नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
14. तुंगी तायी-दुग्ध–पान
कामदा के चारों स्तनों से प्रभात से ही अखण्ड दूध की धारा झरने लगी थी। गोप तो कहते हैं कि उनके गोष्ठों में आज सब गायों के स्तनों से दूध झर रहा था। अब सब मन्दिरोंमें मुख्य देवता का ही नहीं, उनके परिकर पार्षद सबका सहस्राभिषेक करो, या अखण्ड धारा-स्नान कराओ इन्हें दूध से। भगवती पूर्णमासी सबेरे नन्दभवन पधारीं तो उनके करों में छोटा-सा दक्षिणावर्त शंख था। इतना सुन्दर, इतना उज्ज्वल शंख भी होता है? मैं भगवती के समीप जाकर देखने लगी थी कि शशि का यह सरोदर है अथवा शशि इसके खण्ड से बना है? हम सबने ही समझा था कि भगवती आज कुमार को दुग्ध-पान कराने के लिए यह शंख प्रसाद स्वरूप देने लायी हैं। मैंने नेत्रों से संकेत भी किया यशोदा को तथा रोहिणी रानी को भी कि भगवती जिसे शंख दे देंगी, वही कुमार को दुग्ध-पान करायेगी। यह संकेत स्पष्ट था और सबको स्वीकार था। सबकी दृष्टि उस शंख पर और भगवती पर लगी थी; किंतु भगवती ने हम सबमें-से किसी की ओर ध्यान नहीं दिया। वे किसी के मुख की ओर देखतीं तो उसका भाव उसके साभिलाष नेत्र तत्काल कह देते; किंतु भगवती ने किसी की ओर देखा ही नहीं। वे तो आयीं और आकर उन्होंने नन्दनन्दन को अंक में उठा लिया। उसे अंक में लेकर, हम सबकी ओर लगभग पीठ करके पूर्वाभिमुख बैठ गयीं लाल का सिर दक्षिण किये। 'व्रजराज! यह तुम्हारे युवराज की धात्री बैठी है!' भगवती ने कहा और हम सब धन्य-धन्य हो गयीं। हमारे नवयुवराज की ये जगदम्बा-जगद्धात्री स्वयं धात्री बनेंगी! हमको यह अवसर मिलता-कितनी तुच्छ बात थी! 'इस शंखका पूजन करो व्रजराज!' भगवती ने आदेश किया-'मुझे दूध दो इसमें। मेरा लाल दुग्ध-पान करेगा।' |
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