महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
72.नवां दिन
भीष्म की रक्षा के लिये दुर्योधन ने दु:शासन को भेज दिया। भीष्म ने अद्भुत पराक्रम से लड़कर पांडवों के सारे प्रयत्न बेकार कर दिये। पांडवों की सेना की पितामह ने उस दिन बड़ी दुर्गत की। वन में भूली-भटकी फिरनेवाली गायों की भाँति पांडव-सैनिकों की भी बड़ी दीन और दयनीय अवस्था हो गई। यह देखकर श्रीकृष्ण ने रथ रोक लिया और अर्जुन से बोले– "पार्थ! जिस अवसर की प्रतीक्षा में तुम भाइयों ने तेरह वर्ष बिताये वह अवसर अब हाथ आया है। क्षत्रिय-धर्म को स्मरण कर लो और भीष्म को मारने में आगा-पीछा न करो।" यह सुनकर अर्जुन ने सिर झुका लिया और बोला– "पूजने योग्य आचार्यों और पितामह की हत्या करने से वनवास ही श्रेयस्कर था। फिर भी आपका कहा मानता हूँ। रथ चलाइए।" अर्जुन ने अनमने होकर यह कहा और चिंतित भाव से लड़ने लगा; किन्तु भीष्म तो ऐसे प्रकाशमान हो रहे थे जैसे दोपहरी का सूर्य! अर्जुन का रथ जब भीष्म की ओर बढ़ा तो पांडव-सेना में उत्साह की लहर दौड़ गई। पुन: साहस आ गया। पर भीष्म ने अर्जुन के रथ पर बाणों की ऐसी वर्षा की कि जिससे सारा रथ ही बाणों के अंधकार में मानो छिप गया। न तो अर्जुन दिखाई देता था, न श्रीकृष्ण। न रथ दिखाई देता था, न घोड़े। फिर भी श्रीकृष्ण जरा भी न घबराए। अविचलित भाव से सतर्कता के साथ रथ चलाते रहे। अर्जुन के बाणों ने कई बार भीष्म के धनुष को काट-काटकर गिरा दिया। हर बार भीष्म अर्जुन के कौशल की सराहना करते और दूसरा धनुष उठा लेते और फिर अर्जुन और श्रीकृष्ण पर बाण चलाते, यहाँ तक कि अर्जुन और श्रीकृष्ण दोनों को बड़ी पीड़ा हुई। इस पर कृष्ण झुंझलाकर अर्जुन से यह कहते हुए कि "तुम ठीक तरह से नहीं लड़ते हो," कुपित होकर रथ से उतर पड़े और हाथ में चक्र लेकर भीष्म पर झपटे। क्रोध में भरे श्रीकृष्ण को अपनी ओर आते हुए देख भीष्म पितामह उनका स्वागत करते हुए बोले– "भगवान कृष्ण! स्वागत हो! तुम्हारे हाथों मारा जाकर मैं अवश्य ही स्वर्ग प्राप्त करूंगा।" इतने में अर्जुन दौड़कर श्रीकृष्ण के पास पहुँचा और दोनों हाथों से उन्हें कसकर पकड़ लिया। बोला- "केशव! आपने शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की है। अपना वचन आप न तोड़िये। पितामह को बाणों से मार गिराने का काम मेरा है। मैं ही इसे पूरा करूंगा। आप चलिये। मेरा रथ चलाते रहिये। मेरे लिये यही बहुत है।" यह सुन वासुदेव फिर रथ पर चढ़ गये और उसे चलाने लगे। भीष्म ने फिर से युद्ध शुरू किया। पांडवों की सेना की बड़ी बुरी गत बनी। सैनिक बहुत पीड़ित हो रहे थे। थोड़ी देर में सूर्यास्त हुआ और उस दिन युद्ध बंद कर दिया गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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