नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
53. यमराज-अघोद्धार
मैया की समस्याएँ अनन्त हैं। वे दिनभर इन्हीं चिन्ताओं में अशान्त रहती हैं। दूसरी ओर उनके ये लाल हैं कि प्रात:-सायं प्रतिदिन मैया से खीझते हैं मैया इन्हें सबसे पहिले क्यों जगा नहीं देती। दाऊ दादा पहिले उठकर मुख धोकर शैया के समीप आ खड़े हों तब उठा जाय, यह भी कोई बात है। सब सखा गोदोहन करके आ जाते हैं तब कहीं कलेऊ करना पड़ता है, यह इन्हें स्वीकार नहीं है। सायं प्रतिदिन मैया को सावधान करते हैं कि इन्हें शीघ्र जगा दे। मैया को लगता है कि गायें बहुत अँधेरे हुंकार करने लगती हैं। दाऊ पता नहीं क्यों शीघ्र उठ जाता है। नीलमणि तनिक और सोता रहे, इतना सबेरे न उठे तो अच्छा और कलेऊ तो यह सखाओं के बिना कर ही नहीं पाता। 'कल सब वन में ही कलेऊ करेंगे!' अब यह नवीन योजना बालकों ने बना ली है। सायंकाल ही मैया से कह दिया- 'मेरा छीका सजा देना। मैं उसे अपने आप ले जाऊँगा। कल मुझे दादा से पहिले उठा देना!' 'कल दाऊ का तो जन्म नक्षत्र है। वह नहीं जायगा वन में।' मैया ने कहा- 'तुम सब कल यहीं रहो!' 'मैं जाऊँगा। सब सखा जायँगे। तू मेरा छीका अभी भर दे!' श्यामसुन्दर की चले तो छीका सिरहाने रखकर सोयें। वंशी, लकुट तो शैया पर रखकर सोये ही, श्रृंग भी साथ रख लिया। अब व्रजेश्वरी को बाध्य होकर बहुत प्रात: उठकर विविध पकवान बनाने हैं। छीका तो विशाल ले जायगा; किंतु श्याम का छीका भरा नहीं गया तो रूठ सकता है यह और क्या पता- घर से भेजा गया कलेऊ लेना अस्वीकार ही कर दे। बालकों को भूख लगेगी तो कच्चे-पक्के फल खाने लगेंगे। इससे अच्छा है कि इनके साथ उत्तम कलेऊ दिया जाय। अब ये मध्याह्न में तो लौटते नहीं। |
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