नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
12. बुआ नन्दिनी-षष्ठी महोत्सव
वहाँ मधुमंगल झगड़ रहा था मेरी छोटी बहिन सुनन्दा से और मुझे भी लगा कि वह ठीक झगड़ रहा है। सर्षप, सैन्धव लवण, निम्बपत्र, मरोड़फली, सर्पञ्चुक, सम्हालू बीज, बच, कूट, बिल्वपत्र को कूटकर उसमें केवल गोघृत मिलाया गया था और यह धूनी दी जा रही थी वहाँ। इसका कटु धूम सुकुमार नवजात को क्लेश नहीं देता होगा? मधुमंगल कह रहा था- 'इसे फेंक दो! रोक दो यह। यहाँ अगुरु और गूगल की धूप दो! तुम्हें न मिले तो मैं ले आता हूँ।' बेचारी सुनन्दा क्या करे। उसके भी सुन्दर नेत्र उस कटु धूम से किञ्चित अरुण हो आये थे; किंतु वह उस धूनी में भी अगुरु-गूगल मिला नहीं सकती थी। धाय मुखरा ऐसे समय किसी की मानती नहीं। भगवती पूर्णमासी ने भी कह दिया था- 'नव-प्रसूता तथा शिशु के स्वास्थ्य, ग्रह-बाधा निवारण के लिये यही धूनी वहाँ दी जानी चाहिए।' मधुमंगल चपल है। वह कहीं एक स्थान पर न बैठ पाता और न एक बात में लगा रह सकता। उसे पुओं और बड़ियों की माला ने आकर्षित कर लिया। सब उसकी बात सुनकर हँस पड़े। मुझसे कहने लगा- 'नन्दिनी बुआ! बहुत बच्छी हो तुम; किंतु कभी-कभी आवश्यक बात भी भूल जाती हो। यह आज ही भूल गयी हो कि यहाँ मोदकों की भी माला लगायी जानी चाहिए। झटपट उसे लगाओ।' 'यह काला-काला अजापुत्र यहाँ क्यों ला बाँधा है?' मधुमंगल का ध्यान गया तो बोला- 'भगा दो इसे यहाँ से। मेरे सखा के समीप इसका क्या काम? यहाँ कोई गौ नहीं बाँध सकते तो एक बछड़ा ही बाँध दो।' वह उसे खोल ही देता; किंतु बकरे ने उसकी ओर मुख बढ़ाया तो कूदकर दूर खड़ा हो गया यह ब्राह्मण का बालक। पता नहीं इसे डर लगा या बकरे को यह अस्पृश्य मानता है। खूब मटका, खूब चिढ़ाया इसने अँगूठा दिखाकर प्रसुति-कक्ष के द्वार पर मूसल लिये खड़े कक्ष-रक्षक को। सब हम हँसते-हँसते लोट-पोट हो गयीं। रक्षक भी हँसता रहा। यह कहता था- 'महोदय! आप शीघ्र अपना यह मूसल लेकर यहाँ से भागिये! यह मेरी मैया का भवन है और मेरा सखा भीतर सो रहा है। ये पुए मेरे हैं। आप नम्रता-पूर्वक माँगे तो यह बड़ियों की माला मैं आपको कृपा करके दे सकता हूँ।' |
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