जा दिन तैं मुरली कर लीन्ही।
ता दिन तैं स्रवननि सुनि-सुनि सखि, मन को बात सबै लै दोन्ही।।
लोक बेद कुल-लाज कानि तजो, अरु मरजाद-बचन-मिति खोनी।
तबहीं तैं तन-सुधि बिसराई, निसि-दिन रहति गुपाल अधीनी।
सरद-सुधा-निधि-सरद अंस ज्यौं, सींचति अमी प्रेम रस भीनी।
ता ऊपर सुभ दरस सूर-प्रभु श्री गुपाल लोचन-गति छीनी।।1245।।