ज्ञानी-मुक्त, सिद्ध-योगी को‌ई -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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तर्ज लावनी - ताल कहरवा


ज्ञानी-मुक्त, सिद्ध-योगी-को‌ई भी थाह नहीं पाते।
श्याम-रूप-संदोह-महोदधि में वे सहज डूब जाते॥
मधुर दिव्य इस भगवद्‌-रस का वही परम रस ले पाते।
केवल प्रेमपूर्ण सर्वार्पण कर जो उनके हो पाते॥
इसीलिये सर्वार्पित-जीवन महाभाग वे गोपी-ग्वाल।
दिव्य रस-सुधास्वादन करते रहते हैं दुर्लभ सब काल॥
नहीं छोडक़र जाते व्रज को कभी रसिकवर वे नँदलाल।
निज-जन सबको सुख देते वे, करते रहते नित्य निहाल॥
उन प्रेमीजन के पवित्र पद-रज-कण को है अमित प्रणाम।
जिनके प्रेमाधीन हु‌ए हरि करते लीला मधुर ललाम॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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