महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
66.तीसरा दिन
अर्जुन ने यह सब देखा और श्रीकृष्ण के कथन पर विचार कर निश्चयपूर्वक बोला –"माधव, आप रथ को भीष्म की ओर कर लीजिए।" अर्जुन का रथ तेजी से भीष्म की ओर चला। भीष्म ने अर्जुन को अपनी ओर आते देख बाणों की बौछार से उसे रोकने की चेष्टा की। अर्जुन ने गांडीव पर चढाकर तीन बाण ऐसे खींच कर मारे कि भीष्म का धनुष टूट गया। भीष्म ने दूसरा धनुष हाथ में लिया और प्रत्यंचा चढ़ाना ही चाहते थे कि अर्जुन के बाण ने उसके भी टुकड़े कर दिये। अर्जुन की यह निपुणता देखकर पितामह भीष्म मुग्ध हो गये। पर भीष्म ने भी बड़ी निपुणता के साथ बहुत-से अचूक बाण अर्जुन को लक्ष्य करके मारे। अर्जुन ने उन बाणों को काट तो दिया; परंतु श्रीकृष्ण को इससे तसल्ली न हुई। उन्होंने मन-ही-मन सोचा कि भीष्म के प्रति अर्जुन के मन में जो श्रद्धा है, उसके कारण अर्जुन ठीक से युद्ध नहीं कर रहा है। उधर भीष्म का आक्रमण तो हर घड़ी बल पकड़ता जा रहा था। पांडव -सेना घबराई हुई भाग रही थी। ऐसी विषम परिस्थिति में जरा भी हिचकिचाने में बना-बनाया काम बिगड़ने का भय था। यह सोचकर श्रीकृष्ण ने भीष्म के बाणों से बचने के लिये अर्जुन के रथ को घुमा-फिराकर बड़ी निपुणता से चलाया; परंतु फिर भी भीष्म के चलाये हुए कई बाण अर्जुन एवं श्रीकृष्ण के शरीर पर लग ही गये। इस पर श्रीकृष्ण को असीम क्रोध हो गया। उनसे न रहा गया। उन्होंने खुद भीष्म को मारने की ठानी। घोड़ों की रास छोड़ रथ पर से कूद पड़े और टूटे रथ का चक्र ही हाथ में लेकर भीष्म की ओर दौड़े। किंतु भीष्म इससे जरा भी विचलित नहीं हुए। उनके मुख पर प्रसन्नता झलक रही थी। आल्हाद के साथ बोल उठे– "आओ माधव, आओ! आओ! नमस्कार है तुम्हें। मेरे अहोभाग्य कि मेरी खातिर तुम्हें रथ पर से उतरना पड़ा! यह लो, करो मेरा वध कि जिससे मेरा यश तीनों लोकों में व्याप्त हो जाये। तुम्हारे हाथों मरकर तो मैं वह पद प्राप्त करूंगा, जहाँ से इस पर लौटना ही न पड़े।" अर्जुन यह देखकर सन्न रह गया। उसने सोचा कि यह तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा। वह रथ से उतरा और श्रीकृष्ण के पीछे भागा। बड़े परिश्रम से श्रीकृष्ण के पास पहुँचकर उन्हें पकड़ पाया और बोला– "रुष्ट न हों, माधव! मैं स्वयं युद्ध करूंगा। मेरी सुस्ती को क्षमा करें।" अर्जुन के आग्रह पर श्रीकृष्ण वापस लौटकर फिर से अर्जुन का रथ हांकने लगे। श्रीकृष्ण के इस कार्य से अर्जुन उत्तेजित हो उठा और कौरव-सेना पर वह मानो वज्र के समान गिरा। हजारों की संख्या में कौरव-वीरों को उसने मौत के घाट उतार दिया और शाम होते-होते कौरव-सेना बड़ी बुरी तरह से हार गई। थकी-हारी सेना मशालों की रोशनी में अपनी शिविरों को लौट चली। कौरव-सैनिक आपस में बातें करते थे कि भीष्म को हराना अर्जुन की ही सामर्थ्य की बात थी। अर्जुन के सिवाय और किसकी हिम्मत थी जो हारी लड़ाई को जीत में बदल देता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज