विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
1. आदि पर्व
अध्याय : 192-194
10. सुभद्रा-परिणय
यह सुनकर कर्ण ने कहा, “जिन्हें सदा धन और मान से युक्त किया और सब कामों में अपना अगुआ बनाया, वे भीष्म और द्रोण भी तुम्हारे हित का मंत्र नहीं देते। इससे अधिक अचरज की क्या बात है? जो छिपे-छिपे दुष्ट मन का है, पर ऊपर से हित की बात करता है, ऐसे अमात्य का मंत्र किस काम का?” कर्ण का व्यंग्य सुनकर द्रोण बिगड़कर कहने लगे, “रे कर्ण, हम तेरे दुष्ट भाव को समझते हैं। तेरे मन में पाण्डवों के प्रति मैल है और तू दोष हमारे मत्थे मढ़ता है।” यह सुनकर विदुर ने कहा, “हे राजन, भीष्म और द्रोण ने जो हितकर वचन कहा है, उसे क्यों नहीं ग्रहण करते? तुम्हारे लिए दुर्योधनादिक पुत्र और पाण्डव एक-से होने चाहिए। पुरोचन के कारण जिस अयश में तुम सन गए हो, अब पाण्डवों के प्रति अनुग्रह करके उसे धो डालो।’’ उनकी बात सुनकर धृतराष्ट्र ने कहा‚ ‘‘वे विदुर‚ भीष्म‚ द्रोण और तुम हितकारी और सत्य बात कहते हो। तुम जाओ और माता कुन्ती एवं देवरूपिणी कृष्णा के साथ पाण्डवों को यहाँ लिवा लाओ।’’ यह सुनकर विदुर द्रुपद के यहाँ गए और कुशल-प्रश्न के अनन्तर बोले, “धृतराष्ट्र, भीष्म एवं सब कौरव आपके साथ सम्बन्ध हो जाने से अपने को धन्य समझते हैं। ऐसा जानकर आप कृपया पाण्डवों को मेरे साथ भेज दें। वे भी दीर्घकाल के बाद नगर देखने को उत्सुक होंगे।” विदुर की बात सुनकर द्रुपद ने कहा, “हे महाप्राज्ञ, तुम्हारा कहना ठीक है। मुझे भी इस सम्बन्ध से हर्ष है। महात्मा पाण्डवों का घर लौटना भी ठीक है। किन्तु मेरा कहना उचित नहीं, तुम स्वयं कहो।” तब सब लोगों ने परामर्श किया और पाण्डव विदुर और कृष्ण के साथ, जो वहाँ इस समय उपस्थित थे, हस्तिनापुर गए। सारा नगर उनके स्वागत में उमड़ पड़ा। वहाँ उन्होंने धृतराष्ट्र और भीष्म का पादाभिवन्दन किया और कुछ समय तक धृतराष्ट्र के बताये हुए स्थान में निवास करते रहे। फिर धृतराष्ट्र ने उन्हें बुलाकर कहा, “हे युधिष्ठिर, तुम्हारे साथ कौरवों का कोई झगड़ा न हो, इसलिए मेरी राय है कि राज्य का आधा भाग लेकर तुम खाण्डवप्रस्थ में बसो।” तब पाण्डव खाण्डवप्रस्थ के वन में गए। वहाँ उन्होंने व्यास और कृष्ण के परामर्श से इन्द्रप्रस्थ नामक एक नया नगर बसाया। पाण्डवों के वहाँ सुखपूर्वक बस जाने पर कृष्ण बलराम के साथ द्वारावती नगरी को लौट गए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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