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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
2. सभा पर्व
अध्याय : 23-29
पश्चिम दिशा की दिग्विजय के लिए नकुल ने महती सेना के साथ प्रस्थान किया। सर्वप्रथम आरम्भ में ही उसकी मुठभेड़ रोही तक के मत्तमयूर क्षत्रियों से हुई। इस देश के लोग कार्त्तिकेय की पूजा करते थे। वर्तमान रोहतक के पास ही खोकराकोट नामक स्थान से यौधेय गण के सिक्के ढालने के मिट्टी के अनेक सांचे प्राप्त हुए हैं, जिनमें बहुधान्यक का उल्लेख है। इसका वर्णन महाभारतकार ने भी किया है। उसके बाद रोहतक से आगे शैरीषक[1] को वश में किया। तदनन्तर पंजाब और राजस्थान के अनेक जनपद और क्षत्रिय जातियों को वश में करता हुआ वह पश्चिम की ओर बढ़ा। इनमें शिबि,[2] त्रिगर्त[3] अंवष्ठ, मालव[4] और पंचकर्पट के नाम उल्लेखनीय हैं। मध्यमिकापुरी में वाटधान नाम के ब्राह्मणों को वश में किया। मध्यमिका चित्तौड़ के पास प्रसिद्ध पुरी थी, जिसे अब नगरी कहते हैं। इसके अनन्तर नकुल बीकानेर रियासत के उत्तर-पश्चिम में गया, जहाँ सरस्वती नदी की प्राचीन धारा किसी समय बहती थी, किन्तु अब बालू में अदृश्य हो गई है। शूद्र और आभीर नामक क्षत्रियों के गण सरस्वती के किनारे बसे हुए थे और उनका प्रदेश जैसलमेर से आगे बढ़कर उत्तरी सिन्ध तक चला गया था। यूनानी भूगोल-लेखकों ने सक्खर-रोड़ी के पूर्व में उनका उल्लेख किया है। ये दोनों पड़ोसी गणराज्य थे, जिनमें आभीर शूद्रों से किसी समय अधिक बलवान और समृद्ध हो गए थे, जिससे उनके लिए ‘महाशूद्र’ संज्ञा का प्रचार हुआ। इसी प्रसंग में महाभारतकार ने सिन्धु नदी के किनारे बसने वाली उन महाबली कबाइली जातियों का उल्लेख किया है, जो राजनैतिक परिभाषा में ग्रामणेय कहलाती थीं।[5] प्राचीन भारत में ग्रामीण दो प्रकार के होते थेः एक ग्राम-ग्रामणी अर्थात गांव का मुखिया, जो सब जगह होता है, और दूसरे पुग-ग्रामणी। पुग लूटमार करके जीविका चलाने वाली[6] जातियों के संघ को कहते थे। इस प्रकार की जातियां सिन्धु नदी के किनारे-किनारे आज तक बसी हुई हैं। वे लोग अपने किसी नेता या पूर्व पुरुष के नाम से विख्यात होते हैं, जैसे युसुफजाई, ईसाखेल आदि। इन्हीं के लिए पाणिनी ने ‘स एषां ग्रामणी’ सूत्र में इनके नाम रखने की विधि का उल्लेख किया है। इस्लाम से पहले हिन्दूकाल में भी इन कबाइली या ग्रामणेय जातियों में नाम रखने की यही प्रथा थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वर्तमान सिरसा
- ↑ झंगमघियाना के दक्षिण शेरकोट
- ↑ कांगड़ा
- ↑ रावी-चिनाब के संगम के पास
- ↑ सिन्धु कूलाश्रिता ये च ग्रामणेया महाबलाः, सभा. 29।8
- ↑ उत्सेधजीवी
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