नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
40. नन्दन चाचा-वृन्दावन की ओर
हँसकर उत्तर दिया- 'भैया! तुम रोहिणी जीजी से यह सब पूछ लो। उन्होंने तुम्हारी, तुम्हारे भैया की, अतुला की और मेरी भी व्यवस्था की होगी। मैं तो तुम्हारे नीलमणि, राम, भद्र, तोक, विशाल आदि की व्यवस्था ही बना नहीं पा रही हूँ। मुझे तनिक सहायता करो, यह बताओ कि ये बालक कब क्या माँगने लगेंगे।' मैंने हाथ जोड़ा। हम पुरुष क्या जानें बालकों को पालना। मैं उनकी आवश्यकता का अनुमान कैसे कर सकता हूँ। स्वयं मेरी आवश्यकता का पता भी मेरी पत्नी से अधिक इन भाभी को रहता है। ये खिलौनों की राशियाँ, वस्त्र, बहुत अधिक खाद्य-सामग्री अपने ही छकड़े में सेवकों को रखने को दे रही हैं। स्वयं जाकर सामग्रियों को इधर-उधर सजाती हैं कि आवश्यकता होने पर तत्काल उन्हें पाया जा सके। 'देवर, मेरा छकड़ा व्रजेश्वरी के छकड़े के समीप ही रखना!' सबकी आज एक ही माँग है; किंतु मैं जानता हूँ कि कोई मुझसे असन्तुष्ट नहीं होगी; क्योंकि सबकी उससे पहिले माँग है- 'कन्हाई की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखना मल्ल देवर! कंस के मायावी राक्षस भेड़ियों से भी अधिक भयंकर सुने जाते हैं।' रक्षा का दायित्व मुझ पर है और मैं आश्वस्त हूँ। मेरे सब साथी तरुण गोप शस्त्र-सज्ज साथ रहेंगे! कल-परसों मार्ग में कोई आने का साहस कर देखे उसमें शक्ति हो तो। मैंने सबको निश्चिन्त कर दिया है। भेड़िये तो देखने को भी नहीं मिलेंगे; क्योंकि ये यूथबद्ध विचरण करने वाले पशु हम मानवों के कोलाहल मात्र से दूर भागते हैं। 'गायें आगे चलेंगी! बड़े भाई उपनन्दजी की यह बात मर्यादा की थी, अत: मैंने मस्तक झुकाकर मान ली; किंतु मैं जानता था कि ऐसा करना कभी सम्भव नहीं होगा। कन्हाई अपने छकड़े पर होगा तो कोई गाय या बछड़ी आगे बढ़ेगी ही नहीं। हम गोप हैं, गायें हमारी देवता, हमारी पूज्य, सदा हमसे आगे किंतु वे श्याम खेलता मिल जाता है प्रात: या सांय तो उसे घेरकर खड़ी हो जाती हैं। सांय उसे गोष्ठ में ले जाना पड़ता है, तब वे गोष्ठ में जाती हैं। प्रतिदिन भाभी से प्रार्थना करनी पड़ती है मुझे कि गायों के वन में चले जाने पर गृह से नीलमणि को निकलने दें। अब यात्रा में गायों को गोप कोई भी प्रयत्न करके आगे ले कैसे जा सकते हैं। प्रभात में ही सन्ध्या-तर्पण समाप्त करेके महर्षि शाण्डिल्य ऋषियों-मुनियों के साथ अपनी अग्नियाँ लिये हमारे वृषभ-रथों पर आ विराजे। आज मधुमंगल ने मेरी मनुहार ढेर से मोदक लेकर मान ली। वह भगवती पूर्णमासी के साथ बैठ गया छकड़े पर और मुनिमण्डली के साथ आगे रहना उसे योग्य लगा। मैंने कहा था- 'हम सब कलेऊ, भोजन विप्रवर्ग को कराके ही करेंगे। तुम आगे चलोगे तो यह सत्कार सुलभ होगा।' |
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