ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 10
वसुन्धरा ने कहा- वत्स! तुम मेरी तरह क्षमाशील, शरणदाता, सम्पूर्ण रत्नों से सम्पन्न, विघ्नरहित, विघ्नविनाशक और शुभ के आश्रयस्थान होओ। पार्वती ने कहा- बेटा! तुम अपने पिता के समान महान योगी, सिद्ध, सिद्धियों के प्रदाता, शुभकारक, मृत्युंजय, ऐश्वर्यशाली और अत्यन्त निपुण होओ। तदनन्तर समागत सभी ऋषियों, मुनियों और सिद्धों ने आशीर्वाद दिया और ब्राह्मणों तथा वन्दियों ने सब प्रकार की मंगल-कामना की। वत्स नारद! इस प्रकार मैंने गणेश का जन्मवृत्तान्त, जो सम्पूर्ण मंगलों का मंगल करने वाला तथा समस्त विघ्नों का विनाशक है, पूर्णतया तुमसे वर्णन कर दिया। जो मनुष्य अत्यन्त समाहित होकर इस सुमंगलाध्याय को सुनता है, वह सम्पूर्ण मंगलों से युक्त होकर मंगलों का आवासस्थान हो जाता है। इसके श्रवण से पुत्रहीन हो पुत्र, निर्धन को धन, कृपण को निरन्तर धन प्रदान करने की शक्ति, भार्यार्थी को भार्या, प्रजाकामी को प्रजा और रोगी को आरोग्य प्राप्त होता है। दुर्भगा स्त्री को सौभाग्य, भ्रष्ट हुआ पुत्र, नष्ट हुआ धन और प्रवासी पति मिल जाता है तथा शोकग्रस्त को सदा आनन्द की प्राप्ति हो जाती है, इसमें संशय नहीं है। मुने! गणेशाख्यान के श्रवण से मनुष्य को जिस पुण्य की प्राप्ति होती है, वह फल निश्चय ही इस अध्याय के श्रवण से मिल जाता है। यह मंगलाध्याय जिसके घर में विद्यमान रहता है, वह सदा मंगलयुक्त रहता है, इसमें तनिक भी संशय नहीं है। यात्राकाल में अथवा पुण्यपर्व पर जो मनुष्य एकाग्रचित्त से इसका श्रवण करता है, वह श्रीगणेश की कृपा से अपने सभी मनोरथों को पा जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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