जहर दियो म्हे जाणी, राणाजी म्हाँनैं। (टेर)
हरष सोग मेरे मन नाहीं, नहीं लाभ नहीं हानी।।1।।
कंचन लेर अग्नि में राख्यो, निकस्यो बाराबाँनी।।2।।
अब तो प्रभु तुमही पति राखो, छाणों दूध‘र पाँणी।।3।।
राणों बचन उचारिया जी, सुणजो म्हारी बाँणी।।4।।
साधाँ रो सँग परो निवारो, थाँने कराँ पटराँणी।।5।।
कोटभूप वारों साधाँ पर, संताँ हाथ बिकाँनी।।6।।
हथलेवो म्हे थाँसूँ जोड़्यो, गिरधर री पटराँणी।।7।।
पीहर म्हारो मेड़तो जी, छाँडी कुल की काँणी।।8।।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, चरणकँवल लिपटानी।।9।।[1]
राग - सोरठा वा वागेश्वरी, कानड़ा : ताल - तिताला
(राणा संवाद)