैसे नपुंसक के लिए यही ठीक है। हे भीष्म, तू जिन पाण्डवों का अगुआ है, तेरे पटेले से जिन्होंने पनसुइया बांधी हैं, वे अन्धे पाण्डव अन्धे के पीछे चल रहे हैं। अरे भीष्म, तू ज्ञानवृद्ध होकर इस ग्वाले की बड़ाई करता है। तेरी जिह्वा के टुकड़े-टुकड़े नहीं हो जाते! बचपन में एक छोटे शंकट को इसने पैर मारकर उलट दिया, इसमें क्या अद्भुत बात हो गई? बांबी-सा गोवर्धन सप्ताह भर हाथ पर रख लिया, मैं तो इसे अचम्भा नहीं मानता। हां, अन्न का पहाड़ वहाँ यह साफ कर गया, इसका हमें अचरज अवश्य है। जिस राजा का इसने अन्न खाया, उसी कंस को इसने मार डाला, यह भी इसके लिए अद्भुत बात नहीं। जिसका अन्न खाय, उस पर शस्त्र न उठाना चाहिए, धर्म का अनुशासन तो यही है। तू इस स्त्रीहंता की चाहे जितनी बड़ाई करे‚ तेरे कहने से वह सच्ची नहीं हो सकती। तू गवैया-सा चाहे जितना भी अलाप ले, तेरे गीत से उसकी प्रशंसा नहीं हो सकती। वह तो जैसा है, वैसा ही रहेगा। धर्म के जानकार होकर तूने कैसे दूसरे को चाहने वाली अम्बा का अपहरण किया?
तेरा ब्रह्मचर्य न जाने मोह से है या क्लीबत्व से। अरे निस्सन्तान बुड्ढे, तेरा धर्मानुशासन मिथ्या है। मैं उस जरासन्ध की प्रशंसा करता हूं, जिसने इस केशव को दास समझकर इससे युद्ध की इच्छा न की। जरासन्ध-वध के समय इसने जो किया, वह भी मुझे ज्ञात है। आश्चर्य है, ये पाण्डव नहीं समझते, कैसे उन्हें भी तूने धर्म के मार्ग से घसीट लिया है।”
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