जो गणेश की माता ‘भगवती दुर्गा’ हैं, उन्हें ‘शिवस्वरूपा’ कहा जाता है। ये भगवान शंकर की प्रेयसी भार्या हैं। नारायणी, विष्णुमाया और पूर्ण ब्रह्मस्वरूपिणी नाम से ये प्रसिद्ध हैं। ब्रह्मादि देवता, मुनिगण तथा मनु प्रभृति– सभी इनकी पूजा करते हैं। ये सबकी अधिष्ठात्री देवी हैं, सनातन ब्रह्मस्वरूपा हैं। यश, मंगल, धर्म, श्री, सुख, मोक्ष और हर्ष प्रदान करना इनका स्वाभाविक गुण है। दुःख, शोक और उद्वेग को ये दूर कर देती हैं। शरण में आये हुए दीनों एवं पीड़ितों की रक्षा में सदा संलग्न रहती हैं। ये तेजःस्वरूपा हैं। इनका विग्रह परम तेजस्वी है। इन्हें तेज की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है।
ये सर्वशक्तिस्वरूपा हैं और भगवान शंकर को निरन्तर शक्तिशाली बनाये रखती हैं। सिद्धेश्वरी, सिद्धिरूपा, सिद्धिदा, सिद्धिदाताओं की ईश्वरी, बुद्धि, निद्रा, क्षुधा, पिपासा, छाया, तन्द्रा, दया, स्मृति, जाति, क्षान्ति, भ्रान्ति, शान्ति, कान्ति, चेतना, तुष्टि, पुष्टि, लक्ष्मी, वृत्ति और माता– ये सब इनके नाम हैं। श्रीकृष्ण परब्रह्म परमात्मा हैं। उनके समीप सर्वशक्तिरूप से ये विराजती हैं। श्रुति में इनके सुविख्यात गुण का अत्यन्त संक्षेप में वर्णन किया गया है, जैसा कि आगमों में उपलब्ध होता है। ये अनन्ता हैं। अतएव इनमें गुण भी अनन्त हैं। अब इनके दूसरे रूप का वर्णन करता हूँ, सुनो।
जो परम शुद्ध सत्त्वस्वरूपा हैं, उन्हें ‘भगवती लक्ष्मी’ कहा जाता है। परम प्रभु श्रीहरि की वे शक्ति कहलाती हैं। अखिल जगत की सारी सम्पत्तियाँ उनके स्वरूप हैं। उन्हें सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। वे परम सुन्दरी, अनुपम संयमरूपा, शान्तस्वरूपा, श्रेष्ठ स्वभाव से सम्पन्न तथा समस्त मंगलों की प्रतिमा हैं। लोभ, मोह, काम, क्रोध, मद और अहंकार आदि दुर्गुणों से वे सहज ही रहित हैं।
भक्तों पर अनुग्रह करना तथा अपने स्वामी श्रीहरि से प्रेम करना उनका स्वभाव है। वे सबकी आदिकारणरूपा और पतिव्रता हैं। श्रीहरि प्राण के समान जानकर उनसे अत्यन्त प्रेम करते हैं। वे सदा प्रिय वचन ही बोलती हैं; कभी अप्रिय बात नहीं कहतीं; धान्य आदि सभी शस्य तथा सबके जीवन-रक्षा के उपाय उनके रूप हैं। प्राणियों का जीवन स्थिर रहे– एतदर्थ उन्होंने यह रूप धारण कर रखा है। वे परम साध्वी देवी ‘महालक्ष्मी’ नाम से विख्यात होकर वैकुण्ठ में अपने स्वामी की सेवा में सदा संलग्न रहती हैं।