महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
41.मायावी सरोवर
युधिष्ठिर ने कहा कि जाकर देखो और पानी मिले तो ले आओ। यह सुंनकर नकुल तुरन्त पानी लाने चल पड़ा। कुछ दूर चलने पर अनुमान के अनुसार नकुल को एक जलाशय मिला। वह बड़ा प्रसन्न हुआ। सोचा पहले तो अपनी प्यास बुझा लूं और फिर तरकस में पानी भरकर भाइयों के लिए ले जाऊंगा। यह सोचकर वह पानी में उतरा पानी स्वच्छ था। उसने दोनों हाथों की अंजुली में पानी लिया और उसे पीना चाहता था कि इतने में यह आवाज आई- "माद्री के पुत्र! दु:साहस न करो। यह जलाशय मेरे अधीन है। पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो। फिर पानी पियो।" नकुल चौंक पड़ा। पर उसे प्यास इतनी तेज लगी थी कि उस वाणी की परवाह न करके अंजुलि से पानी पी लिया। पानी पीकर किनारे पर चढ़ते ही उसे कुछ चक्कर सा आया और वह गिर पड़ा। बड़ी देर तक नकुल के न लौटने पर युधिष्ठिर चिन्तित हुए और सहदेव को भेजा। सहदेव जलाशय के नजदीक पहुँचा तो नकुल को जमीन पर पड़ा देखा। उसने सोचा कि हो न हो, किसी ने भाई को मार डाला है। पर उसे भी प्यास इतनी तेज लगी थी कि वह ज्यादा कुछ सोच न सका। पानी पीने के लिए वह जलाशय में उतरा। वह पानी पीने को ही था कि पहली जैसी वाणी सुनाई दी- "सहदेव यह मेरा जलाशय है। मेरे प्रश्नों का जवाब देने के बाद ही तुम पानी पी सकते हो।" सहदेव भी प्यास के मारे इतना व्याकुल हो रहा था कि उसने वाणी को चेतावनी पर ध्यान न देते हुए पानी पी लिया और किनारे पर चढ़ते-चढ़ते अचेत होकर नकुल के पास ही गिर पड़ा। जब सहदेव भी बहुत देर तक न लौटा तो युधिष्ठिर घबराकर अर्जुन से बोले- "अर्जुन दोनों भाई पानी लेने गये हैं। अब तक क्यों नहीं लौटे? जाकर देखो तो उनके साथ कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई? और लौटते समय तरकस में पानी भी लेते आना।" अर्जुन बड़ी तेजी से चला। तालाब के किनारे पर दोनों भाइयों को मृत पड़े देखा तो चौंक पड़ा। उसे अचरज हो रहा था और दु:ख भी। वह नहीं समझ पाया कि इनकी मृत्यु का क्या कारण है? यही सोचते हुए अर्जुन भी पानी पीने के लिए जलाशय में उतरा कि इतने में वही वाणी सुनाई दी- "अर्जुन! मेरे प्रश्नों का उत्तर देने के बाद ही प्यास बुझा सकते हो। यह तालाब मेरा है; मेरी बात न मानोगे तो तुम्हारी भी वही गति होगी जो तुम्हारे इन दो भाइयों की हुई है।" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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