नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
16. महर्षि लोमश–शकट-भञ्जन
अब नन्दनन्दन के ये अग्रज आ गये हैं। इन अनन्त ने स्वयं अपने स्वर्णगौर श्रीअंग पर धूलि डाल ली है। सब अनुज को ही गोरज से स्नान कराने में लगे हैं तो इन्होंने स्वयं मुट्ठी-मुट्ठी धूलि डाली है अपने अंगो पर और अब गोरज की मुट्ठी भरकर अपने छोटे भाई को धूलि-स्नान कराने आ गये हैं। मुझे आज इनके भी धूलि-अर्चन का सौभाग्य मिल गया है। बहुत देखा है भगवान शालिग्राम का दुग्धाभिषेक और क्षीराब्धिशायी का दर्शन भी मुझे दुर्लभ कभी नहीं हुआ; किंतु यह नन्दनन्दन पर पड़ती अखण्ड दुग्ध-धारा! इन नवघन सुन्दर की दुग्ध की उज्ज्वलता में-से छलकती छवी छटा! इनकी कहीं तुलना नहीं है। स्वर्णपात्र में पाटल दलों के मृदुल आस्तरणों पर पड़े ये व्रजेन्द्र-नन्दन। मुझे सचमुच लोभ है- इनके इस स्नान-शुद्ध की दो बूँदें! किंतु मुझ ऋषि को यह कोई नहीं देगा और अदृश्य होऊँ तो इनके समीप पहुँचने की शक्ति खो दूँगा! धन्य हैं व्रज के ये लोग, इनके सेवक-सेविकायें! आज इन सबको यह दुग्ध-प्रसाद प्राप्त होगा। ये क्षीरोदधिशायी के भी हृदयाराध्य इस दूध में लेटे अपने चरण उछाल रहे हैं! इन अनन्त कृपासिन्धु ने लोमश की अभिलाषा पूर्ण कर दी है। इनके चंचल चरणों से उछलकर पड़ी ये दूध की बूँदें मेरे करों पर- अब ये मेरा स्वत्व हैं! सुगन्धित उष्णोदक यमुना जल का यह अन्तिम स्नान सम्पन्न हो गया। ब्रजराज ने अपने लाल को उठाकर अपनी भाभी की गोद में दे दिया है। उपनन्द पत्नी ने इनके अंग पोंछ दिये और माता को दिया है। कितना कोमल होता है माता का हृदय- यशोदाजी को लगता है कि उनके लाली को शीत लगी होगी। वे वस्त्रों में उसे छिपाये जा रही हैं; किंतु अभी तो स्वस्ति-वाचन शेष है। मुझे भी महर्षि के साथ देव-पूजन, मंगल श्राद्धादि में लगना पड़ा। शीघ्रता सभी को है। सबका मानस श्रीनन्दनन्दन की छवि देखने को आतुर है। सुर-पूजनादि समाप्त करके ही तो स्वस्ति- वाचन के समय पुन∶ वह सौन्दर्य राशि नेत्रों के सम्मुख आवेगी। श्रीनन्दराय ने अपने पुत्र को अंक में लिया। हम सब कुशाग्र से नन्हें सीकर डालकर उसके अंग की शोभा को सदा-सदा के लिए हृदय में रख लेना चाहते हैं- 'स्वस्ति नो इन्द्रो वृद्धश्रवा स्वस्ति नो पूषा विश्ववेदा∶.....।' अपार दक्षिणा- गायें, स्वर्ण एवं रत्नराशि; किन्तु मुझे क्या करना है इस सबका। मुझे वे दो दुग्धविन्दु मिल गये हैं। अब मुझे अदृश्य हो जाना चाहिए, अन्यथा महर्षि के साथ यहाँ से विदा होना पड़ेगा। |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज