विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
2. सभा पर्व
अध्याय : 5
“तुम्हारे राज्य में दुर्गों को धन, धान्य, शस्त्र, जलाशय, यन्त्र, शिल्पी और धनुर्धरों से सुसज्जित तो कर दिया गया है? मेधावी, शूर और विचक्षण एक ही अमात्य जिस राजा के पास होता है उसे लक्ष्मी प्राप्त होती है। अपने राज्य में और दूसरे राष्ट्रों के भी सब महत्त्वपूर्ण पदाधिकारियों की जानकारी अपने गुप्तचरों से प्राप्त करते हो या नहीं? शत्रुओं द्वारा अविदित रूप से उनके कार्यों पर तुम निगाह रखते हो या नहीं? विनय सम्पन्न, कुलीन, बहुश्रुत और शास्त्रों की चर्चा करने वाले अपने पुरोहित का सत्कार तुम करते हो या नहीं? अपने प्रधान अधिकारियों को महत्त्वपूर्ण कार्यों में, बीच के अधिकारियों को मध्यम कार्यों में और निम्न वर्ग के अधिकारियों को उनके अनुरूप छोटे कर्मों में ही नियुक्त करते हो या नहीं? संग्राम में निपुण बलाधिकृत या सैनिक मुख्याधिकारियों के विशेष पराक्रम दिखाने पर तुम उन्हें सत्कारपूर्वक सम्मानित करते हो या नहीं? तुम अपनी सेना को यथोचित भोजन और वेतन ठीक समय पर देते हो या नहीं? कहीं इसमें ढिलाई तो नहीं करते? जिन्हें भोजन और वेतन पर नियुक्त किया है, यदि उनके काल का अतिक्रमण हो जाता है तो अपनी दुर्गति के कारण वे स्वामी पर क्रोध करने लगते हैं। इसे भारी अनर्थ समझना चाहिए। “कहीं ऐसा तो नहीं करते कि युद्ध-संबंधी मामलों में तुम मनमाने ढंग से स्वयं आदेश देने लगते हो, क्योंकि अपने मन से चाहे जैसा करने से शासन-पद्धति का अतिक्रमण हो जाता है। जो राजपुरुष अपनी शक्ति और श्रम से कोई शोभन कर्म सिद्ध करता है, उसे तुम अधिक सम्मान या वेतन में वृद्धि देते हो या नहीं? जो विद्या-विशेषज्ञ या ज्ञान-विशारद लोग हैं, उन्हें उनके गुण और योग्यता के अनुसार दान से कृतार्थ करते हो या नहीं? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज