नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
11. धात्री मुखरा-जन्मोत्सव
गोकुल के आसपास वनों में, उपवन में, गृहों में जो इसके माता के उदर में आने के साथ ही शोभा, सम्पत्ति उमड़ पड़ी है, वह तो सब देखते ही हैं। इतना सौन्दर्य वृक्षों में वनों में- मुझे व्रजराज के सेवक ने बतलाया कि कालिन्दी-पुलिन पर रेणु के रंगीन कणों से, वनों में तृण-पुष्पों से, जल में पुष्पों से और भूमि पर रत्नों से नाना प्रकार के मण्डल-चित्र प्रकट हो गये हैं। वैसे मण्डल जैसे मुनिगण यज्ञों के समय यज्ञशाला में बनाया करते हैं। सब पशु-पक्षी प्रसन्न, पुष्ट, सानन्द हैं और शकुनों ने तो गोकुल को अपना आवास बना रखा है। यह सब हमारे लाल का सौभाग्य-सूचक ही तो है। प्रसूति-कक्ष, प्रांगण तो आज अद्भुत सुर पुष्पों से भर गया है। अवश्य व्रज के युवराज का जन्मोत्सव मनाया है गगन में सुरों ने भी। लेकिन यहाँ जो उत्सव आरम्भ हो गया है। आज के आनन्द में तो सब उन्मत्त हो गये हैं। अरे इस वृद्धा मुखरा को तो बची रहने दो। इसे प्रसूति-कक्ष सम्हालना है, नवप्रसूता की सेवा करनी है, लाल को अधिक दूध न पिला दिया जाय, यह देखना है; किंतु कोई आज मेरी पुकार नहीं सुनता। मैं भी तो पगली हो गयी हूँ। मुझसे भी तो प्रसूति-कक्ष में बैठा नहीं जाता। व्रजेश नाच रहे हैं, उपनन्द तक नाच रहे हैं तो सब मुखरा को नचाना चाहते हैं, इसमें क्या अनुचित है। यशोदा के अंक में लाल आया-मुखरा का ही तो लाल है। वह अपनी इस धात्री को भी तो 'माँ' कहेगा। मुखरा आज नहीं नाचेगी तो कब नाचेगी। यह नवनीत, दूध, दधि, हरिद्रा मिला तैल- यह परस्पर निक्षेप, यह प्रेममग्न उन्मद नृत्य एवं हास्य। यह गोपों का और वृद्धों का भी कूदना। मुखरा ही तो है जो गोपों के-व्रजराज और उनके अग्रजों के श्मश्रु-कपोल भी नवनीत-लिप्त कर सकती है और गोपियों को-वृद्धाओं को, वधूटियों को भी कर पकड़कर थिरका सकती हैं। लेकिन यह क्या है? मुखरा को यह सब अपार उपहार क्यों? मुखरा ने तो लाल पाया है। यह धात्री आज लुटाने वाली, देने वाली है। मेरे लाल की न्यौछावर लो सब-सब लूटो जी भर कर। इसमें भी कोई मेरी नहीं सुनता तो मैं कैसे मान लूँ। |
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