नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
43. कीर्त्ति मैया-प्रथम परिचय
सुबल कहता है कि मेरी ही भाँति वहाँ यशोदा ने इस पर राई-नमक उतारा। उन्होंने इसके केशों में सुगन्धित तैल लगाकर बैनी गूँथ दी है। मोतियों से माँग भर दी है इसकी और मल्लिका-माला वेणी में सजा दी है। इसके कर्णों में, कण्ठ में, भुजाओं में- सम्पूर्ण अंगों में तो उन्होंने रत्नाभरण सजा दिये हैं। मैं समझ सकती हूँ कि किस उल्लास-आनन्द से उन्होंने यह सब किया होगा और यह तो इतनी संकोची है- लज्जाशीला है कि अस्वीकार का भी साहस इसमें नहीं है। सुबल कहता है कि यह यहाँ से तो बहुत उत्साह से गयी थी; किंतु वहाँ उनके ग्राम में पहुँचते ही ठिठक गयी। यह तो लौट ही आना चाहती थी, पर करे क्या, भाई साथ आना नहीं चाहता था और अकेली आने का साहस नहीं था। किसी पकार सुबल इसे ले गया व्रजराज के भवन के बहिर्द्वार तक और वहाँ सटकर भित्ति से खड़ी हो गयी। 'यह स्वयं किसी प्रकार भीतर जा ही नहीं रही थी।' सुबल कह रहा था- 'मैंने सखा को जाकर बतलाया तो वह दौड़ा आया इसके पास और इसका हाथ पकड़कर ले गया मैया के समीप।' 'मैया, यह श्रीदाम की बहिन आयी है!' श्याम ने कहा- 'यह यहाँ आती ही नहीं थी। द्वार से चिपकी थी। तुझसे भी डरती है यह?' 'लाली आयी है!' सुबल ने बड़े उत्साह से सुनाया- 'मैया ने तो इसे गोद में ही बैठा लिया। कनूँ को भी बैठाया अंक में इसके पास और आँख मूँदकर, अञ्चल फैलाकर कुछ प्रार्थना करती रही। फिर इसकी चोटी करने, इसे सजाने में लग गयी।' 'माँ! यह तो वहाँ गूँगी बन गयी थी।' सुबल नटखट होता जा रहा है। लगता है कि इसका सखा वह नीलसुन्दर बहुत चपल है। अन्यथा बहिन को पहिले तो इसने कभी चिढ़ाया नहीं था। 'मैया ने बहुत पूछा, बहुत प्रयत्न किया, पर बोलती ही नहीं थी। कनूँ से भी किसी प्रकार ही दो-एक शब्द बोली। मैया ने हम सबको हटा दिया कि वह हमारे सामने कुछ खायगी नहीं। पीछे भी पता नहीं कुछ खाया या नहीं। वैसे भी तो छोटी चिड़िया जितना खाती है।' |
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