भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
खण्ड : 1
इस प्रकार इतिहास-पुराण की परम्परा या प्राचीन अनुश्रुतियों का अतिविशिष्ट संकलन और अध्ययन वैदिक संहिताओं का व्यास करने वाले एवं लोक-विधान के तत्त्वज्ञ महामुनि कृष्णद्वैपायन ने किया। उनके चन्दनोक्षित कृष्ण शरीर, उन्नत मेरुदण्ड, पृथु ललाट, चमकीले नेत्र और प्रतिभावान मन में लोक और वेद की समग्र सरस्वती स्फुरित हो उठी। उसी के साकार रूप में इस ब्राह्मी संहिता-नाना शास्त्रोपबृंहित, संस्कार-सम्पन्न, वैदिक और लौकिक सूक्ष्म अर्थों से समन्वित पवित्र और धर्म्य महाभारत संहिता का जन्म हुआ। इसमें पुराणसंश्रित कथाएं, धर्म-संश्रित कथाएं राजर्षियों के चरित जैसे मुख्य विषयों का ताना-बाना कुरु-पाण्डवों के ‘जय’ नामक इतिहास के चारों ओर बुन दिया गया है। ययाति और परशुराम के बड़े-बड़े उपाख्यान, जिन्हें व्याकरण-साहित्य में यायातं और अधिरामं कहा गया है, किसी समय लोक में स्वतन्त्र रूप से प्रचलित थे। वे महाभारत में संग्रहीत होते गए। राजर्षियों के चरित ही वे नाराशंसी स्तोम हैं, जिनका ऊपर अथर्ववेद में उल्लेख आया है और उन्हें ही पुराणों में वंशानुचरित कहा गया। इनका संग्रह भी इतिहास-पुराण का आवश्यक अंग बन गया था। इसी प्रकार गोत्र संस्थापक तपस्वी ऋषियों के विद्या और ज्ञान के क्षेत्र में महान चरित थे[1], जो इस संहिता में सम्मिलित किये गए।
ऊपर कहा गया है कि महाभारत में धर्म-सम्बन्धी सामग्री का भी सन्निवेश हुआ है।[4] यह उल्लेख महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार महाभारत में नीति और धर्म की अपरिमित सामग्री आकर मिल गई। किन आचार्यों के प्रभाव से यह कार्य होगा? इस प्रकार के रोचक प्रश्नों का मार्मिक विवेचन भारत दीपक श्री विष्णु सीताराम सुकथनकर ने अपने ‘भृगुवंश और भारत’ नामक विस्तृत लेख में किया था। संक्षेप में उनकी स्थापना इस प्रकार थीः- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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