जितने सब हैं भाव विलक्षण -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

प्रेम तत्त्व एवं गोपी प्रेम का महत्त्व

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राग भैरवी - ताल कहरवा


जितने सब हैं भाव विलक्षण, एक-एक से उच्च उदार।
वे सब अति अभ्यन्तर होकर भी हैं बाह्य सरस व्यवहार॥
हैं वे परमादर्श, पुण्यतम प्रेमराज्य के भाव महान।
मिलते हैं उनसे प्रेमास्पद प्रेष्ठरूप में श्रीभगवान॥
पर राधा स्वरूपतः बँधी न उनसे किंचित्‌‌ कभी कहीं।
एक श्याम के सिवा तत्त्वतः राधा में कुछ और नहीं॥
राधा नित्य श्याम की मूरति, नहीं अन्य कुछ भावाभाव।
राधा श्याम, श्याम राधा हैं, अन्य तत्त्व का नित्य अभाव॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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