जसुमति कौ सुत यहै कन्हाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


जसुमति कौ सुत यहै कन्हाई। इनहिं गुवर्धन लियौ उठाई।।
इद्र परयौ इनही कै पाई। इनही की ब्रज चलति बड़ाई।।
बकी पियावन इनही आई। जोजन एक परी मुरझाई।।
इनहि तृना लै गयौ उड़ाई। पटक्यौ द्वार सिला पर आई।।
केसी असुर इनहि सहारयौ। अघा बकासुर इनही मारयौ।।
स्याम बरन तन, पीत पिछौरी। मुरली राग बजावत गौरी।।
देखि रूप चकित भई बाला। तन की सुधि न रही तिहिं काला।।
'सूर' स्याम कौ जानत नीकै। मगन भई, पूछति सुख जी कै।।3028।।

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