नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
16. महर्षि लोमश–शकट-भञ्जन
गोपियाँ आ रही हैं। गाती हुई रंग-बिरंगे वस्त्रों में सुसज्जिता, सर्वाभरण-भूषिता गोपियाँ करों में उपहार लिए अनेक प्रकार के गीत गाती हुई आ रही हैं। कितने वस्त्र, खिलौने ला रही हैं ये। माता को अपने शिशु को सुलाने योग्य स्थान मिल गया है। गोपों ने आंगन में खूब बड़ा छकड़ा खड़ा कर दिया है। आज के उत्सव के लिए लगभग पूरा गृह ख़ाली किया गया। घर के दूध, दधि, नवनीत, घृत, तैल आदि के सब पात्र इस छकड़े पर सजा दिये गये हैं। यशोदा ने पलने को छकड़े के नीचे रख दिया है और दाऊ, ॠषभ, विशाल, अर्जुन जैसे बालक छकडे़ के पास आ बैठे हैं। यशोदाजी ने ठीक सोचा है कि उनका शिशु यहाँ ठीक सो सकेगा। उनको गोपियों के सत्कार में लगना है। बालक तो अपने इन नित्य सखा को छोड़कर कहीं जाते नहीं। ये यहाँ रहेंगे। 'हम इसे झुलायेंगे!' बालकों ने बड़े आग्रह से कहा है- 'यह जागेगा तो तुमको बुला लेंगे।' यशोदा जी ने बालकों को समझाया-सिखाया है कि पालना अधिक वेगपूर्वक वे न हिलावें। अपने शिशु को थपकाकर वे चली गयीं। अच्छा उत्कच आ गया! यह बेचारा दैत्य मुझ अदृश्य को नहीं देख सकता; किंतु मैं भी तो इसे यहाँ आकर भूल ही गया था। यह वायुशरीरी अपने लिए स्थान ही नहीं पाता है। इन शिशु बने सर्वेश्वरेश्वर को स्पर्श करने का साहस नहीं है दैत्य में। इसका भय उचित है। इन चिद्घनवपु को स्पर्श करके आसुरता निश्चय ही मिट जायगी। पूतना ने जो भूल की, दैत्यराज हिरण्याक्ष का पुत्र वही भूल नहीं कर सकता। उत्कच शकट में आविष्ट हो गया है। अब यह शकटासुर है। अपवित्र कर दिया इसने शकट पर रखे सब भाण्डों और उनके पदार्थों को। ये दैत्य-स्पर्श-दूषित पदार्थ क्या अब किसी भी गोप के उपयोग योग्य रह गए? मैं क्या करूँ? मैं सूचना दूँ किसी को? वायु शरीर उत्कच किसी को भी दीख नहीं सकता। मैं उत्कच के उद्धार की प्रार्थना करने आया हूँ; किंतु ये सर्वसमर्थ तो शिुश बने शयन का नाट्य कर रहे हैं। इन चिन्मय को कहीं निद्रा का तमस स्पर्श करता है; किंतु इन कृपासिन्धु ने क्या अदृश्य लोमश की अव्यक्त हृदयवाणी सुन नहीं ली है? मुझे इनकी कृपा की प्रतीक्षा करनी चाहिए। |
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