जाम्बूनद (धनुष)

Disamb2.jpg जाम्बूनद एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- जाम्बूनद (बहुविकल्पी)

जाम्बूनद नामक एक धनुष का उल्लेख महाभारत में मिलता है। यह हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र के सौ कौरव पुत्रों में से एक विकर्ण के पास था। महाभारत विराट पर्व के अंतर्गत विराट युद्ध के समय अर्जुन और विकर्ण के मध्य हुए युद्ध के अंतर्गत जाम्बूनद धनुष का उल्लेख हुआ है।

जब पांडव अपने एक वर्ष के अज्ञातवास का समय विराट नगर में व्यतीत कर रहे थे, तब अज्ञातवास के अंतिम दिनों में कौरव सेना ने विराट नगर पर आक्रमण किया। बृहन्नला के रूप में अर्जुन ने राजकुमार उत्तर के सारथित्व में युद्ध लड़ा। उनका कर्ण के साथ घोर युद्ध हुआ। अर्जुन के विशाल घोड़े वायु के समान वेगशाली थे। उनकी जीन के नीचे लगे हुए कपड़े के पिछले दोनों छोर सुनहरे थे। विराट पुत्र उत्तर ने तेजी से हाँककर उन घोड़ों के द्वारा कौरव रथियों की सेना को कुचलते हुए पाण्डुनन्दन अर्जुन को सेना के मध्य भाग में पहुँचा दिया। इतने में ही चित्रसेन, संग्रामजित, शत्रुसह तथा जय आदि महारथी विपाठ नामक बाणों की वर्षा करते हुए कर्ण की रक्षा करने के उद्देश्य से वहाँ आक्रमण करने वाले अर्जुन के सामने आ डटे।

तब कुरुश्रेष्ठ वीरवर अर्जुन क्रोध से युक्त हो आग बबूले हो गये। धनुष मानो उस आग की ज्वाला थी और बाणों का वेग ही आँच बन गया था। जैसे आग वन को जला डालती है, उसी प्रकार वे उन कुरुश्रेष्ठ महारथियों के रथ समूहों को भस्म करने लगे। इस प्रकार घोर युद्ध छिड़ जाने पर कुरुकुल के श्रेष्ठ वीर विकर्ण ने रथ पर सवार हो विपाठ नामक बाणों की भयंकर वर्षा करते हुए भीम के छोटे भाई अतिरथी वीर अर्जुन पर आक्रमण किया। तब अर्जुन ने अपने बाणों से जाम्बूनद नामक उत्तम सुवर्ण मढ़े हुए सुदृढ़ प्रत्यन्चा वाले विकर्ण के धनुष को काटकर ध्वज के भी टुकड़े-टुकड़े करके गिरा दिया। रथ की ध्वजा कट जाने पर विकर्ण बड़े वेग से भाग निकला।[1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत विराट पर्व अध्याय 54 श्लोक 1-10

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