जागहु–जागहु नन्‍द–कुमार -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल



जागहु-जागहु नन्‍द-कुमार।
रवि बहु चढ़यौ, रैनि सब निघटी, उचटे सकल किवार।
वारि वारि जल पियति जसोदा उठि मेरे प्रान-अधार।
घर-घर गोपी दह्यौ बिलोवैं, कर-कंकन झंकार।
साँझ दुहन तुम कह्यौ गाइकौं, तातैं होति अबार।
सूरदास प्रभु उठे तुरत हीं, लीला अधम अपार।।408।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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