महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
70.सातवां दिन
उस दिन युधिष्ठिर अपने स्वाभाविक शांत-भाव से रहित-से हो गये और क्रोध के कारण प्रज्वलित हो उठे। अंत में श्रुतायु अपने रथ, घोड़े और सारथी से हाथ धो बैठा और घायल होकर मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ। इस पर दुर्योधन की सेना में खलबली मच गयी। सैनिक घबराहट में पड़ गये। इस घटना के बाद तो दुर्योधन की सेना का साहस और भी टूट गया और सैनिकों में भय छा गया। राजा चेकितान कृपाचार्य के साथ लड़ने लगा। कृपाचार्य ने चेकितान के साथी को मार डाला और रथ को भी चकनाचूर कर दिया। इस पर चेकितान खड़ग लेकर जमीन पर कूद पड़ा और कृपाचार्य के घोड़ों और सारथी को मार डाला। तब आचार्य कृप भी रथ से उतरे और पृथ्वी पर ही खड़े हो चेकितान पर कई बाण चलाये। उन बाणों के प्रहार से चेकितान बहुत ही परेशान हो गया और तब क्रोध में आकर कृपाचार्य पर अपनी गदा वेग से घुमाकर फेंकी; परन्तु कृपाचार्य ने उसे भी बाणों से काट दिया। इस पर चेकितान तलवार घुमाता हुआ कृपाचार्य पर झपटा। कृपाचार्य ने तुरन्त धनुष फेंक दिया और खड़ग लेकर तैयार हो गये। दोनों में घात-प्रतिघात होता रहा। अंत में दोनों ही घायल हो कर गिर पड़े। भीमसेन चेकितान को और शकुनि कृपाचार्य को अपने-अपने रथ पर बिठाकर शिविर में ले गये। धृष्टकेतु ने छियानवे बाण भूरिश्रवा की छाती पर तान कर मारे। सभी बाण निशाने पर जा लगे। उस समय भूरिश्रवा उन बाणों के साथ ऐसे देदीप्यमान हुए जैसे सूर्य अपनी किरणों से सुशोभित होते हैं। ऐसे में भी भूरिश्रवा धृष्टकेतु के पीछे बुरी तरह पड़ गये और उसे युद्धभूमि से खदेड़ कर ही छोड़ा। दुर्योधन के तीन भाई अभिमन्यु के साथ लड़कर बुरी तरह हारे। अभिमन्यु चाहता तो उनके प्राण ले लेता; किन्तु उसे भीमसेन की प्रतिज्ञा याद थी। इस कारण उनको जीवित छोड़कर दूसरी ओर को हट गया। इतने में पितामह भीष्म अभिमन्यु से भिड़ पड़े। अर्जुन ने जब यह देखा तो श्रीकृष्ण से बोला– "सखे! मैं भीष्म पर हमला करना चाहता हूँ। आप उधर को ही रथ चलाइए।" अर्जुन के वहाँ पहुँचते ही उसके और भाई भी वहाँ पहुँचे। अकेले भीष्म पांचों पांडवों का सामना करने लगे। पर यह युद्ध अधिक देर नहीं चला। सूरज अस्त होने लगा और युद्ध बंद हुआ। दोनों पक्ष के सैनिक और वीर थके-मांदे, घावों की पीड़ा से तड़पते व कराहते हुए अपने शिविरों में जा पहुँचे। दोनों तरफ के वीरों ने अपने-अपने शरीर पर लगे बाण निकाले और घावों को वैद्यक-रीति के अनुसार पानी से धोकर औषधि लगाई और विश्राम करने लगे। कुछ देर मन-बहलाव के लिये संगीत और वाद्य का आनन्द लेने लगे। दोनों ओर के सैनिक उस आनन्द में लीन हो गये कि युद्ध की चर्चा भूल गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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