नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
13. सनकादि कुमार-पूतना-मोक्ष
छि:! यह क्या किया इसने? इस मायाविनी राक्षसी ने तो साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप धारण किया है। यह पत्नी का रूप बनाकर स्तनपान करावेगी धात्री के समान और मारना चाहेगी? पापात्मा मायावियों को मर्यादा का कहाँ किञ्चित भी ध्यान रहता है। इसका यह काञ्चन गौरवर्ण, विशाल लोचन, अत्यन्त क्षीण कटि, मल्लिका माल्य गुम्फित मेचक कुन्तल राशि और इसके ये माया-निर्मित रत्नाभरण! देवी अब्धि जा देखें इसे तो वे भी चकित हो उठेंगी यह रूप देखकर; किंतु इसे उनका शील कैसे प्राप्त होता? इसने केवल सुना है कि कमला चपला हैं। अब इसके खञ्जन दृगों का यह कटाक्षपात, यह भ्रू-निक्षेप, यह सहास्य सबकी ओर देखना- यह तो वेश्या के समान भावभंगी बनाने लगी है। केवल हाथ में कमल लेकर उसे लीलापूर्वक नचाने मात्र से तो कोई रूपवती नारी पद्मजा नहीं हो जाती। गोप और गोपियाँ स्वभाव से सरल हैं। इनके यहाँ सुरांगनाओं का आ जाना इधर सामान्य बात हो गयी है। रक्षक तो इस राक्षसी का रूप देखकर इसे श्रद्धापूर्वक सिर झुका ही रहे थे, गोपियाँ भी सम्भ्रम सहित मार्ग देने लग गयीं। सबके मुख पर एक ही बात- 'हमारी व्रजेश्वरी के अंक में लगता है कि श्रीनारायण ही पधारे हैं। ये देवी लक्ष्मी अपने पति का दर्शन करने आयी होंगी।' यह तो सीधे नन्द-भवन में प्रविष्ट हो गयी है; किंतु भगवान संकर्षण ने इसे देख लिया है! क्या करेंगे ये अनन्त? नहीं, ये कुछ नहीं करेंगे। अपने अनुज का पलना पकड़कर अभी खड़े थे और इसे देखते ही पलना छोड़कर दूर हटकर बैठ गये हैं। ये केवल देख रहे हैं कि यह करती क्या है। पूतना का ध्यान इनकी ओर नहीं है। उसे तो नवजात से प्रयोजन है और अभी अग्रज की ओर देखकर जो मन्द-मन्द हँस रहे थे, उन्हें इतनी शीघ्र निद्रा भी आ गयी? अपने लोचन बन्द कर लिए इन्होंने! धन्य लीलामय! 'तुझे शिशु को पालना आता भी है?' पूतना ने पहुँचते ही यशोदाजी को डाँटना प्रारम्भ किया- 'कभी तूने शिशु पाला है? इतना सुकुमार है यह कि रो भी नहीं पाता और तू नहीं देखती कि इसका उदर कितना पिचक गया है। गड्ढा हो गया है उदर! कितना क्षुधातुर है लाल!' |
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