नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
13. सनकादि कुमार-पूतना-मोक्ष
'मुझे आजकल अवकाश नहीं है। मेरा भाई का काल कहीं उत्पन्न हो गया है। वह बढ़ रहा है।' पूतना इन दिनों बहुत क्रूरा हो रही है। कब दिन में कहीं कोई उज्ज्वल बकी किसी के प्रांगण में उतरेगी अकस्मात अथवा रात्रि में उलूकी आ कूदेगी, कोई नहीं जानता। पूतना किस शिशु को कैसे मार देगी, क्या कहा जा सकता है। वह पहुँचती है- मायाविनी राक्षसी! शिशु सहसा रक्तहीन होकर निष्प्राण हो जाता है। रक्त पी जाती है यह पिशाचिनी! मथुरा के सम्मुख ही कालिन्दी के दूसरे किनारे गोकुल है। पूतना को पता है कि इस गोपों के ग्राम में इन्हीं दिनों पुत्रोत्सव के वाद्य बड़े उत्साह से बजे हैं; किंतु पूतना की एक विवशता है। यह बकी या उलूकी बनकर जब इधर उड़ना चाहती है, इसके पक्ष भारी हो जाते हैं। कारण यह क्या समझेगी, योगमाया का वैभव तो महामुनीन्द्रों के लिए भी अगम्य है; किंतु इसने समझ लिया है कि गोकुल में गगन के मार्ग से नहीं जाया जा सकता। कल सायंकाल गोकुल में षष्ठी-पूजन हुआ। इतनी वाद्य-ध्वनि, इतना आनन्दोत्सव, इतना संगीत! पूतना के लिए यह असह्य था; किंतु उलूकी बनकर रात्रि को वहाँ पहुँचना सम्भव नहीं था उसके लिए। प्रात: काल ही यह साधारण स्त्री के रूप में चल पड़ी है। इतना साधारण स्त्रीवेश? पूतना क्या करेगी? यह तो आकर गोकुल में सुनसान में उपेक्षित पड़े एक पुराने शकट के नीचे छिप गयी है। इसे अभी यहाँ की गति-विधि देखनी है। यहीं से अनुमान करना है कि कल का उत्सव किस भवन में हुआ और वहाँ इसके प्रवेश में क्या बाधा आवेगी। गोकुल में सब ओर सशस्त्र रक्षक हैं। पूतना बकी या उलूकी बनकर आती तो अवश्य इनके बाणों का लक्ष्य बन जाती। आज ये किसी अपरिचित पक्षी तक को उतरने नहीं देंगे। इनकी दृष्टि बचाकर किसी भी घर में प्रवेश पाना कठिन है। पूतना को अनुमान हीं करना पड़ा। जहाँ पुत्र का षष्ठी महोत्सव हुआ, वहाँ तो अब भी संगीत चल रहा है; किंतु उस भवन में बहुत भीड़ लगती है। गोप चले गये मथुरा सवेरे ही। अब गोपियों को अपने घरों में बहुत कम काम है। षष्ठी हो गयी। नन्दरानी का नन्हा लाल सूतिका-गृह से बाहर आ गया। अब उसका आकर्षण उसका सान्निध्य छोड़कर घर में कोई कैसे टिकी रहे? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बगुली
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