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- जयति जय गोप्रेमी गोपाल -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जयति जय जयति -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जयति जय श्रीबृषभानु-दुलारी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जयति देव, जयति देव -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जयति नँदलाल जय जयति गोपाल -सूरदास
- जयति राधिका जीवन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जयत्सेन
- जयत्सेन (जरासंध पुत्र)
- जयत्सेन (धृतराष्ट्र पुत्र)
- जयत्सेन (नकुल)
- जयत्सेन (बहुविकल्पी)
- जयत्सेना
- जयदेव
- जयदेव की जगन्नाथ यात्रा
- जयदेव द्वारा गीतगोविन्द की रचना
- जयद्रथ
- जयद्रथ (बहुविकल्पी)
- जयद्रथ (राजा)
- जयद्रथ और द्रौपदी का संवाद
- जयद्रथ का द्रौपदी पर मोहित होना
- जयद्रथ का पांडवों के साथ युद्ध और व्यूहद्वार को रोक रखना
- जयद्रथ का पांडवों को चक्रव्यूह में प्रवेश करने से रोकना
- जयद्रथ की रक्षा हेतु दुर्योधन का अर्जुन के समक्ष आना
- जयद्रथ द्वारा द्रौपदी का अपहरण
- जयद्रथ वध
- जयद्रथ वध हेतु श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को आश्वासन
- जयद्वल
- जयधर
- जयन्त
- जयन्त (आदित्य)
- जयन्त (इन्द्र पुत्र)
- जयन्त (पाण्डव पक्ष योद्धा)
- जयन्त (बहुविकल्पी)
- जयन्त (वसु)
- जयन्ती
- जयन्तीपुरी
- जयप्रिया
- जयमंगल
- जयमाला
- जयरात
- जयसंहिता
- जयसेन
- जया
- जयानीक
- जयानीक (द्रुपद पुत्र)
- जयानीक (बहुविकल्पी)
- जयावती
- जयाश्व
- जयाश्व (द्रुपद पुत्र)
- जयाश्व (बहुविकल्पी)
- जरत्कारु
- जरत्कारु (नाग कन्या)
- जरत्कारु (बहुविकल्पी)
- जरत्कारु ऋषि
- जरत्कारु का जरत्कारु मुनि के साथ विवाह
- जरत्कारु का शर्त के साथ विवाह
- जरत्कारु की तपस्या
- जरत्कारु को पितरों के दर्शन
- जरत्कारु मुनि का नाग कन्या के साथ विवाह
- जरत्कारुप्रिया
- जरत्कारू का पितरों से अनुरोध
- जरत्कारू द्वारा वासुकि की बहिन का पाणिग्रहण
- जरा
- जरा (बहुविकल्पी)
- जरा (बहेलिया)
- जरा राक्षसी का अपना परिचय देना
- जरायु
- जरासंघ
- जरासंध
- जरासंध-मानोद्धर
- जरासंध-संकल्पकृत
- जरासंध का आक्रमण
- जरासंध का श्रीकृष्ण के साथ वैर का वर्णन
- जरासंध की युद्ध के लिए तैयारी
- जरासंध के विषय में युधिष्ठिर, भीम और श्रीकृष्ण की बातचीत
- जरासंध द्वारा बंदी राजाओं की मुक्ति
- जरासंध पर जीत के विषय में युधिष्ठिर का उत्साहहीन होना
- जरासंधहा
- जरासन्ध
- जरासन्ध (धृतराष्ट्र पुत्र)
- जरासन्ध (बहुविकल्पी)
- जरिता
- जरिता एवं उसके बच्चों का संवाद
- जरिता का अपने बच्चों की रक्षा हेतु विलाप करना
- जरितारि
- जर्जरानना
- जर्तिका
- जल
- जल-सुत-प्रीतम-सुत-रिपु-बंधव-आयुध -सूरदास
- जल-सुत-सुत ताकौ रिपुपति -सूरदास
- जल कीड़ा सुख अति उपजायौ -सूरदास
- जल तैं निकसि तीर सब आवहु -सूरदास
- जल दान और अन्न दान का माहात्म्य
- जलंधम
- जलंधमा
- जलधार
- जलनिधि-जलधर मन्द-मधुर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जलन्धम
- जलन्धमा
- जलसंघ
- जलसन्ध
- जलसन्ध (कौरव पक्ष योद्धा)
- जलसन्ध (बहुविकल्पी)
- जला
- जला दो उर मेरे विरहानल -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जला नदी
- जलाशय बनाने तथा बगीचे लगाने का फल
- जली लता-सी पड़ी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जलेयु
- जलेला
- जलेश्वरी
- जलेऽक्रूरसंदर्शित
- जलोद्भव देश
- जसुदा, नार न छेदन दैहौं -सूरदास
- जसुदा कहँ लौं कीजै कानि -सूरदास
- जसुदा कान्ह कान्ह कै बूझै -सूरदास
- जसुदा तू जो कहति ही मोसौं -सूरदास
- जसुदा तेरौ मुख हरि जोवै -सूरदास
- जसुदा तोहिं बांधि क्यौं आयौ -सूरदास
- जसुदा देखति है ढिग ठाढ़ी -सूरदास
- जसुदा देखि सुत की ओर -सूरदास
- जसुदा नार न छेदन दैहौं -सूरदास
- जसुदा मदन गोपाल सोवावै -सूरदास
- जसुदा यह न बूझि कौ काम -सूरदास
- जसुमति अति ही भई बिहाल -सूरदास
- जसुमति अति हीं भई बिहाल -सूरदास
- जसुमति अतिहीं भई बिहाल -सूरदास
- जसुमति करति मोकौ हेत -सूरदास
- जसुमति कहति कान्ह मेरे प्यारे -सूरदास
- जसुमति कह्यौ सुत, जाहु कन्हाई -सूरदास
- जसुमति कान्हहिं यहै सिखावति -सूरदास
- जसुमति किहिं यह सीख दई -सूरदास
- जसुमति कौ सुत यहै कन्हाई -सूरदास
- जसुमति जबहिं कह्यौ अन्हवावन -सूरदास
- जसुमति टेरति कुँवर कन्हैया -सूरदास
- जसुमति तू जू कहति हँसी माई -सूरदास
- जसुमति तेरौ बारौ, अतिहिं हैं अचगरौ -सूरदास
- जसुमति तेरौ वारौ कान्ह -सूरदास
- जसुमति दधि मथन करति -सूरदास
- जसुमति दौरि लिए हरि कनियाँ -सूरदास
- जसुमति धौं देखि आनि -सूरदास
- जसुमति बार-बार पछितानि -सूरदास
- जसुमति बिकल भई -सूरदास
- जसुमति बूझति फिरति गोपालहिं -सूरदास
- जसुमति भाग-सुहागिनि -सूरदास
- जसुमति मन अभिलाष करै -सूरदास
- जसुमति मन मन यहै बिचारति -सूरदास
- जसुमति यह कहि कै रिस पावति -सूरदास
- जसुमति राधा कुँवरि सँवारति -सूरदास
- जसुमति रिस करि-करि रजु करषै -सूरदास
- जसुमति लै पलिका पौढ़ावति -सूरदास
- जसुमति लै संग नंद -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जसुमति सुनि-सुनि चकित भई -सूरदास
- जसुमुति लटकति पाइ परै -सूरदास
- जसोदा! कहा कहौं हौं बात -चतुर्भुजदास
- जसोदा, तेरौ चिरजीवहु गोपाल -सूरदास
- जसोदा ऊखल बांधे स्याम -सूरदास
- जसोदा एतौ कहा रिसानी -सूरदास
- जसोदा कान्हहु तैं दधि प्यारौ -सूरदास
- जसोदा तेरौ भलौ हियौ है माई -सूरदास
- जसोदा बार-बार यौ भाषै -सूरदास
- जसोदा बार बार यौ भाषै -सूरदास
- जसोदा बार बार यौं भाषै -सूरदास
- जसोदा मैया काहे न मंगल गावै -सूरदास
- जसोदा हरि पालनैं झुलावै -सूरदास
- जसोदानंदन सुख संदेह दियौ -सूरदास
- जहँ वै स्याम मदन मूरति -सूरदास
- जहर
- जहर दियो म्हे जाणी -मीराँबाई
- जहाँ-जहाँ तुम हमहि उबारयौ -सूरदास
- जहाँ-जहाँ सुमिरे हरि जिहिं बिधि -सूरदास
- जहाँ जहाँ रिषि जाइँ तहाँ -सूरदास
- जहाँ पवित्र भाव हैं रसमय -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जहाँ स्याम घन रास उपायौ -सूरदास
- जहाँ स्याम धन रास उपायौ -सूरदास
- जहां-जहां तुम हमहि उबारयौ -सूरदास
- जहां-जहां सुमिरे हरि जिहिं बिधि -सूरदास
- जहां स्याम धन रास उपायौ -सूरदास
- जह्नु
- जह्नु (अजमीढ़ पुत्र)
- जह्नु (बहुविकल्पी)
- ज़हर
- जा दिन तें निरख्यौ नँद-नंदन -रसखान
- जा दिन तै गोपाल चले -सूरदास
- जा दिन तै मुरली कर लीन्हीं -सूरदास
- जा दिन तै हरि चले मधुपुरी -सूरदास
- जा दिन तै हरि दृष्टि परे री -सूरदास
- जा दिन तैं मुरली कर लीन्ही -सूरदास
- जा दिन तैं हरि दृष्टि परे री -सूरदास
- जा दिन मन पंछी उड़ि जैहै -सूरदास
- जा दिन मन पंछी उडि जैहै -सूरदास
- जा दिन संत पाहुने आवत -सूरदास
- जा दिन स्याम मिलै सोइ नीकौ -सूरदास
- जा मुख तें श्री यमुने यह नाम आवे -छीतस्वामी
- जांबवती
- जांबवान
- जाइ सबै कंसहि गुहरावहु -सूरदास
- जाकी जैसी टेव परी री -सूरदास
- जाकी जैसी बानि परी री -सूरदास
- जाकी जैसी वानि परी री -सूरदास
- जाके गुन गावत दिनरात -सूरदास
- जाके दरसन कौ जग तरसत -सूरदास
- जाके दरसन कौं जग तरसत दै री नैंकु दरस तिहिं दै री -सूरदास
- जाके रस रैनि आजु जागे हौ लाल जाइ -सूरदास
- जाकै रूप वरन बपु नाही -सूरदास
- जाकै लगी होइ सु जानै -सूरदास
- जाकै हरि जू कौ बरु ताकै -सूरदास
- जाकैं सदा सहाइ कन्हाई -सूरदास
- जाको ब्रह्मा अंत न पावै -सूरदास
- जाकों दीनानाथ निवाजैं -सूरदास
- जाकौ मन लाग्यौ नँदलालहिं, -सूरदास
- जाकौ मन लाग्यौ नँदलालहिं -सूरदास
- जाकौ मनमोहन अंग करै -सूरदास
- जाकौ व्यास वरनत रास -सूरदास
- जाकौ हरि अंगीकार कियौ -सूरदास
- जाकौं प्रभु अपनो करि -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जाकौं ब्यास बरनत रास -सूरदास
- जागहु लाल ग्वाल सब टेरत -सूरदास
- जागहु हो ब्रजराज हरी -सूरदास
- जागहु–जागहु नन्द–कुमार -सूरदास
- जागि उठे तब कुँवर कन्हाई -सूरदास
- जागिए, ब्रजराज कुँवर -सूरदास
- जागिए गोपाल लाल -सूरदास
- जागिये गुपाल लाल ग्वाल द्वार ठाढ़े -सूरदास
- जागिये गुपाल लाल ग्वाल द्वार ठाढे़ -सूरदास
- जागियै गोपाल लाल -सूरदास
- जागियै प्रानपति रैनि बीती -सूरदास
- जागुड़
- जागे हौ जु राबरे -सूरदास
- जागे हौ जु राबरे ये नैना क्यौं न खोलौ -सूरदास
- जागो बंसीवारे ललना -मीराँबाई
- जागो मेरे लाल जगत उजियारे -परमानंददास
- जागो म्हांरा जगपति राइक -मीराँबाई
- जागौ, जागौ हो गोपाल -सूरदास
- जागौ मोहन भोर भयौ -सूरदास
- जागौ हो तुम नंद–कुमार -सूरदास
- जाजनगर
- जाजलि
- जाजलि और तुलाधार का धर्म के विषय में संवाद
- जाजलि की घोर तपस्या व जटाओं में पक्षियों का घोंसला बनाने से उनका अभिमान
- जाजलि को तुलाधार का आत्मयज्ञविषयक धर्म का उपदेश
- जाजलि को पक्षियों का उपदेश
- जाठर
- जाठराग्नि
- जातकर्म संस्कार
- जाति (महाभारत संदर्भ)
- जातिस्मर
- जातिस्मर कीट
- जातिस्मर ह्नद
- जातूकर्ण
- जातूद्भव
- जातै परयौ स्यामघन नाउँ -सूरदास
- जातैं परयौ स्यामघन नाउँ -सूरदास
- जात्यौ जीत्यौ हो जादवपति रिपु दल मारयौ -सूरदास
- जान गया जो भरी हुई हैं -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जान देहु गोपाल बुलाई -सूरदास
- जान दै स्याईमसुंदर लौं आजु -सूरदास
- जानकि
- जानकि (सीता)
- जानकी
- जानकी मन संदेह न कीजै -सूरदास
- जानति हौ जिहि गुननि भरे हौ -सूरदास
- जानति हौं जिहि गुननि भरे हौ -सूरदास
- जानपदी
- जानि करि बावरी जनि होहु -सूरदास
- जानि जु पाए हौं हरि नीकैं -सूरदास
- जानि हौं अब वाने की बात -सूरदास
- जानी-मुक्त, सिद्ध-योगी कोई -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जानी ऊधौ की चतुराई -सूरदास
- जानी बात तुम्हारी सब की -सूरदास
- जानी बात मौन धरि रहियै -सूरदास
- जानु-हस्तैर्व्रजेशांगणे रिंगमाण
- जानुजंक
- जानुजंध
- जानौं हौं बल तेरौं रावन -सूरदास
- जान्यौ जान्यौ री सयन तेरो -सूरदास
- जान्यौ नंदसुवन कौ हेत -सूरदास
- जापक के लिए देवलोक भी नरक तुल्य इसके प्रतिपादन का वर्णन
- जापक को मिलने वाले फल की उत्कृष्टता
- जापक को सावित्री का वरदान
- जापक में दोष आने के कारण उसे नरक की प्राप्ति
- जापर दीनानाथ ढरै -सूरदास
- जाबा दे री जाबा दे -मीराँबाई
- जाबादे जाबादे जोगी किसका मीत -मीराँबाई
- जाबालि
- जामाता
- जाम्बवती
- जाम्बवद्युद्धकारी
- जाम्बवन्त
- जाम्बवान
- जाम्बूनद
- जाम्बूनद (धनुष)
- जाम्बूनद (पर्वत)
- जाम्बूनद (बहुविकल्पी)
- जाम्बूनद (सरोवर)
- जाम्बूनद (स्वर्ण)
- जाम्बूनदी
- जायसी की प्रेम व्यंजना
- जायसी की प्रेम व्यंजना 2
- जायसी की प्रेम व्यंजना 3
- जायसी की प्रेम व्यंजना 4
- जारुधि प्रदेश
- जारूथी
- जालबंध
- जालबन्ध
- जावट ग्राम नंदगाँव
- जावट ग्राम नन्दगाँव
- जावो निरमोहिया जाणो तेरी प्रीत -मीराँबाई
- जासौ लगन लागी होइ -सूरदास
- जाहि कहाँ अपराध भरे -सूरदास
- जाहि चली मैं जानति तोकौं -सूरदास
- जाहि देखि, चाहत नहीं -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जाहि लगै सोई पै जानै -सूरदास
- जाहिरै जागति सी जमुना जब बूडै बहै -पद्माकर
- जाहु घरहिं बलिहारी तेरी -सूरदास
- जाहु चली अपनैं-अपनैं घर -सूरदास
- जाहु जाहु आगे तै ऊधौं -सूरदास
- जाहु जाहु ऊधौ जाने हौ -सूरदास
- जाहु तही कह सोचत हौ -सूरदास
- जाहु तहीं कह सोचत हौ -सूरदास
- जाहु तहीं मोतिसरी गँवाई -सूरदास
- जाह्नवी
- जितना जितना मन से आत्मसुखेच्छा का -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जितनी लाअ गुपालहि मेरो -सूरदास
- जितने सब हैं भाव विलक्षण -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जितवती
- जितशत्रु
- जितात्मा
- जितारि
- जिन के दृग हरि-रँग रँगे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जिन जिनही केसव उर गायौ -सूरदास
- जिन लक्ष्मी की रूप-माधुरी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जिन श्रीराधा के करैं नित -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जिनका अन्न ग्रहण करने योग्य है और जिनका ग्रहण करने योग्य नहीं है, उन मनुष्यों का वर्णन
- जिनका अन्न वर्जनीय है, उन पापियों का वर्णन
- जिनके अतुलैश्वर्य-सिन्धु के -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जिनि जिनि जाइ स्याम के आगै -सूरदास
- जिनि जिनि जाइ स्याम के आगैं -सूरदास
- जिम्भ
- जियहि क्यौं कमलिनि काँदौ हीन -सूरदास
- जियहिं क्यौ कमलिनि -सूरदास
- जिष्णु
- जिष्णु (पाण्डव पक्षीय योद्धा)
- जिष्णु (बहुविकल्पी)
- जिष्णु (श्रीकृष्ण)